मंगलवार, 5 जुलाई 2011

दुखवा मैं कासे कहूं मोरी सखी!!!

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प्रिय सखी
सच कहती हूँ... मेरी तकदीर में सुख कम दुःख ज्यादा लिखे हैं.अक्सर सफ़र पर ही रहती हूँ.कभी शहर के भीतर तो कभी लम्बे सफ़र पर....छोटे शहर से बड़े शहर तक.कई बार मेरी यात्रा एकदम तन्हाइयों में होती है . हाँ शहर के भीतर जरूर बच्चे से लेकर बूढ़े तक मेरे साथ होते हैं.दूर के सफ़र में मेरे इर्द-गिर्द बस... पेड़ -पौधे ... आसमान से मेरा चेहरा तकते चाँद-सूरज और मेरे जिस्म से होकर गुजरते इक्का-दुक्का इंसान या फिर भीड़ का रेला जो कभी रुकता ही नहीं.
सखी रे..मेरे बगैर कोई भी नहीं रह सकता.सब मुझे इस्तेमाल कर भूल जाते है.यूज किया और हाथ झाड़कर चल दिए.कभी कोई गौर करता है मेरी हालत पर?कैसी दिख रही हूँ मैं.. मेरी तबीयत ठीक है या नहीं... शरीर पर जख्म हैं तो नहीं! कई लोग तो बेवकूफों की तरह देखते रहते हैं ... मेरा जिस्म छलनी हुआ जाता है पर मुझसे बदसलूकी करने वालों को रोकते ही नहीं.... सजा क्या ख़ाक देंगे?माना कि मेरे साथ मील के पत्थर हैं पर वे भी तो गूंगे हैं!
सखी रे! तुम सब मेरी सहेलियां हो जो छोटी-छोटी जगह से आकर मुझसे अक्सर मिलती हो .न जाने कितने कोनों से.. नुक्कड़ों से घूम-फिरकर कितनी तकलीफें बर्दाश्त कर मेरे पास आती हो.तुम भी तो कह रही थीं आस-पास के लोग इतने बदतमीज हैं जरा भी ध्यान नहीं रखते.सच कहूं...अगर हमारे बाजू वाले घर के लोग इंसानों की तरह रहना सीख जाएँ तो हम सब क्या खुश नहीं रहेंगी?नल की पाइप लाइन और केबल बिछाने वालों ने तो हमारा जीना हराम कर रखा है.सखी रे.. लोग कितने बेशर्म हैं.. अपना घर तो रखेंगे टिप-टाप लेकिन कचरा हमपर फेक देंगे.न जाने अपनी जिम्मेदारी समझने की अक्ल उन्हें कब आयेगी ?
जब से अन्दर ग्राउंड ड्रेनेज का काम शुरू हुआ है सिम्प्लेक्स वालों ने हमारा सब कुछ लूट लिया.. कहीं मुंह दिखने लायक नहीं छोड़ा. अरे नामाकूल साहबों!हमारी हालत सुधरने की सही प्लानिंग नहीं कर सकते तो कम से कम हमारी अस्मत तो मत...गैरों के करम... अपनों के सितम!एक बात बताऊँ.."बड़े साहब" लोगों के घर के सामने से जब मैं गुजरती हूँ तब प्रशासन भी मेरा खूब ख्याल रखता है.लगता है मैं पार्लर से आ रही हूँ.लेकिन बाहरी और शहर के भीतरी इलाकों में मेरी हालत बद से बदत्तर है. आल अफसरों के कुकर्मों की सजा मुझे ... गालिया मेरे नसीब में क्यों !
सखी रे...नेताओं के आगमन पर स्वागत के लिए गेट बनाने वाले ,शादी के मंडप गाड़ने वाले इतने नालायक हैं ... मेरी हालत बिगड़कर रख देते हैं.न जाने कितनी बार कह चुकी हूँ की मेरी देह की दूरियां सम्हालकर आहिस्ता-आहिस्ता बड़े प्यार से....तय किया करो. कितनी जल्दबाजी... अरे बच्चा ..युवक ,युवती ही या बूढा... कोई भी इंसान हो उसके खून से मेरा जिस्म ही भीगता है न! भगवान न करे आपको कुछ हो गया तो!!! जख्मी होंगे आप पर दिल तो मेरा जार -जार रोयेगा न! धीरे नहीं चला सकते गाड़ियाँ?सखी रे!देख न! लोग कितने गैर-जिम्मेदार हैं !उस पढ़े-लिखे नौजवान ने गुटका खाया और पाउच फेक दिया मुझपर. लड़कियों ने कार के भीतर से पालीथिन और प्लास्टिक की बोतले बाहर फेक दीं.खाओगे पान और थूकोगे मुझपर! अपने घर के कमरे में थूको. जरा भी नहीं सोचते ... स्टूपिड कहीं के.. नगर निगम और लोक निर्माण विभाग मेरा बाबुल है तो आप सब भी मेरा ही परिवार हो.
आपके शहर में अक्सर बीमार रहती हूँ. आपके घर आने वाले मेहमान भी मुझे देखकर मुह बिचकाते हैं.विदेशों में तो मेरे साथ बदतमीजी करने पर तुरंत जुरमाना होता है . दोराहे तिराहे और चौराहे पर जब भी सखियों से मुलाकात होती है हाल-चाल जानने को मन उतावला रहता है.देख न.. न जाने कितने लोग हमसे होकर चले गए लेकिन किसी ने हमारे बारे में सोचा! रायपुर , नागपुर और कई शहरों की मेरी सहेलियां कितनी खूबसूरत और टनाटन ...गार्जियस लग रही है.एक बात तय है. अप मेरा जितना ख्याल रखोगे मै आपका उतना ख्याल रखूंगी.
अच्छा अब आप मेरा नाम पूछेंगे.पर बिलकुल नहीं बताऊंगी.पहचान कौन???चलो ठीक है.आप सब मेरे अपने है.पहले वायदा कीजिए कि आप लोग मेरा ख्याल रखेंगे ... वर्ना कभी फिसलकर गिरेंगे तो खूब ठहाका मारकर हसूंगी आपपर हाँ!!! फिर मत कहना.क्या कहा/ मिलना है मुझसे? ठीक है.. तो घर से बाहर आ जाओ न..चौराहे तक साथ चलो मेरे साथ. लेकिन मुझसे मिलने जरा अपनी निगाहें तो झुका लीजिये जनाब!!!!! अपना और मेरा ख्याल रखिये....
किशोर दिवसे.



1 टिप्पणी:

  1. आपने ऐसे रास्‍ते पर ला दिया, हम चलते ही जा रहे हैं, खत्‍म होने का नाम नहीं लेता.

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