कन्हैया लाल नंदन जी का निधन पढने लिखने वालो के लिए अपूरणीय क्षति है.हमारी पीढ़ी धर्मयुग, पराग , सारिका, दिनमान आदि पढ़कर युवा और परिपक्व हुई है. मुझे लगता है की लेखको का कुनबा इस बात पर शिद्दत से सोचे की बच्चो और किशोरों के लिए कैसा और क्या लिखा जाना चाहिए.मौजूदा दौर के उनके तनाव ,महत्वाकांक्षाए ,जिजीविषा और जीवन शैली का प्रतिबिम्ब बन सके , ऐसा साहित्य रचना ही नंदन जी को सच्ची लेखकीय श्रद्धांजलि होगी. प्रकाशकों से भी इस दिशा में मुहीम चलने को साग्रह अनुरोध किया जाना चाहिए .नंदन जी की स्मृति में समर्पण अंक भी निकले जाने चाहिए. मै उन्हें अपनी और से शब्दांजलि अर्पित करता हु.
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें