सोमवार, 18 जनवरी 2016

कुदरती मधु सर्जक हैं हम....

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कुदरती मधु सर्जक हैं हम....
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उस पंखे पर टंगी है एक
शहद की कुदरती फैक्टरी
न जाने क्यों करती है मजबूर
सोचने पर मुझे आज
जब मैं बैठा हूँ कुछ ही दूर
और छितराई बातों के दरम्यान
सोचने लगते हैं कुछ लोग भी
पर यकायक उठती है एक लहर
उसी हसीं कुदरती फैक्टरी से
आँखें मिलाकर शहदिया कुनबा
पूछने लगता है सरेआम
दोस्त!आखिर इंसान ही रहोगे!
कैसे समझोगे हमारा समर्पण
क्यों सिर्फ खौफज़दा होते हो?
कहीं शिकार न हो जाए कोई बन्दा
अरे!यह भी कभी सोचा तुमने
इंसान तो इंसान के बारे में
बुरा सोचता,करता भी है उसका
बिना जाने और पहचाने भी
शहदिया कुनबा हमारा लेकिन
नहीं देता दंश किसी को भी
जब तक कोई छेड़े न हमें
सो...मत हो ख़ौफ़ज़दा फिजूल
कोई इंसान थोड़े ही हैं हम
मिठास भरते हैं जिंदगी में
कुदरती मधुसर्जक हैं हम
(रविवार 17 january सुबह बिलासपुर में ही डॉ .लाड़ीकर के फार्म हाउस में यह नज़ारा दोस्तों के बीच देखते हुए सोचा था मैंने.....)

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