सोमवार, 27 सितंबर 2010

अयोध्या में राम -रहीम अस्पताल ....

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.आज के दोर  में उम्मीद , होश में तो हो
यार अन्धो से काजल नहीं माँगा करते
दोस्तों... अयोध्या के उबाऊ हो चुके मसले पर कल से अदालती सुनवाई शुरू हो रही है .कोर्ट के फैसले पर लोगो की नजरे कम , जनता की अदालत राजनेताओ की सोच के फ्लेश्बेक  के मद्देनजर दिल की अदालत के फैसले को अधिक तरजीह देती दिखाई देती है. उसे सियासत की नूर कुश्तियो के सभी एपिसोड्स मालूम है.बतरस के दोरान लोग कहा करते है की काश अयोध्या में  मंदिर मस्जिद की बजे राम - रहीम अस्पताल खोल दिया जाता. कम से कम इंसानों का बेहतर इलाज तो  हो पाता.इबादत के लिए तो .घर भी काफी है. पर गरीबो के लिए अस्पताल पर्याप्त नहीं
.          हिन्दू मंदिर में, मुसलमान मस्जिद में,ईसाई चर्च में सिख गुरूद्वारे में जाते है.खेल का मैदान ही इसी जगह है जहा पर सभी धर्मियों का एक ही मजहब होता है, खिलाडी.कुछ नहीं तो इंटर नेशनल     स्टेडियम  ही बनवा दे.नेता लोग एसा कभी नहीं करेंगे.  बांटो और राज करो की नीति बदस्तूर जारी है  अयोद्य का मसला हो या नक्सल वाद गरीबी मिटाओ हो या भ्रष्टाचार , जब हमारे रहबर नेताओ की कोम ही इसी है की
        क्या रहबरों ने हालत मुल्क की बना दी अपनी ख़ुशी की खातिर सब की ख़ुशी मिटा दी.  दरअसल लोग भी आजकल स्पिरिचु अलिस्म और धर्म में फर्क समझना नहीं चाहते या फिर समझकर भी पाखंड का मुखोटा ओढ़े रहना चाहते है,.मुझे लगता है की यह मसला जल्द नहीं सुलझेगा. मै निश्चित तोर पर आशावादी हु लेकिन .मुझे पीड़ित मानवता,की सेवा में धर्म और प्रकृति में इश्वर दिखाई देता है.लिहाजा मंदिर - मस्जिद मुद्दे के झमेले से दूर लगता है के -मंदिर और मस्जिद यहाँ से है बहुत दूर,चलो किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये. आज इतना ही . कल मिलेंगे. शुभ रात्रि.. शब्बा खैर... अपना ख्याल रखिये.

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