दोस्तों .. महंगाई डायन खाए जात है. ह़र बन्दा इस हकीकत को भुगत रहा है.अपने -अपने घरों में बैठकर हम सब बेतहाशा कोस लेते हैं महंगाई को.जन-जिहाद का कहीं पर नाम-ओ- निशाँ तक नही है.आज सुबह से इण्डिया टीवी ने इस मुद्दे को खूब उभारा है. कागजी शेर बने सामाजिक संगठन मिलजुलकर महंगाई के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते क्या? मुझे धार्मिक आस्था से कोई परहेज नहीं लेकिन अपने भारत का यह दुर्भाग्य है कि यहाँ पर मंदिरों में भगदड़ मचती है और सौ से अधिक लोग मर जाते है. ऐसा कई बार हुआ है. महंगाई जैसे भीषण मुद्दे पर समाज "जिन्दा लाशों का समूह बनकर कानों में अंगुलिया डाले बैठा रहता है.
सरकारों का हाल ये है कि- चाट समझ फिर चाट जाओ देश को
,आप खाओ और बच्चों को खिलाओ देश को
दूर मंडराते रहे आकाश में फिर एकदम ,
इक झपट्टा मार पंजों में दबाओ देश को
भाषणों की भस्म नारों की शहद में घोटकर
,देश बीमार बतलाकर चटाओ देश को
मुझे लगता है कि सारे गाँव ..शहर के लोगों को इस मुद्दे पर शालीन तरीके से सड़कों पर आना चाहिए. समाज के सारे तबके के लोग महंगाई के खिलाफ निजी और सांगठनिक तौर पर अपने विरोध का खुला इजहार करे. इन्टरनेट के चिटठा जगत ... चौपालों पर भी इसपर अपनी प्रतिक्रियाएं दर्ज क़ी जाए . और तो और खुला हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जा सकता है. आप खुद भी सोचिये कि जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से आप महंगाई का विरोध कैसे कर सकते है?सोचिये क्या ऐसे मुद्दों पर जनता का सामूहिक हस्तक्षेप जरूरी नही? उठिए... अब यह जागकर अपने जिम्मेदार होने का सुबूत देने का सही वक्त है...
10:15 am
बापू की जरुरत तब भी थी
जवाब देंहटाएंशायद अब भी है.
तिरेसठ साल पहले
जब मेरा जन्म
भी नहीं हुआ था
उन्माद और भटकाव
ने आप को हटा दिया.
पढ़ा है कि आप भगाए गए हिन्दुओं को साथ लेकर
पाकिस्तान में उनकी भूमि पर
काबिज कराने जाने वाले थे.
हमारे नेता
अपने देश में
बेदखल हुए लोगों को
अपनी ही धरती पर भी
नहीं बसा पाते
राडिया और प्रभु
राजा, रतन और वीर
सब एक हो गए हैं.
आप रहते भी तो कैसे लड़ पाते.
मंहगाई सब के लिए डायन नहीं है किशोर भाई.
जवाब देंहटाएंकुछ के लिए तो सुरा सुंदरी की तरह आनंद देने वाली है.
हसबेंड स्टोर तो खुला है.
ब्रांडेड से लोकल तक
डिसपोजैबल भी है.