रविवार, 28 नवंबर 2010

मेरे घर आई एक नन्ही परी....

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कुलच्छनी  ... फिर उसने एक बेटी जन दी.....मर क्यूँ नहीं गई ... अच्छा होता कि बाँझ ही रह जाती....बूढी सास हम उम्र महिला के पास अपनी भड़ास निकल रही थी.
अरे...तेरी लुगाई ने तो नाक कटा दी खानदान की...करमजली ने फिर बेटी पैदा की.तेरा खानदान चलाने  मैं तो तेरा दूसरा ब्याह कराने की सोच रही हूँ...!
कालचक्र को पूरी रफ़्तार से घूमना था ,सो घूमता रहा और आज ... पहली बेटी ,दूध रोटी... बधाई हो.... घर में लक्ष्मी आई है-बेटी जन्मते ही दाई ने अहाते में टहलते शुक्ल जी को बधाई दी और अपनी आँखों के भीगे कोरों पर पल भर के लिए अपना तहबन्द रूमाल रखकर वे जरूरी कामकाज में लग गए थे.
                       मुस्कुराती कली से आहिस्ता -आहिस्ता बनता फूल...खेतों में लहराती बालियाँ ...कुलांचे भरती हिरनी...तपती धूप में मंदानिल...मंदिर या गिरिजा की घंटियों के स्वर और मस्जिद की अजान या गुरूद्वारे के शब्द कीर्तन की शुचिता इन सभी भावनाओं को अगर किसी शरीर में बंद कर आपके सामने रख दिया जाए तो यकीन मानिए एक बेटी ही होगी आपके सामने.यादों के दरीचे खुलकर आपके कानों में आवाज गूंजेगी ...पापा ...पापा....लोरी सुनाओ ना...लल्ला.. लल्ला  ..लोरी ...दूध की कटोरी...दूध में बताशा...!!!
                                             मेरे घर आई एक नन्ही परी ....रेशमी बालों के नीचे काला टीका छुपाकर माथे पर थप्पी देकर सुलाते हुए मां के उन शब्दों में दिन को कतरा-कतरा पिघलते देखा है.दूज के चाँद और पूर्णमासी की चमकती-दमकती थाली तक पल-पल बढती चंद्रकलाओं में कभी अपनी बेटी का चेहरा देखना .... अद्भुत सम्मोहन है इसमें.
                                  "क्यों जी... !सासूजी कह रही थीं घर में सिर्फ बेटियां हैं .बेटे  के बगैर अपना खानदान कैसे चलेगा?
"देखो!आज के ज़माने में बेटे-बेटी में कोई फर्क नहीं है.अख़बारों में पढती नहीं तुम,बेटियां शोहरत की बुलंदी पर है..जानती नहीं तुम...अब तो बेटियां भी बाप की अर्थी को अपना कन्धा देकर मुखाग्नि तक देने लगी हैं..बंद कमरे का यह संवाद अब खुला सच है.    "पर ...कभी आपके मन में ऐसा तो नहीं लगता की काश अपना कोई बेटा होता!
"पगली !...बेवकूफ हैं जो इस बात पर कुढ़ते रहते हैं .आखिर छोटे भाई  क्या बेटे जैसे  नहीं होते?दुबे जी की बेटी नहीं है.वह पड़ोसन पण्डे भाभी  की बेटी को देखकर खुश हो जाती है.दूबाइन के बेटे कहाँ घर के कामकाज में हाथ बताने वाले,लेकिन पण्डे भाभी की बेटी को घर का सारा कामकाज संभलकर पढाई और खेलकूद में अव्वल देखते हुए मन भर जाता है.
                                बेटी के न होने का दुःख उनसे पूछिए जिनकी बेटी को क्रूर काल ने छीन लिया हो.ऐसे माता-पिता की आँखों में झांककर देखिए .उनकी सूनी पुतलियों में अब भी उस खो गई बेटी का आंसुओं से भरा चेहरा दिखाई देगा.अंगुलियाँ पलकों तक पहुंचे बगैर नहीं रह सकेंगी.
                                     "चलो नर्सिंग होम में चलकर जांच करवा लेते हैं,यदि लड़का है तो ठीक वर्ना ...!सोनोग्राफी क्लिनिक में परीक्षण करवाने पहुंचे युवा दम्पत्तियों की देह भाषा को ताड़ने में जरा भी वक्त नहीं लगता.यही वजह हैं की स्त्री-पुरुष अनुपात बिगड़ गया है..इसका खामियाजा सामाजिक समस्या के रूप में हम सबके सामने है.आपरेशन थिएटर में रक्त रंजित मांस का लोथड़ा देखकर अजन्मे नारी भ्रूण का करुण क्रंदन मेरे मन को छलनी कर देता है.मानो चीखकर वह कह रहा हो,"नहीं मत मरो मुझे..मैं निर्दोष हूँ... अपने पापों की सजा मुझ बेगुनाह को क्यूँ दे रहे हो??
          कन्यादान का सुख बूढ़े मां -बाप के लिए अनिर्वचनीय है.अपने ज़माने का एक पुराना गीत दिमाग के किसी कोने में उभरता है..बाबुल की दुआएं लेती जा ,जा तुझको सुखी संसार मिले.."बेटी पराया धन है... हम तो बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते ... पुरानी मान्यताएं बदल चुकी हैं अब.विदाई की मार्मिक बेला में आंसुओं की बरसात का सच शाश्वत है.खूँटी पर टंगे उस कुरते पर अनायास ही नजर पड़ती है और आंसुओं के उस सैलाब को तलाश करने लगता हूँ जब दद्दू अपनी बेटी को बिदा करने के बाद मेरे सीने से लगकर फफक-फफक कर रोए थे.
                             बेटी को संस्कारित करना एक पूरे परिवार को संस्कारवान बनाना है.क्योंकि बेटी ही एक पृथक परिवार की बुनियाद है. MEENENDAR    ने कहा है,"बेटी पिता के लिए आकुल्कारी एवं जटिल वैभव है."यूरिपीदिस  भी दुहिता के वात्सल्य से अभिभूत है."बूढ़े होते माता पिता के लिए बेटी से प्रिय कुछ भी नहीं." बेटे जोश का ज्वालामुखी होते हैं परन्तु मिठास भरे प्रीतिकर अनुराग का दूसरा नाम है बेटी."
                        अंग्रेजी की पुस्तक पढ़ते पढ़ते अनायास ही दर्पण में अपने ही चेहरे पर दृष्टि पड़ती है.यह क्या..मेरे चेहरे पर यीट्स का मुखौटा!अँगुलियों के स्पर्श भी बेंमानी हो जाते हैं जब विलियम बटलर यीट्स की कविता के सम्मोहन में कोई भी पिता खुद को यीट्स समझ बैठता है.२६ फरवरी १९१९   को अपनी बेटी के जन्म पा पिता यीट्स की कविता " A PRAYER FOR MY DAUGHTER"     के भाव कुछ इस प्रकार हैं -
                                     " पालने में सोई है बेटी और बाहर चल रही है तूफानी हवाएं .बाहरी तूफ़ान मेरे  मन के भीतर है.कैसे बचाऊँगा   तूफानी हवाओं से उसे....जीवन के तूफानों का किस तरह करेगी वह सामना?मेरी बेटी इतनी खूबसूरत न हो की शिष्टाचार भूल जाए.वह हरा -भरा फलों से लदा पेड़ हो.ऐसा वृक्ष हो जिसकी जड़ें भी गहरी हों और वह जमीनी सचाइयों को पहचाने.वह अति सौन्दर्य वती हेलेन  आफ ट्राय की तरह नहीं हो जिसकी वजह से युद्ध हुआ और जिसने एक लंगड़े से शादी  की.वह सही-गलत की पहचान कर सके और बुद्धि जीवियों की नफरत उसके मन में न समाये.अमीरी की अकड और मिथ्या
 वैभव से मेरी बेटी दूर रहे.वह उस लेनेट पक्षी (चटक )की तरह बने जो तूफानों में भी गीत गाता है.और...जब उसका ब्याह हो उसे ऐसा जीवन साथी मिले जो उसे मकान  नहीं ऐसा आशियाना डे जहाँ पर संस्कार और परम्पराओं का खजाना हो.
                                         अचानक ही तेज हवा का एक झोंका आता है और मेरे गले से दो बाहें आकर लिपट जाती हैं.-"पापा मैं कालेज जा रही हूँ...बाय  ..ठीक है ...टेक केयर ... कहकर मैं खामोश हो जाता हूँ.पड़ोस में क्लास फिफ्थ में पढने वाली बिटिया आकर कहती  है ," अंकल जी... अंकल जी...देखिए न ..अच्छी बेटी दूध रोटी पर मैंने एक कविता  लिखी है." पप्पू  टीवी का स्विच आन करता है और गूंजने लगता है सोनू निगम का गया एक मीठा -मीठा गीत-
                     चंदा सी डोली में ... परियों की झोली में शहजादी आई मेरी.....
                                             शुभ रात्रि ...शब्बा खैर ...  अपना ख्याल रखिए...
                                                                          किशोर दिवसे
                                                                           MOB.०९८२७४७१७४३

                                                                        
                                  

1 टिप्पणी:

  1. फुसलाने जैसा कार्यक्रम लगता है सर जी.
    अनुपात वाली बात तो पूरी तरह ठीक है.

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