सोमवार, 24 जनवरी 2011

गणतंत्र दिवस मनई ले पर क्या जिगर में लगी आग है.

Posted by with 1 comment




लो आ गया एक और गणतंत्र दिवस!मालूम है ,क्या तोप मार लोगे आज के दिन!टीवी या मैदान पर सन्देश और राज्यों के विकास का " अर्ध सत्य "  बताने वाली झांकियां देखोगे?कर्मचारी इस जुगाड़ में होंगे कि कैसे  लगातार और छुट्टियों का जुगाड़ हो जाए.वैसे शुक्र, शनि या सोम ,मंगल को गणतंत्र दिवस आए तो यह जुगाड़ करने की तबीयत और मचल उठती है ताकि दो- तीन दिन की छुट्टी मिल जाए.इलाकेदार नेता चुनिन्दा कार्यक्रमों में अलापेंगे अपनी- अपनी ढपली,अपना -अपना राग.बाकी लोगों के लिए..कुछ नहीं तो आउटिंग,मिलना-जुलना या घर बैठकर आराम...यही होना है.रही युवा साथियों की बात-घूमेंगे -फिरेंगे ,नाचेंगे -गाएँगे ... ऐश करेंगे और क्या!!!
                                       गणतंत्र दिवस ... भारत के संविधान की बुनियाद का दिन. आज के  हालात- कहाँ का गण  और कहाँ का तंत्र! उम्र के हिसाब से सठिया चुके ( माफ़ कीजिए साठ वर्ष से अधिक हो गए इसलिए) गणतंत्र की हालत  आज क्या है ... क्या कभी इस बात पर सोचा गया है?खिसियाकर दद्दू पूछते हैं ," भैये!यह तो बताओ.. गणतंत्र के मायने क्या हैं?मैंने उन्हें टेंथ क्लास के  छात्र की तरह समझाया" गण " यानी BODY OF FOLLOWERS  और " तंत्र"    के मायने हैं RULE OR ADMINISTRATION.गणतंत्र दिवस  या REPUBLIC DAY में रिपब्लिक का अर्थ होता है गणराज्य ,लोकतंत्र या प्रजातंत्र.
                                     " प्रजातंत्र में प्रजा शब्द से क्या सामंती बू नहीं आती ? " दद्दू ने छेड़ने के लिहाज से पूछा." ठीक कह रहे हो ,इसलिए तो अब लोकतंत्र को व्यापक अर्थों में स्वीकार गया है.लोंक अर्थात नागरिक." मैंने जवाब दिया." लेकिन अखबार नवीस... 1950  में ढेर सारे संविधानों की चुनिन्दा खासियतों से बनाये गए हमारे देश के संविधान की समय सापेक्षता को लेकर क्या कुछ ज्वलंत मुद्दों पर बहस नहीं छेडी जानी चाहिए? 1950 और आज2010 के राजनैतिक और समाजार्थिक माहौल में जमीन -आसमान का फर्क नहीं है?
                                           " बात तो ठीक कह रहे हो दद्दू!लेकिन कहाँ कोई इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचता है? जनमानस ही जब कुछेक लचर कानूनों की समीक्षा और नागरिकों के दायित्व के मसले पर नहीं खदबदाता ,नीति निर्धारकों के कानो पर भला क्यूं कर जूं रेंगेगी?" अब आप ही बताओ दद्दू सच्चे लोकतंत्र के लिए जैसे " लोंक " चाहिए जैसा " तंत्र" चाहिए जैसे " नेता चाहिए  क्या आज हैं?बीते पांच वर्षों में जितने घोटाले हुए ,मीडिया ने जितने भ्रष्टाचारियों के नाम उछाले क्या किसी पर भी जवाबदेही तय की गई. चाहे व्यक्ति पर हो या सरकार पर जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी  यह देश भाड़ बनता रहेगा.    
                                                                                      गांधी,नेहरू,सुभाष,पटेल शास्त्री , जैसे जमीने स्तर के नेता 
 और दीगर  क्रांतिकारियों के फलसफे पर अमल होने की क्या कोई उम्मीद की जा सकती है?वह पीढ़ी अब पुस्तकों  तक सिमट गई है.पार्टियों की बेशर्म नूरां कुश्ती का तमाशा जगजाहिर है.शहीदों की याद दिलाने वाले गाने हड़ताली पंडालों में ही सुनाई दे जाते है.आधुनिक भारत की बुनियाद के दौर में बीसवी सदी के कुछ नेताओं ने अवश्य ही देश को विकास की रौशनी दी पर आज देश की हालत डा. हनुमंत नायडू के शब्दों में
                                     सपने बिछाके  दो-चार ओढ़कर ,सोता है देश देखिए सरकार ओढकर 
                                     भाषण छपा है देश में खुशियाँ बरस रहीं ,लेटे है खाली पेट हम अखबार ओढकर 
गणतंत्र दिवस पर यह सोचा जाना चाहिए की विकास की रौशनी से सुदूर गाँव ला गरीब कब तर-बतर होगा!जहाँ तक नेताओं का सवाल है जमीरी (जमीर वाले ) और जमीनी दोनों ही स्तर के नेता अब दुर्लभ हो चुके हैं.यह सोच का बिंदु  है क्योंकि _ "आज की राजनीति की रम्भा ,दिल कहीं,दलबदल रही है कहीं".
                                       खून  करते हैं वे नकाबें और दास्तानें पहन 
                                        जुर्म को अपने छिपाने में कुशल अत्यंत हैं.
वाकई जुर्म को छिपाने में उनकी कुशलता काबिल -ऍ-तारीफ़ है.इसलिए तो पहले के नेता जमीन दान ( भूदान) करते थे और आज के नेता भू-माफिया के साथ मिलकर या स्वयम बनकर भूमि डकार जाते हैं...या अनाप-शनाप रेट हासिल कर लेते हैं.डा. अर्बनात ने कहा  है, ALL POLITICAL PARTIES DIE AT LAST OF SWALLOWING THEIR OWN  LIES "जो कुछ तो सच है पर यह भी सच है कि देश का काफी पैसा नौकरशाह और सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार की भेट चढ़ रहा है.
                                    दद्दू  ! गणतंत्र दिवस मनाते हैं हम सब लेकिन आज तक क्या जिम्मेदार नागरिक बन सके हैं?दूसरी ओर नागरिक सरकार पर निर्भरता अपना अधिकार  समझते हैं लेकिन अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह गैर-जिम्मेदार हैं.क्या शहर की साफ़-सफाई,बेतरतीब यातायात ,प्रदूष्ण ,कार्यालयीन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता  की कोई जवाबदेही नहीं?महंगाई, व् राजनैतिक घोटालों पर जानता की आवाज बुलंद नहीं होनी चाहिए?लोग अपने -आपमें इतने आत्म केन्द्रित हो गए हैं के गंभीर मसले पर सोचने पर मजबूर नहीं होते कि-        
      क्या हो रहा ही सड़कों पे रात-दिन ,लोगों निकल के देखो आरामगाह से 
जिम्मेदार नागरिक बनना जरूरी है.देश के कुछ सड़े हुए सिस्टम  में तबदीली लाने करप्शन फ्री बनाने प्रत्येक नागरिक को नैतिक मूल्य जीवित रखने होंगे बैड गवर्नेंस को गुड गवर्नेंस ( अखबारी रिपोर्ट नहीं, हकीकत में बदलने ईमानदार जन-भागीदारी आज की अनिवार्यता है.
                           बहरहाल, आज तो गणतंत्र दिवस मनई  ले...पर याद रहे बदहाली का खुशहाली में कायाकल्प करने हरेक के जिगर  में देश के प्रति स्वाभिमान की आग जलनी चाहिए.भरोसा ही कि वो सुबह कभी तो आएगी पर जरूरत है अलख जगाने वाले, मशालों से लैस अनगिनत हाथों की .
                                                             गणतंत्र दिवस क़ी शुभ कामनाएँ
                                                                             किशोर दिवसे 
                                                                             
                                       

1 टिप्पणी:

  1. किशोर जी आपने बहुत ही भावपूर्ण व सुन्दर लेख लिखा है...गणतंत्र दिवस पर हो रहे आजकल की धूमधाम और इतने साल बाद भी देश का गणतंत्र का अपमान करते लोगों कि दास्ताँ आपने बड़ी सजगता से वर्णित किया है...ऐसे ही लेख आप शब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकतें है....

    जवाब देंहटाएं