ख़ुशी का पैगाम कहीं कहीं दर्दे जाम लाया!!.
शायद इस बूढ़े बाप को मनी आर्डर भेजा हो बेटे ने....मेरा इंटरव्यू काल लेटर होना चाहिए....पप्पू ने सोच ... बलम परदेसिया को दुखियारी बिरहन की यादे हो..... उस भाभी का मन कह रहा था जिसके साजन नौकरी धंधे की जुगत में दूर शहर में रहते हैं...... और नजरें चुराकर चांदनी भी देखती है कहीं उसके चकोर ने गुलाबी ख़त भेजा हो.... इधर निपट देहातन की सूनी नजरें भी तक रही हैं उसी को जो आकर चिट्ठी भी बांच देगा.कोई और नहीं..एक ही है वह शख्स जिसे हम कहते हैं पोस्ट मेन या डाकिया.
याद है पहले कितनी चिट्ठियां लिखा करते थे आप और हम!ख़ुशी और गम के कडवे -मीठे घूँट चिट्ठियां बांचते ही पीने पड़ते थे.मुस्कान और आंसू देने वाली ये इबारतें कभी लिफाफे के भीतर तो कभी अंतर देशीय या पोस्ट कार्ड पर।ज़माने की रफ़्तार ने ढेर सारे नए जरिये पैदा कर दिए है ... डाकिये भी हैं और उनका विकल्प भी आज के हाई -टेक युग में आना ही था ..फिर भी आज भी कानों में गूंजती है एक आवाज जो बढ़ा देती है हर किसी के दिल की धडकनें -
डाकिया डाक लाया डाकिया डाक लाया
ख़ुशी का पैगाम कहीं कहीं दर्दे जाम लाया
क्या आपको याद है पिछली बार आपने चिट्ठी कब लिखी थी?वही डाकिया जो अक्सर दरवाजे की सांकल या कालबेल बजाकर आवाज लगता था -पोस्ट मेन अब कितनी बार घर आता है?चिट्ठियां लिखना कम हो गया तो पाओगे कहाँ से? सारे परिवार का हाल-चाल , सुच-दुःख की बातें.. मान-मनुहार यानी भावनाओं की भानुमती का पिटारा हुआ करती थी चिट्ठियां .
आप में से बहुतों को मालूम है चिट्ठियां लाने - ले जाने वाले कासिद हुआ करता है.राजा महाराजाओं के जमाने में कबूतर भी कासिद हुआ करते थे जो प्यार के पैगाम ले जाते.ऐसे ही आशिक राजकुमार के दीदार को ,तरसती माशूका ने एक ख़त लिखा और तड़पकर कासिद से कहा -
नामाबर ख़त में मेरी आँख भी रखकर ले जा
क्या गया जो देखने वाली भी न गयी
खतों में गीत-गजल, शायरियां लिखने का रिवाज भी खूब चला था.दिल को छू लेने वाली चिट्ठियां लिखना भी एक कला है.पंडित नेहरू,महात्मा गाँधी,अब्राहम लिंकन ,अमृता प्रीतम,के लिखे खत ऐतिहासिक दस्तावेज है.विश्व विख्यात चित्रकार विन्सेंट वान गो और उनके भाई थियो के पत्रों पर आधारित उपन्यास " LUST FOR LIFE अद्भुत रचना है.पत्रों का अनोखा संसार है क्योंकि चिट्ठियां ऐसी पंखदार कासिद हैं जो पूरब से पश्चिम तक प्यार की राजदूत बनकर जा सकती हैं.ऐसी ही एक चिट्ठी मोर्चे डटे जवान को मिलती है और खंदक में ही वह अपने दोस्तों के साथ एक गीत गाता है ( फिल्म बार्डर)-
संदेशे आते हैं, वो पूछे जाते हैंकि तुम कब आओगे
की घर कब आओगे ये घर तुम बिन सून सूना है...
फिल्म पलकों की छाव में -डाकिये की भूमिका में राजेश खन्ना ने परदे पर दिल छू लेने वाला गीत गया था -डाकिया डाक लाया.... फिर ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम...और ख़त लिख दे सांवरिया के नाम बाबू...और चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है...
और एक बात मेरे नौजवान दोस्तों के लिए - साहित्यकार जान जेकिन रूसो ने कहा है सबसे अच्छा प्रेम पत्र लिखने, बगैर जाने यह लिखना शुरू कीजिए की आप क्या चाहते हैं .यह जाने बिना भी ख़त्म कीजिए की आपने क्या लिखा है.पर जरा गौर तो कीजिए इस नौजवान ने एक रूक्के पर हाले-दिल किस तरह बयान किया है-
मेरे कासिद जब तू पहुंचे मेर दिलदार के आगे
अदब से सर झुकाना हुस्न की सरकार के आगे
डाकिये की जिंदगी रील लाइफ में जितनी अलहदा है रियल लाइफ में उतनी ही कठिन और संघर्ष पूर्ण.उसकी सायकल के कैरियर और झोले में बिल.व्यावसायिक पत्र,अखबार, मैगजीन और रजिस्टर्ड पार्सल होंगे पर जज्बातों में डूबी चिट्ठियां अब नहीं होतीं.आज अगर किसी को चिट्ठियां लिखने को कहें तो वह कहेगा ,"क्या लिखूं कुछ भी समझ में नहीं आता."पर एक बात जरूर समझ में आ गयी की बदलते वक्त के साथ लोगों के मिजाज भी बदल गए हैं .दद्दू के घर टीवी चैनल पर एक फ़िल्मी गीत चल रहा है-
कबूतर जा जा जा ... कबूतर जा जा जा
पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ
छोडो कल की बातें... अब तो क़ासिद का काम अपना मोबाइल ही सम्हाल रहा है.डाकिये और कूरियर सर्विस से आगे जरूरी मैसेज या " नन्ही इबारतों वाले खत " ये कासिद ही लाते-ले जाते हैं.क्या नयी क्या पुरानी जनरेशन ... ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं.. पार एक बात का यकीन मानिए अच्छी .. प्यारी और खूबसूरत चिट्ठियां लिखने वाला इंसान ही संजीदा संवेदनशील और मुहब्बत भरे दिल का मालिक होता है.चिट्ठी लिखकर अपने भीतर खुद की तलाश कीजिए सिर्फ चिट्ठियों के जरिये किया जाने वाला प्यार प्लेटानिक लव कहलाता है.
एक बार फिर चिट्ठियों ..खतों.. कासिद और नामाबर की दुनिया के करीब से गुजर कर देखिये,खुद को तलाशने का एक आइना यह भी है.एक मिनट...रुकना जरा..देखूं तो मेरा कासिद "इलेक्ट्रानिक कासिद "यानी मेरा मोबाइल कौन सा पैगाम लेकर आया है-
अगर जिंदगी में जुदाई न होती,तो कभी किसी की याद आई न होती
साथ ही अगर गुजरते हर लम्हे तो शायद रिश्तों में ये गहराई न होती
अदब से सर झुकाना हुस्न की सरकार के आगे
डाकिये की जिंदगी रील लाइफ में जितनी अलहदा है रियल लाइफ में उतनी ही कठिन और संघर्ष पूर्ण.उसकी सायकल के कैरियर और झोले में बिल.व्यावसायिक पत्र,अखबार, मैगजीन और रजिस्टर्ड पार्सल होंगे पर जज्बातों में डूबी चिट्ठियां अब नहीं होतीं.आज अगर किसी को चिट्ठियां लिखने को कहें तो वह कहेगा ,"क्या लिखूं कुछ भी समझ में नहीं आता."पर एक बात जरूर समझ में आ गयी की बदलते वक्त के साथ लोगों के मिजाज भी बदल गए हैं .दद्दू के घर टीवी चैनल पर एक फ़िल्मी गीत चल रहा है-
कबूतर जा जा जा ... कबूतर जा जा जा
पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ
छोडो कल की बातें... अब तो क़ासिद का काम अपना मोबाइल ही सम्हाल रहा है.डाकिये और कूरियर सर्विस से आगे जरूरी मैसेज या " नन्ही इबारतों वाले खत " ये कासिद ही लाते-ले जाते हैं.क्या नयी क्या पुरानी जनरेशन ... ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं.. पार एक बात का यकीन मानिए अच्छी .. प्यारी और खूबसूरत चिट्ठियां लिखने वाला इंसान ही संजीदा संवेदनशील और मुहब्बत भरे दिल का मालिक होता है.चिट्ठी लिखकर अपने भीतर खुद की तलाश कीजिए सिर्फ चिट्ठियों के जरिये किया जाने वाला प्यार प्लेटानिक लव कहलाता है.
एक बार फिर चिट्ठियों ..खतों.. कासिद और नामाबर की दुनिया के करीब से गुजर कर देखिये,खुद को तलाशने का एक आइना यह भी है.एक मिनट...रुकना जरा..देखूं तो मेरा कासिद "इलेक्ट्रानिक कासिद "यानी मेरा मोबाइल कौन सा पैगाम लेकर आया है-
अगर जिंदगी में जुदाई न होती,तो कभी किसी की याद आई न होती
साथ ही अगर गुजरते हर लम्हे तो शायद रिश्तों में ये गहराई न होती
12:13 pm
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