मंगलवार, 16 नवंबर 2010

चलो उड़ चलें...

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ऍ मसक्कली मसक्कली ...उड़ मटक्कली ..मटक्कली.....
 कुँए के मेंढक और समंदर की शार्क में फर्क होता है जमीन -आसमान का.बरास्ता जिद, जूनून और जिहाद कोई इंसान अपना किरदार ... तकदीर और तदबीर कुँए के मेंढक की बजाए समंदर की शार्क जैसा बना सकता है.उसे बस सही वक्त पर सही सोच के जरिए सही फैसले  करने होते हैं.निश्चित रूप से अपनी गलतियाँ...अपनी मजबूरियां ... चुनौतियाँ रास्ते में कांटे बनकर बिछते रहेंगे लेकिन यदि आपने अनचाही सोच को भी "तेरा इमोशनल अत्याचार "के बावजूद सर पर लादे रखा तब बेडा गर्क समझो .सो, वक्त की नजाकत को समझकर खुद को बदलने की जिद करो वर्ना  मटक्कली तरह पछताते रहोगे और मसक्कली उड़ने लगेगी आसमान में फुर्र...फुर्र...फुर्र...और लोग गाने लगेंगे मसक्कली....मसक्कली...
                                 दरअसल मसक्कली और मटक्कली जंगली कबूतरियों के झुण्ड में शामिल थी .यह झुण्ड  V  फ़ॉर्मेशन बनाकर आसमान में उड़ रहा था .जिन्होनें भी अपनी निगाहें उठाकर देखा बस देखते ही रह गए.यूँ ही उड़ते-उड़ते मटक्कली ने जमीन पर कुछ देखा और नजदीक पहुँचने पर पता चला   कि यह पालतू कबूतरों का दडबा किसी कोठार का हिस्सा था .दडबे वाले कबूतरों का झुण्ड गुटरगूं करते हुए रोज उन्हें दिए जाने वाले मकई के दाने चुग रहा था.लालची मटक्कली सोचने लगी ,"कितने सुन्दर मकई के दाने हैं .वैसे भी लगातार उड़कर मैं थक चुकी हूँ इसलिए कुछ देर यहीं इठलाने और मटकने में मजा आएगा.मसक्कली को छोड़कर मटक्कली कोठार में दाना चुगते कबूतरों के पास उतर गई.दाने चुगते हुए उसने ऊपर चोंच उठाकर देखा मसक्कली और जंगली कबूतरों का V   फ़ॉर्मेशन फ़ना हो चुका था.
                               वह दक्षिण दिशा में जा रहा था लेकिन मटक्कली बेखबर थी."मैं अभी तो कुछ महीने तक कोठार में रहूंगी.मसक्कली और बाकी साथी जब वापस उत्तर की ओर लौटेंगे फिर उनके साथ शामिल हो जाऊंगी."
                                 यूँ ही कुछ महीने गुजर गए.मटक्कली ने देखा कबूतरों का झुण्ड वापस लौट रहा है.मसक्कली की तरह पूरा  V     फार्मेशन बेहद सुन्दर था.मटक्कली अब कोठार और वहाँ के पालतू कबूतरों से ऊब चुकी थी.कोठार का माहौल भी गन्दा और कीचड़ भरा हो चुका था.वहाँ पर बेहूदगी ... साजिशें और दूसरों का अपमान करने की विकृत सोच थी.मटक्कली ने सोचा," अब यहाँ  से मुझे उड़ जाना चाहिए."
                                    मटक्कली ने अपने पंख फडफडाकर उड़ना चाहा.खूब खाकर उसका वजन इतना बढ़ चुका था की वह उड़ नहीं सकी और नीची उडान की वजह से कोठार की दीवार से टकराकर गिर पड़ी.ठंडी साँस लेकर उसने कहा ,"मसक्कली और उसका कबूतर झुण्ड जब कुछ महीनों बाद फिर दक्षिण की ओर उड़ेगा में उनके साथ हो लूंगी."कुछ महीनों बाद मटक्कली ने फिर उड़ना चाहा पर उड़ नहीं सकी.मसक्कली अपने साथियों के साथ जिंदगी के आसमान में उडती चली गई करप्ट टेंडेंसी और बेईमानी ने मटक्कली की रूहानी ताकत भी ख़त्म कर दी थी.कई सर्दियों में मटक्कली देखती रही की आसमान में बनता  V   फार्मेशन कैसे आँखों से ओझल होता है. धीरे-धीरे वह "कोठार का पालतू कबूतर"बन चुकी थी.
                                  दद्दू समझ गए कि मसक्कली ईमानदारी और मटक्कली बेईमानी का सिम्बल है.मटक्कली ने सोचा कि आँख मूंदकर दूध पीने वाली बिल्ली कि तरह रहूंगी किसी को कहाँ पता चलेगा ? जिंदगी में किसी बेगुनाह का नुकसान सोचे या किए बगैर मेहनत और ईमानदारी ही आपके चरित्र को और शुभ्र बनाती है
                                                मटक्कली अपने गुनाहों के दलदल में फंस चुकी थी.हम इंसानों क़ी अच्छाइयां  और कमजोरियां भी मसक्कली और मटक्कली क़ी तरह हैं .मटक्कली आखिर उड़  ही नहीं सकी और मसक्कली और V   फार्मेशन 
वाले  कबूतरों से उसका रिश्ता टूट गया.मटक्कली"गंदे कोठार " का हिस्सा बनकर रह गई .
                                           प्रोफ़ेसर प्यारेलाल कहते हैं कि बात सिर्फ मसक्कली या  मटक्कली कि नहीं है.वह कबूतर नहीं किर्सर या चरित्र हैं जो जिंदगी के हर क्षेत्र में हमारे सामने होते हैं.सवाल यह है कि आईने में अपना चेहरा मटक्कली की तरह लगता है या उस प्यार खूबसूरत सी मसक्कली कि तरह जो उड़कर सीधे मुंबई , पूने या बेंगलोर  या विदेश पहुँच गई.कबूतरों का वह समूचा झुण्ड थिएटर के बाहर बालकनी की रेलिंग पर कतार लगाकर बैठा है मसक्कली उनके बीच है और सभी के कदम थिरकने लगे हैं.उनके गुटरगूं में कोरस की मीठी धुन गूँज रही है-
                  ऍ मसक्कली... मसक्कली... उड़ मटक्कली.....मटक्कली......

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