सोमवार, 10 जनवरी 2011

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सिर्फ वक्त ही समझता है प्यार में छिपा ऐश्वर्य

"दद्दू अभी मेरे पास नहीं हैं....प्रोफ़ेसर प्यारेलाल शहर से बाहर हैं.बाबू मोशाय कोलकाता गए.चिकनी चाची महिला मंडल में पंचायत कर रही है.दोस्तों के साथ मस्ती के मूड में किसी फास्ट फ़ूड कोर्नर में मस्ती कर रहे होंगे बंटी और बबली.और तो और देवर्षि नारद भी नहीं जो पंखिल शब्दों के बादलों पर सवार होकर मेरे सामने आ जाएँ और कानों में आवाज गूंजने लगे-
      नारायण... नारायण... नारायण... नारायण....
और वे पूछने लग जाएँ ," कैसे हो अखबार नवीस?"फिर शुरू हो जाए गप्पों का सिलसिला . छोडो भी , क्या फर्क पड़ता है ?आप तो हैं मेरे साथ .. फिर क्या जरूरत है किसी तीसरे की ? यानी आज सिर्फ आप और मैं !
               दर असल मैं भावना के बारे में सोच रहा था .मुझे लगता है हम सबको उसके विषय में सोचना चाहिए." क्या मतलब ! वह तो अच्छा -भला एम्.बी.ऍ. कर रही है. प्लेसमेंट होगा एकाध-दो महीने में और जाब लग जाएगा किसी अच्छी कंपनी में .कोई सोचने वाली बात ही नहीं है." ओह शीट!मैं उस भावना की बात नहीं कर रहा हूँ ." मेरे कहने का मतलब उस भावना से है जिसका मायने है फीलिंग या एहसास." अच्छा -अच्छा ... यानी भावना जैसे प्यार ... अमीरी ... ख़ुशी... अनुभव...अहंकार...और अफ़सोस.!" हाँ ...अब बिलकुल ठीक समझे आप.आज आप और मैं हम दोनों ही हैं चलो कहीं कल्पनाओं की उडान उड़ते हैं यानी -" सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो ?"" पहले  आप बताइए तो सही की आप कहना क्या चाहते हैं?
                            जरा सोचो की अगर एक द्वीप है जहाँ पर भावना कई  चेहरों में हमारे सामने है और वह द्वीप डूबने लग जाए तब क्या होगा?" आखिर पड़ गए ना सोच में !कुछ सूझ नहीं रहा ? ठीक है जब भी कोई कल्पना सूझे मुझे ई-मेल कर देना.इस वक्त हम दोनों ही साथ हैं इसलिए मैं ही एक किस्सा सुनाए देता हूँ .लेकिन एक शर्त पर ... आपको भी कभी न कभी जरूर सुनाना होगा.
                       आपको मालूम है ... हुआ यूं की एक बड़ा सा द्वीप था जहाँ भावनाओं के कई चेहरे एक साथ नजर आते थे.यानी सारी भावनाएं संग-संग रहती थी.ख़ुशी अहंकार,गम,अनुभव,प्यार  और बाकी भी.एक रोज अचानक यह मुनादी हुई की जल्द ही वह द्वीप डूबने वाला है.इसलिए इसे खाली करना होगा." फिर क्या हुआ ?क्या वे भावनाएं स्त्री और पुरुषों के अलग-अलग चेहरों वाली थीं?
                             ? हाँ.. स्त्री और पुरुष भी.आगे सुनो.... उन सभी ने अपनी नौकाएँ तैयार की और द्वीप छोड़ने की तैयारी कर ली.बाकी सभी भावनाएं बदहवास थीं... एकदम घबराई हुई.उनके चेहरे से पसीने की धार बह रही थी.लेकिन प्यार था  एकदम शांत, गंभीर.वह आखिरी पल तक अडिग लग रहा था.अपने जूनून का पक्का.जब वह द्वीप लगभग डूबने को था प्यार ने मदद चाही.अमीरी एक बड़ी सी नाव में जाने को तैयार थी.प्यार  ने बड़े प्यार से  पूछा" तुम मुझे अपने साथ ले जाओगे?अमीरी के चेहरे पर घमंड था.उसने गर्व से कहा, "नहीं ...बिलकुल नहीं मेरी नाव  में ढेर सारा   सोना ,चांदी  और करेंसी है.प्यार...वहाँ तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं.
                                            प्यार  ने फिर अहंकार से पूछा जो एक खूबसूरत नाव में जाने को तैयार था."अहंकार! तुम मेरी मदद करोगे?-प्यार  का सवाल था.फ़ौरन दो-टूक जवाब देते हुए अहंकार ने खिल्ली उड़ाई ," प्यर !मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता.तुम इतना भीगे हुए हो की मेरी नाव ख़राब हो जाएगी.नजदीक ही दूसरे कोने में था अफ़सोस.प्यार    ने झट से पूछा ,"अफ़सोस !तुम मुझे अपने साथ ले चलो."अफ़सोस ने अपनी ही तन्हाइयों में मायूस चेहरे पर हाथ रखकर कहा,"ओह प्यार!यूं ही अकेला रहने दो अफ़सोस को.मैं अपने टूटे हुए दिल के साथ रहना चाहता हूँ."
                                ख़ुशी की नाव भी प्यार के  नजदीक से गुजरी.प्यार  को आस बंधी थी की वह ख़ुशी के साथ हो लेगा लेकिन ख़ुशी अपनी ख़ुशी में इतनी खुश थी की उसे कहाँ  प्यार  का एहसास होता?ख़ुशी ने तो प्यार की आवाज भी नहीं सुनी.हालाकि प्यार ने उसे कई बार बुलाया भी.
                         प्यार ... प्यार ... प्यार ...! अचानक कानों में गूंजती आवाज से चौंक गया प्यार ." आओ प्यार ... मेरे पास आओ." वह एक बूढी आवाज थी जिसने प्यार से कहा, "आओ प्यार ..मैं तुम्हें अपने साथ ले चलूँगा.प्यार को यूं लगा मानो उसे किसी ने आशीर्वाद देकर दुलार लिया हो प्यार उस बुजुर्ग के साथ नदी के रेतीले तट पर पहुंचा.लेकिन वह इतना खुश था की उसका नाम पूछना ही भूल गया.भावनाओं के सभी अलहदा चेहरे अमीरी,ख़ुशी,अहंकार .अफ़सोस आदि पहले ही तट पर पहुँच कर अपना-अपना काम भी करने लगे थे.
                                       " अरे!मैं तो उस बुजुर्ग का नाम ही पूछना भूल गया जिसकी नाव पर सवार होकर आया था मैं " -प्यार ने अपने मन में सोचा.उसने नदी के तट पर बड़े से पत्थर पर बैठी पोपले मुहं वाली बूढी मां से पूछा,"मां मुझे नाव में कौन बिठाकर लाया मैं उसका नाम ही पूछना भूल गया."अब आप पूछेंगे की उस मां का नाम क्या था? मां तो बस मां होती है,लेकिन प्यार ! उस मां का नाम था विद्या.विद्या मां ने गंभीर स्नेहिल मुस्कान के साथ प्यार से कहा,"प्यर ,जानते हो, उस बुजुर्ग इंसान का नाम है वक्त." वक्त!" प्यार ने कुछ चौंककर विद्या मां से अपनी जिज्ञासा शांत करनी चाही," लेकिन विद्या मां ! वक्त ने भला मेरी मदद क्यों की?"
                                    मां विद्या की बूढी आँखों में ज्ञान की अलौकिक आभा थी.एक बार मुस्कुराकर मां की ममता भरी मेधा ने पूरे आत्म विश्वास से कहा ,"प्यार! वक्त ने तुम्हारी मदद इसलिए की क्योंकि वक्त ही यह समझ सकता है की कितना महान है प्यार.
                                 अरे! कहाँ खो गए आप?वो देखिए हम दोनों के आस-पास भावना कितने चेहरे बदलकर लोगों के दिलों में बस गई है.मां विद्या तो उस सभी को दुलारती है जो उसकी कद्र करते है लेकिन प्यार को साहिल तक पहुँचाने वाला बूढा वक्त रेत पर अपने क़दमों के अनगिनत निशान छोड़ गया है.लौटता हुआ मांझी गुनगुना रहा है-
                    प्यार है एक निशान क़दमों का 
                     जो मुसाफिर के साथ के साथ रहता है 
                                                                         
                                          खुश रहिए .अपना ख्याल रखिए...
                                                                              किशोर दिवसे 


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