शनिवार, 9 जनवरी 2016

भूख से अब भी तड़पते हैं हजारों इन्सां.......घांस के बाद बिल्ली और कुत्ते भी मारकर खाने लगे है लोग !

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वो शख्स भूख मिटाने के वास्ते
मेरे अलाव की लपटें निगलने लगा है
जर्द  चेहरा , निगाहें भी हैं कितनी परेशां
भूख से अब भी तड़पते हैं हजारों  इन्सां

भूख से तड़पने का यह दहशतनाक और  मार्मिक मंजर है सीरिया का . यह पश्चिम एशियाई देश है  जिसकी सरहद पश्चिम में लेबनान, और भू मध्य सागर  से सटी है . उत्तर में तुर्क और दक्षिण में जॉर्डन .वैसे तो सीरिया में उपजाऊ मैदान ,पहाड़ियां  और रेगिस्तान भी हैं .विविधजातीय  बसाहटों में सीरियाई अरब , ग्रीक , आर्मीनियाई,असीरियाई ,कुर्द,सिरकेसियन ,माण्डियन और तुर्क भी शामिल हैं .धर्मावलम्बियों में सुन्नी , अलावित ,ईसाई ,ड्रूज ,माण्डियन  , शिया ,सलाफी और यज़ीदी शामिल हैं .सीरिया में सुन्नी अरबी  बहुसंख्यक हैं .
                       आज के दौर में सीरिया अरसे से जारी गृहयुद्ध की वजह से भुखमरी का शिकार हो चुका है . हालात की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग पेट की आग बुझाने घास तक खाने को मजबूर हो चुके हैं .आहिस्ता - आहिस्ता तेज होती मौत की दस्तक ने अब तक दमिश्क से लगे शहर मदाय में तेईस  लोगों की जान ले ली.  अमूमन चालीस हजार लोग भुखमरी की कगार पर हैं .भूख से उपजी दहशत का मंजर इस कदर  दर्दनाक है कि  घांस के बाद बिल्ली और कुत्ते जैसे जानवरों को भी मारकर खाने की शुरुआत हो चुकी है . इस समूची आपदा की बुनियादी वजह सिर्फ और सिर्फ सीरियाई गृहयुद्ध और वहां पर जारी  संघर्ष ही है .अमेरिकेयर नाम की संस्था ने सीरियाई में  तथा नजदीकी देशों में रह रहे विस्थापितों को 2012  से आज तक   4 .4 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता की है .दीगर वैश्विक फोरम भी इस त्रासदी से निपटने खुले दिल से आगे आ रहे हैं .
                      दरअसल मुद्दा आर्थिक मदद का नहीं बल्कि गृह युद्ध से जूझते देश का है  जो लगातार भीतरी संघर्षों  का शिकार होता रहा . ताजातरीन गुहार के असर से लेबनान में विस्थापित  अरसाल शरणार्थी शिविर में शरण लिए सीरियाई बच्चों की मदद के लिए  दो जहाज राहत सामग्री  भेजी जा चुकी है  .मदद का सिलसिला जारी है . फिर भी दुनिया इस मसले पर गंभीरता से सोचने पर  मजबूर हो चुकी है कि कायनात के जितने भी देश गृह युद्ध से जूझ रहे हैं या जातीय अथवा धर्मीय संघर्षों का शिकार हैं वहां पर भी क्या कालांतर में ऐसी  ही परिस्थिति बनने की नौबत आएगी?
                सीरियाई गृह युद्ध दरअसल बहुतरफ़ा सशस्त्र संघर्ष है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय दखलअंदाजियां हो रही हैं .यह अशांति 2011  की गर्मियों के शुरूआती दिनों से ही प्रारम्भ हुई थी .जिसे " अरब स्प्रिंग प्रोटेस्ट " नाम दिया गया था . .यह प्रेसीडेन्ट बशर अली की सरकार  के विरुद्ध देशव्यापी मुखालफत  थी ., सैन्य हस्तक्षेपों के विरोध में यह सामूहिक  जन जिहाद भी था  . दिसंबर 2012 में छपी संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ यह संघर्ष घोर पंथिक जिहाद में परिणीत हो गया था .. इसमें अलावित  शासकीय बल ,मिलिशिया और दीगर शिया कुनबे  भिड़ते रहे . हालांकि सरकार और विपक्ष इस सच को नकारती रही .
                  आज की तारीख में सीरिया के  समूचे इलाकों में कुपोषण तो है ही ,जुलाई महीने से प्रेसीडेन्ट बशर अल असद की सेनाओं की घेरेबंदी है .लिहाजा ईंधन , रसद या दवाएं भी नहीं मिल रहीं . अब  तो  विपक्ष में मौजूद राष्ट्रीय गठबंधन ने भी मानवीय त्रासदी की  आवाज बुलंद कर दी है .कुछ इलाके  ऐसे भी हैं जहाँ पर हफ्ते भर से लोग भूख से तड़प रहे हैं .
                        इतिहास के पन्ने पलटे तो हम देखते हैं ,शुरूआती  दौर में तो सीरियाई सरकार अपने  सशस्त्र बल के भरोसे रही . कालांतर में स्थानीय सुरक्षा इकाइयों  के बनने के बाद  उसे  रूस , इरान और ईराक से वित्तीय ,तकनीकी और राजनैतिक मदद मिलने लगी   सन 2013  में  गृहयुद्ध में इरान समर्थित हिजबुल्लाह ने सीरियाई सेनाओं का साथ दिया . सच तो यह भी है कि विदेशी दखल अन्दाजी की वजह से सीरियाई गृहयुद्ध  को " प्रोक्सी वार " भी कहा जाने लगा .सितम्बर 2015  में रूस , इराक , ईरान और सीरिया ने बग़दाद में साझा गतिविधि केंद्र बनाया .बाद में रूस ने सीरिया के ही कहने पर एकतरफा हवाई हमले कर दिए .  नतीजतन अमेरिका- रूस प्रोक्सी वार  की तत्कालीन  स्थिति को  कुछ विश्लेषकों ने " प्रोटो  वर्ल्ड वार "की संज्ञा भी दी . उस दौर में अमूमन दो दर्जन देश  दो समानांतर युद्ध में रत रहे .
          इतिहास गवाह है   1980  के दौर में सीरिया ने रासायनिक शस्त्रों का जखीरा इकठ्ठा किया था . इसकी बुनियादी वजह थी क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताएं  और इजरायल से इसकी काटो -काट दुश्मनी . 1967  और 1973  में मिली शिकस्तों ने  सीरिया को आइना दिखा दिया था .
                   दुनियावी संगठनों ने सीरियाई  सरकारऔर विपक्षी दलों पर कुछ मानव अधिकारों के उल्लंघन का भी आरोप लगाया है . गृह युद्ध की वजह से आबादी व्यापक रूप से विस्थापित भी हुई .लिहाजा अमेरिका ,यूरोपीय संघ ,रूस,चीन और  मध्य पूर्व के कुछ अन्य देशों (तुर्क, इजिप्ट सऊदी अरब और पहली दफे ईरान ने भी शान्ति वार्ता की पहल की है  जिससे  पीड़ादायक गृह युद्ध की समाप्ति हो सके . चौकाने वाला तथ्य यह है  कि  सरकार विरोधी  सशस्त्र  संघर्षों की वजह से बीते साढ़े चार बरसों में सीरिया में  250,000  से ज्यादा सीरियाई अपनी जान गवां बैठे हैं .आज की तारीख में वही संघर्ष  गृह युद्ध की शक्ल अख्तियार कर चुका है.  आज वक्त का तकाजा है  कि  सारी दुनिया इस मसले पर फौरी तरीके से हस्तक्षेप करे. सारे दुनियावी फोरम भूख से तड़पते सीरिया ही नहीं वरन सभी ऐसे देशों की पीड़ित मानवता के लिए एकजुट हों. जब मसला भूख का होता है तब पेट या आंतें चीखकर यही कहती हैं -
         

भीड़ से छिटककर आता हूँ मैं
किसी परछाई की तरह /और
बैठ जाता हूँ हर इंसान की बाजू में
कोई भी नहीं देखता मुझे/पर
सभी देखते हैं एक-दूसरे का चेहरा
वे जानते हैं की मैं वहां पर हूँ
मेरा मौन है किसी लहर की ख़ामोशी
जो लील लेता है बच्चों का खेल मैदान
धीमी रात्रि में गहराते कुहासे की तरह
आक्रान्ता सेनाएं रौंदती,मचाती हैं तबाही
धरती और आसमान में गरजती बंदूकों से
लेकिन मैं उन फौजों से भी दुर्दांत
गोले बरसाती तोपों से भी प्राणान्तक
राजा और शासनाध्यक्ष देते हैं आदेश
पर मैं किसी को नहीं देता हुक्म
सुनाता हूँ मैं राजाओं से अधिक
और भावपूर्ण वक्ताओं से भी
निः  शपथ करता हूँ शब्दों  को
सारे उसूल हो जाते हैं असरहीन
नग्न सत्य अवगत हैं मुझसे
जीवितों को महसूस होने वाला
प्रथम और अंतिम शाश्वत हूँ मैं
भूख हूँ मैं... भूख हूँ मैं!
(राबर्ट बिनयन की मेरे द्वारा अनूदित  कविता
.
                    

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