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अमीर और गरीब में असमानता की खाई और भी गहरा गई है। लिहाजा अब मसला गरीबी और गरीब नहीं रहा बल्कि अमीरी की होड़ के चलते महाअमीर बनने से अमीरो की संख्या कम होने में दिखाई दे रहा है। ऑक्सफैम रिपोर्ट मुताबिक़ दुनिया की गरीबतम आबादी की संपत्ति 2010 से अब तक ट्रिलियन डॉलर ( छत्तीस के बाद चौदह शून्य ) घट गई है। चौंकाने वाली बात यह है की इसी अवधि के दरम्यान विश्व की आबादी में 400 मिलियन की बढ़ोत्तरी हुई। इसी दौर में दुनिया के अमीरतम 62 रईसों की संपत्ति आधा ट्रिलियन से भी अधिक 1. 76 ट्रिलियन डॉलर बढ़ी। असमानता की की वजह से हालिया महामीरों की सूची में शामिल 62 में से सिर्फ 9 ही महिलाएं हैं यानी बाकी 53 पुरुष। दुनियावी स्तर पर अमीर - गरीब खाई से जुड़ा विमर्श बीती छमाही से जारी है। फिर भी महाअमीर और दीगर दुनिया में नाटकीय रूप से खाई अब ज्वालामुखी का क्रेटर बन चुकी है। बीते बरस दावोस बैठक में अंदेशा जताया गया था की सारी संपत्ति दुनिया के सिर्फ 1 फीसदी महाअमीरों के कब्जे में होगी ,2015 में सही साबित हो गया। अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। भारत सरकार की आर्थिक नीतियां मौजूदा केंद्र सरकार के आईने में ग़रीबों के लिए कितनी फायदेमंद हैं ?कितने लाभान्वित हो रहे हैं कार्पोरेट घराने ?क्या देश में अमीरी - गरीबी की खाई कुछ पटने की उम्मीद है?
12:58 am
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