मंगलवार, 11 जनवरी 2011

फौलाद का टुकड़ा और कपूर की टिकिया

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बरसात की एक रात थी.बिजली गुल थी और घुप्प अँधेरे में शमा जल रही थी.गोया कि मोम के बदन से धागे का जिगर जल रहा था.इधर हवा का एक झोंका आया और तकरार शुरू हो गई उन दोनों के बीच.
"तिल -तिल कर जल रही हूँ मैं.... तभी तो यहाँ पर स्याह लिबास को चीरने के लिए रोशनी है.... लेकिन तुम क्या जानो पल-पल-जलने के दर्द को "- उस धागे ने पूरी तरह ऐठते हुए कहा जिसका जिगर मोम के बदन से ढका हुआ था .
"ठीक है... ठीक है...पर तुम भी यह मत भूलो कि मेरे जिस्म का कतरा-कतरा पिघलता है....क्यूँ भूल गए क्या ?आखिर तुम्हे भी तो मैंने  अपने साथ और अपने भीतर सम्हाल कर रखा है."-पिघलकर गिरती मोम के बदन ने भी अपनी जिद छिपाते हुए कहा भले ही ह़र क्षण उसका बदन घटता जा रहा था.धागा और मोम का बदन दोनों ही अपनी-अपनी अकड में ऐंठ रहे थे.इधर मासूम लौ उनकी इस अहंकार भरी तू-तू,मैं-मैं से थरथरा रही थी.
                        
 लौ के इर्द-गिर्द मंडराता पतंगा बड़े ध्यान से उनकी तकरार सुन रहा था.,सोचने लगा " क्या इनका रिश्ता भी पति-पत्नी की तरह नहीं है ...लेकिन अपना-अपना अहंकार नहीं छोड़ रहे हैं ये दोनों.आखिर पतंगे से रहा न गया और उसने जलती शमा के धागे और मोम के बदन से कहा ," चुप रहो बेवकूफों ...! लड़ो मत!सुनो विक्रम और वेताल की कहानी....तुम दोनों को अपनी कमजोरी समझ में आ जाएगी.और पतंगे ने पर फडफडाते हुए किस्सा यूं शुरू किया....
                                  वेताल का शव कंधे  पर लादकर हमेशा की तरह राजा विक्रमार्क जा रहे थे गंतव्य की ओर.रास्ते में सफ़र काटने की दृष्टि से वेताल ने  किस्सागोई शुरू की.पर साथ में ताकीद भी कि जवाब जानते हुए भी अगर तुमने उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे.और जवाब दिया तो मैं फिर लटक जाऊँगा अपनी डाल पर.
        
 खैर किस्सा कुछ इस तरह से शुरू हुआ ,"  फौलाद का एक  टुकड़ा और कपूर की टिकिया  साथ-साथ रहते थे एक ही आले मैं.रोज दोनों ही एक-दूसरे की बखिया उधेड़ते रहते.एक रोज फौलाद ने कहा ,"जानते हो मेरी अहमियत!सुई से लेकर जहाज तक मुझसे ही बनते हैं... घर -बाहर की अनगिनत चीजें... है न कमाल!"कपूर की टिकिया का स्वर भी तीखा था.उसने भी प्रत्युत्तर दिया,"जानते हो तुम ,जब लौ मुझे जलती है .. खुद जलकर समाप्त हो जाती हूँ पर सारे घर को पवित्र गंध से महका देती हूँ.मेरी वजह से ही ह़र जगह सुगंध है" दोनों ही अपने दंभ में चूर थे,पूरी तरह गर्वोन्मत्त.
                                  बारिश के दिन आये और पानी की बौछारें फौलाद पर पड़ी.रखे-रखे उसमें जंग लग गया और मोर्चे से वह बदशक्ल हो गया.इधर कपूर की टिकिया भी अभिमान से चूर थी.बारिश के बाद की तेज हवाओं ने उसे आहिस्ता-आहिस्ता अस्तित्वहीन कर दिया.फौलाद और कपूर दोनों ही अब उखड़े-उखड़े और कटे-कटे से रहने लगे.वक्त गुजरता गया और कई दिनों बाद-
                                   दोनों के भीतर  से एक-एक रूहानी फ़रिश्ता बाहर निकला .पहले रूहानी फ़रिश्ते ने जंग लगे फौलाद के टुकड़े को गलाकर उसका पूजा का थाल बनाया.इधर दूसरे फ़रिश्ते ने कपूर की टिकिया को खूब समझाया तब कपूर ने स्वतः को पूजा के थाल को समर्पित कर दिया .थाल में रखी चीजों के साथ अब कपूर की टिकिया पूरी तरह सुरक्षित  और खुश थी.पूजा का थाल चमचमाने लगा था .दीया जल रहा था और कपूर की टिकिया खुद जलकर भी समूचे घर को महका रही थी.सारी चीजों को अपने साथ सहेज लिया था उस थाल ने.दोनों ही फ़रिश्ते समझाइश देकर लुप्त हो गए थे.
                       कथा सुनकर वेताल ने राजा विक्रमार्क से पूछा"यह बताओ राजा, फौलाद का टुकड़ा और कपूर की टिकिया वास्तव में कौन थे दोनों में परिवर्तन कैसे आया?राजा विक्रमार्क ने गहरी सांस ली और पल भर रूककर कहना शुरू किया-
" सुनो वेताल!फौलाद का टुकड़ा और कपूर की टिकिया दरअसल पति-पत्नी का रिश्ता है.दोनों के बीच "इगो" अथवा अहम के टकराव तकरार का मुख्य कारण.फौलाद के टुकड़े का का थाल बनना आत्मबोध है और कपूर का थाल को स्वयमेव समर्पण करना अपने मस्तिष्क में बने अहंकार का कुहासा समाप्त करना है.और ... ये जो दोनों फरिश्तों की बात कर रहे हो ना वह दोनों पति-पत्नी का विवेक है.इधर कपूर ने थाल को समर्पित किया तब थाल ने उसे अपने भीतर समेट लिया.फौलाद भी पूजा का थाल तब बना जब उसने अपना अहंकार छोड़ा.दोनों ही बातें साथ-साथ हुईं.दोनों को ,भीतर जड़ें जमाये अहंकार ने निर्जीव और अस्तित्वहीन बना दिया था.यानी पति-पत्नी का रिश्ता मुरझा गया था.जैसर ही यह रिश्ता दर्प-विहीन हुआ सारा घर पूजा के थाल में रखी जलती टिकिया की गमक से महकने लगा..सारे परिवार में खुशयां छा गयीं.
                                    जोरों से अट्टहास कर वेताल ने राजा विक्रमार्क से कहा-राजा!तूने मेरी बातों का सही-सही जवाब दिया और ये मैं चला... वेताल अट्टहास कर फिर जाकर लटक गया उसी वृक्ष की डाल पर जहाँ से राजा विक्रमार्क उसे कंधे पर बिठाकर लाया था.
                                        आज बस इतना ही... अपना ख्याल रखिये...
                                                                              किशोर दिवसे 

                                             
                                            
                                           








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