कन्हैया लाल नंदन जी का निधन पढने लिखने वालो के लिए अपूरणीय क्षति है.हमारी पीढ़ी धर्मयुग, पराग , सारिका, दिनमान आदि पढ़कर युवा और परिपक्व हुई है. मुझे लगता है की लेखको का कुनबा इस बात पर शिद्दत से सोचे की बच्चो और किशोरों के लिए कैसा और क्या लिखा जाना चाहिए.मौजूदा दौर के उनके तनाव ,महत्वाकांक्षाए ,जिजीविषा और जीवन शैली का प्रतिबिम्ब बन सके , ऐसा साहित्य रचना ही नंदन जी को सच्ची लेखकीय श्रद्धांजलि होगी. प्रकाशकों से भी इस दिशा में मुहीम चलने को साग्रह अनुरोध किया जाना चाहिए .नंदन जी की स्मृति में समर्पण अंक भी निकले जाने चाहिए. मै उन्हें अपनी और से शब्दांजलि अर्पित करता हु.
अत्तदीप भव।।
अत्तदीप भव।।
क्या समाज इसे सच्चे दिल से स्वीकार रहा है? हाँ? नहीं? ?कैसे? सिद्धार्थ , बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध बन गए। क्या हमने /आपने / किसी ने " बोधि…Read More
....और मैं ही बन गया दीप पर्व का दीप
....और मैं ही बन गया दीप पर्व का दीप
नारायण... नारायण...नारायण.... नारायण....चौंककर नारद जी ने देखा और उनसे रहा न गया.उनहोंने पल भर काबू रहने के बाद पूछ ही लिया " यह क्या…Read More
ख़त्म कर दो कचरा!
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जितना असह्य है कचरा
भीतर घर के और पड़ा
दीवार,अहातों के बाहर इर्द-गिर्द,
गलियों ,सड़कों ,नुक्कड़ ,चौराहों
गाँव ,शहर सड़ांध फैलाता&nbs…Read More
देखा! भूल गए न सैम !पित्रोदा को !
सैम पित्रोदा का जन्मदिन आज
आज बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर किसी के हाथ में मोबाइल है। 3 जी 4 जी 5 जी और न जाने क्या क्या।लेटेस्ट …Read More
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