रविवार, 14 नवंबर 2010

"बाल" दिवस पर

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"उजड़े चमन बनाम तेरी जुल्फों की याद आई...

उन्होंने अपनी गंजी चाँद पर हाथ फेरा और दसों अँगुलियों के नाखूनों को रगड़ते हुए दीवार पर लगे फ्रेम की ओर देखकर लगे थे कुछ सोचने."क्या बात है दद्दू!बाबा रामदेव का फार्मूला अपना रहे हो क्या?"ड्राइंग रूम में एंट्री मारते हुए मैंने उन्हें छेड़ा.अपनी गंजी चाँद की कसम अखबार नवीस ,इन नामुराद जुल्फों ने छोटी सी  नहीं ...बहुत बड़ी बेवफाई की है मुझसे .तब मुझे लगा क्यों न यही फार्मूला ट्राई करें.मैंने भी सोचा चलो आज "बाल दिवस पर गंजत्व पर चकल्लस कर ली जाए.
                       दद्दू...तकदीर वाले हो .... बालों को संवारने में समय बर्बाद नहीं होता वर्ना हमें तो आईने के सामने देर तक खड़ा      देखकर श्रीमती जी की त्योरियां चढ़ जाती हैं.,"इस उम्र में इतनी देर मेक अप ....आपके कानों पर जून क्यों नहीं रेंगती!"अचानक यह डायलाग याद आया और हमारी निगाह पड़ी दद्दू कि चाँद पर ....भला सर पर बाल हों तो जून रेंगने की हिमाकत करे ना!पर अखबार नवीस,पुरुष अगर बेबाल हो तब उसे "गंजा " कहते है लेकिन ऐसी महिला को "गंजी" कहते हैं या नहीं?मैंने कहा किसी खल्वाट साहित्यकार से पूछकर बताऊँगा.
                                             स्कूल जाने वाली दद्दू की नातिन बबली अचानक अपने पापा के पास आकर कहने लगी,"पापा  आपके सर पर  तो बाल ही नहीं हैं फिर आप जेब में हमेशा कंघी क्यों रखते हैं?दद्दू हमारी ओर देखकर मुस्कुराए और और झेंपकर कहा,"    जा बिटिया ,अंकल के लिए पानी लेकर आना.और सुनाओ दद्दू.. क्या खबर है...खबर नहीं मजेदार बात सुनो अख़बार नवीस .चहकते हुए उन्होंने बताया  आज गया था कटिंग कराने .मेरे बैठे हुए शरीर पर सफ़ेद कपडा लपेटकर नाई कैंची बजाते हुए दो मिनट इर्द-गिर्द प्रदक्षिणा करता रहातब मैंने झुंझलाकर कहा ,"यार क्यूँ बोर कर रहे हो?फटाफट बाल काटो ,कई काम पड़े हैं अभी करने के."साहब ... आपकी चाँद को देखकर सोच रहा हूँ किधर से शुरू करूँ,गिने चुने बाल ही तो हैं." मैंने (दद्दू ने )मन में सोचा कि लगता है किसी झुल्पहानौजवान के बाल  काटने के बाद थका हुआ यह ड्रेसर मुझ जैसे उजड़े चमन के जरिए अपना "लास " संतुलित करने कि सोच रहा है.इसी बीच बंटी ने टीवी का स्विच आन किया और एक हसीं खूबसूरत शायरा की खनकती आवाज गूंजने लगी    
              "घिर के काली घटा जो छाई है ,तेरी जुल्फों की याद आई है."
जुल्फों की याद से मैंने दद्दू को बाहर खींचते हुए कहा ," यार दद्दू !खोपड़ी अगर गंजी है तब अफ़सोस क्यूं करते हो,आजकल तो यह फैशन में भी शुमार हो गया है.भूल गए क्या फिरोज खान को नहीं देखा ... कई विदेशी खिलाडी मैदान पर गंजे होकर खेलते हैं.रेखा ने भी सर घुटा लिया था. शबाना आजमी के सर घुटाने पर बवाल खड़ा हो गया था. हमारी बातों से दद्दू की कुछ हौसला अफजाई हुई और उनकी घुटी चाँद ख़ुशी से फोर्टी के बजाए हंड्रेड वाट के बल्ब की तरह जोरों से चमकने लगी.यकायक दद्दू और मेरी निगाह टीवी स्क्रीन पर पड़ी."पड़ोसन " फिल्म के किशोर कुमार वाली अदा से एक शायर ने अपनी जुल्फों को झटका दिया और आशिक मिजाजी के फूल बिखेर दिए-
                       तेरे हुस्न से जो संवर गई  वो फिजाएं मुझको अजीज हैं
                        तेरी जुल्फ से जो लिपट गई मुझे उन हवाओं से प्यार है
मेरे एक ज्योतिषी मित्र के अलावा दफ्तर  के कुछ साथी और रिश्तेदार भी उजड़े चमन हैं. सर के बचे हुए दस परसेंट बालों के लिए उन्होंने कंघियों की बटालियन रख छोड़ी है.नहाते वक्त शेम्पू लगाकर बिग बी इस्टाइल में पोलिओ ड्राप्स वाले विज्ञापन को नए अंदाज में पेश करते हैं,"सिर्फ दो बूँद जिंदगी की बस!" मेरे ज्योतिषी मित्र का बेटा भी उस दिन कह रहा था ," अंकल जी ! इस बार पापा को घर के सब लोग मिलकर अच्छी सी विग  गिफ्ट में देंगे."
                         विग की बात होनी थी की दद्दू उछल  पड़े.मुझे पूरा यकीन था की दद्दू को फिर कोई किस्सा याद आ गया .मेरे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने चोंच खोली ,"अखबारनवीस !मेरे एक मित्र सीनियर कलाकार हैं जो विग लगाते है.बता रहे थे एक रोज बेहद भन्नाई श्रीमती जी ने मारे गुस्से के बाल पकड लिए.यह तो किस्मत अच्छी है की अपनी गंजी चाँद पर हमने विग लगाई थी . मुई... विग उनके हाथ में रह गई और हमने अपनी खोपडिया खुजाते हुए वाहन से नौ-दो-ग्यारह होने में ही अपनी भलाई समझी .
                            इसी बीच ददू के दोनों शरारती नाती-नातिन,बंटी और बबली ने मेरे दोनों कानों में अलग -अलग फूस फुसाकर कहा ,"अंकल जी !,कल एक सेल्समेन आया था .वह दादाजी को बीस रूपये में तीन कंघियाँ बेचकर चला गया.जाने से पहले वह कह रहा था ,"यह तो हमारी सेल्समेन शिप का कमल है ,हम तो गंजों को भी कंघी बेच लेते हैं."बातों ही बातों में मुशाइरा कुछ और आगे बढ़ चुका था .इस बार टीवी पर एंकर ने माहौल  बनाने मिर्जा ग़ालिब का शेर दागा.-
                          आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
                         कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक
चाय की प्याली के साथ ही गंजत्व और पर चर्चा के साथ ही गंजा पुराण के कई और पन्ने पलटने लगते हैं .विदेशों में कुछ अभिनेत्रियों को गंजे मर्द बड़े सेक्सी लगते हैं.कास्मेतोलोजी में गंजेपन की इंजीनियरिंग और कृत्रिम केश रोपण  पर रिसर्च का पूरा ब्यौरा दिया गया है.इस बार ने साल से पहले कई संगठन गंजश्री, गंज विभूषण और गंजवाद प्रवर्तक की उपाधियाँ देने की तैयारियां कर रहे है.गंजों के जिला और राज्य स्तरीय संगठन भी बनने को बेताब हैं.
                      मै दद्दू से बातें कर ही रहा था किबंटी ने दद्दू को झिंझोड़ते हुए पूछा ,"दादाजी !गंजों को नाखून क्यों नहीं होते?"बबली कि नजरें दद्दू के नाखूनों कि ओर ही थीं.बहरहाल उजड़े चमन होने का नफा नुकसान और अनुभव अपने पूरे सेन्स आफ ह्यूमर के साथ अपने परिवार और सोस्तों में गप-सडाके  के दौरान बांटिएगा .अपने मोबाईल पर इन्तेजार कीजिएगा सम्मेलन की तिथि तय होते ही मेसेज आपको मिल जाएगा. लेकिन फ़िलहाल सुनिए शायर क्या कह रहे हैं-
                                इस शहर के बादल तेरी जुल्फों की  तरह हैं
                                 जो आग तो लगाते हैं पर बुझाने नहीं आते
                                                  शुभ रात्रि ... शब्बा खैर .. अपना ख्याल रखिएगा.
                                                               किशोर दिवसे
                                                               मोबाईल -09827471743

                      
                            

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