शनिवार, 2 जुलाई 2011

सूखी अरपा ....

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सूखी अरपा ....

आज सचमुच देखा 
अपनी अरपा का सूखा तन 
कसक उठी,दुखी हुआ मन
सूखी अरपा ,खोया यौवन धन 
  
 आज सचमुच देखा
अरपा की पसरी रेत
दूर तक फैला पाट
बेजान  ,नीरव और सपाट

आज सचमुच देखा 
 चीखती अरपा पहियों के नीचे 
छलनी करती लौह मशीनें
उसे बेचकर चांदी कूतते
नराधमों का कुनबा

आज सचमुच देखा
अरपा के पाट का दर्द
हाँ! उसे ही दिखता है दर्द 
जो सुनता है नदी की कराह को 
और महसूसता है मरू के श्वास

आज सचमुच देखा
अरपा के पाट पर गूंजते 
स्वर संकेतों का  करुण क्रंदन 
पाट गर्भ से गूंजती चीखें
नवजात शिशुओं , अनचीन्हे शवों की
और रेत से निकलती गर्म साँसें 
कहाँ है सचमुच की नदी
उसकी खिल-खिल हंसी!!!

आज सचमुच देखा 
रेत को बदलते  हुए 
अनगिनत इंसानी शक्लों में
सुना आपने! सूखी रेत पूछती है 
कहाँ है पानी... कहाँ है पानी!!


अरे इंसान बंद कर  नादानी
कब तक रौंदेगा मेरी छातियों को?
सूखा है पाट, धधकता है मन
कब भीगेगा मेरा प्यासा तन?
मेरी गहराइयों का अतलांत!
मै गाऊंगी- कल -कल छल- छल 
स्वप्नाकांक्षा  कब होगी शांत!!!
                                                                   किशोर दिवसे 















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4 टिप्‍पणियां:

  1. सम्वेदनशील रचना। अरपा कहाँ बहती है? इस बारे में एक छोटा सा नोट मेरे जैसे पाठकों के लिये लाभदायक होगा।

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  2. प्रिय साथी,अरपा नदी का उद्गम स्थल छत्तीसगढ़ में बिलासपुर संभाग के पेंड्रा नामक जगह का कोई खेत है. वहां से निकली धाराएँ नदी का रूप लेकर सर्पिल रास्तों से होते हुए पहाड़ी और मैदानी इलाकों से गुजरती है.कई जगहों पर सूखी है और पाट फैला है.रेत उत्खनन और भूमि क्षरण की वजह से अरपा बदहाल है. सभी के लिए यह चिंता का सबब है.

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  3. बहुत मर्मस्पर्शी रचना । अरपा को देखकर बिलकुल यही महसूस होता है जैसा आपने बयान किया है ।

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  4. कहानी और कविता बनती नदियां.

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