आज का दिन मेरे लिए कहानियों को याद करने का दिन है.मंटो का जन्म दिन आज है.उनकी जन्म शती मनाई जा रही है. सदाअत हसन मंटो की कहानिया आज भी दिल को उसी हद तक छू लेती हैं जितना अरसे पहले जब उन्हें पहली बार पढ़ा था.मंटो ने उन सभी को झिडक दिया जो उन्हें प्रगतिशील कहते थे.मंटो की तुलना अक्सर मोपांसा से की जाती रही." कथा लेखकों का देवता " की मानिंद नहीं वरन समाज में मौजूदा बुराइयों और पाखंड की पुरजोर खिलाफत करने के लिए.फिर भी उनका भरोसा कायम रहा के इंसान में खुदा का अक्स है.वे इस बात पर डटे रहे के त्रासदी और अभाव के बावजूद इंसानियत के जज्बे का क़त्ल नहीं हो सकता.पैनी कलम के व्यंग्य और कटाक्ष से वे समाज की विडम्बनाओं की बखिया उधेड़ते रहे.
कृष्ण चन्द्र, राजिन्द्र सिंह बेदी, अहमद नदीम कासमी, उनके अजीज दोस्त थे.आम आदमी के बारे में मंटो क्षेत्रीय और वैश्विक सोच के साथ लिखते रहे.मंटो की आधुनिकता दुनियावी विसंगतियों से आकार लेती रही.उनहोंने फ़्रांस और रूस का साहित्य अंग्रेजी से उर्दू में अनुदित किया.विक्टर ह्यूगो, चेखब, वैद और गोर्की की रचनाएँ अनुदित किन.फिल्म मैगजीन मुसाफिर की एडिटिंग की और फिल्म-कृष्ण कन्हैया ,अपनी नगरिया के डायलाग लिखे.उनकी रचनाओं में रेडियो नाटक- आओ,मंटो के ड्रामे,जनाजे,तीन औरतें चर्चित रहे.बेहद ख्यात कृतियों की फेहरिस्त लम्बी है पर-स्याह हाशिये,बादशाहत का खत्म,सड़क के किनारे,बुर्के,शैतान शिकारी औरतें,रत्तीमाशा टोला,खोल दो..और काली शलवार जिन्होंने नहीं पढ़ा उन्होंने बहुत जरूरी चीज नहीं पढ़ी.अछूत समझे जाने वाले मुद्दे जैसे -वेश्याएं ,रंडियां,चकलाघर और अपराधी उनकी कहानियों का हिस्सा रहे." मैंने कभी अश्लील साहित्य नहीं लिखा" कहते हुए वे अपनी पैरवी करते हैं,"मेरे लेखन की कमजोरियां मौजूदा हालत की खामियां ही रहीं.".वे कहते, " आखिर मैं समाज का लिबास कैसे फाडकर तार-तार कर सकता हूँ जब वह खुद ही नंगा है!मंटो विनम्रता से कबूलते हैं की वे खुदा से छोटे कथा कहैय्या है.मंटो की कालजयी रचनाओं में- टोबा टेक सिंह,बू, नया कानून,ठंडा गोश्त अहम् रही.उन्हें अपने वतन पाकिस्तान ने कभी नहीं दुलारा.नसीरूदीन शाह के थिएटर वर्क-"मंटो इस्मत हाजिर हो " के जरिये दोनों कथाकारों( मंटो की कहानी -बू, और इस्मत चुगताई की कहानी- लिहाफ-) को एक साथ लाया गया..
मनो विश्लेषण और मानव व्यवहार उनकी कथाओं का अक्स है.दो देशों के बटवारे से उपजा दर्द उनकी कहानियो में कसकता है.मुझे लगता है के अगर मंटो आज जिन्दा होते तब सामाजिक औरसियासी बुराइयों के बहुआयाम उनकी कहानियों से प्रतिबिंबित होते.और हाँ एक मसले पर उनकी कलम जरूर चलती वो है भारत और पाकिस्तान की मौजूदा वैचारिक खाई.उनकी कहानी यज़ीद में यही प्रतिध्वनित होता है.मंटो की लघु कथाएं पूरी शिद्दत से समय सापेक्ष बनी हुई हैं.... जन मानस में कौंधती है.मंटो के अल्फाज और किरदार आज भी समाज में जिन्दा हैं .-किशोर दिवसे
12:57 am
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