बुधवार, 20 जनवरी 2016

अमीर और गरीब में असमानता की खाई और भी गहरा गई है।

Posted by with No comments

==============================
अमीर और गरीब में असमानता की खाई और भी  गहरा गई है। लिहाजा अब मसला गरीबी और गरीब नहीं रहा बल्कि अमीरी  की होड़ के चलते  महाअमीर बनने से अमीरो की संख्या कम होने में दिखाई दे रहा है।  ऑक्सफैम रिपोर्ट  मुताबिक़  दुनिया की गरीबतम आबादी की संपत्ति 2010  से अब तक ट्रिलियन डॉलर ( छत्तीस के बाद चौदह शून्य ) घट गई है।  चौंकाने वाली बात यह है की इसी अवधि के दरम्यान विश्व की आबादी में 400  मिलियन की बढ़ोत्तरी हुई।  इसी दौर में दुनिया के अमीरतम 62 रईसों की संपत्ति आधा ट्रिलियन से भी अधिक 1. 76  ट्रिलियन डॉलर बढ़ी।  असमानता की  की वजह से हालिया महामीरों की सूची में शामिल 62   में से सिर्फ 9   ही महिलाएं हैं यानी बाकी 53 पुरुष। दुनियावी स्तर पर अमीर - गरीब खाई  से जुड़ा विमर्श बीती छमाही से जारी है। फिर भी महाअमीर और दीगर दुनिया में नाटकीय रूप से खाई अब ज्वालामुखी का क्रेटर बन चुकी है। बीते बरस दावोस  बैठक में अंदेशा जताया गया था की सारी  संपत्ति दुनिया के सिर्फ 1 फीसदी  महाअमीरों के कब्जे में होगी ,2015 में सही साबित हो गया। अब तक  इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। भारत सरकार की आर्थिक नीतियां मौजूदा केंद्र सरकार के आईने में ग़रीबों के लिए कितनी फायदेमंद हैं ?कितने लाभान्वित हो रहे हैं कार्पोरेट घराने ?क्या देश में अमीरी - गरीबी की खाई कुछ पटने की उम्मीद है?

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

Posted by with No comments
साहित्य के विकास के लिए मिले साहित्यकार 






बिलासपुर में पिछले कुछ वर्षों से जनवरी महीने की कोई एक सुबह उल्लेखनीय होती है। साहित्य और कला से सम्बंधित लोगों को इस उल्लेखनीय सुबह की प्रतीक्षा हुआ करती है। इस अनौपचारिक आयोजन का यह १० वाँ वर्ष था। 
हिन्दी के एक साहित्यकार सतीश जायसवाल ने अपने कुछ मित्रों के साथ इस अनौपचारिक आयोजन की शुरुआत की थी। उनका कहना है कि यह कोई आयोजन नहीं। बल्कि कुछ ऐसे लोगों का आपस में मिलना-जुलना है जो साहित्य और कला की आपसदारी में भरोसा रखते हैं। और इस समझ को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसकी शुरुआत बिलासपुर के इंडियन कॉफी हॉउस मेँ की गयी थी। कॉफ़ी के साथ किसी एक रचनाकार की कहानी अथवा कविता का पाठ उसमें जोड़ दिया गया। बाद में किसी एक रचनाकार या कलाकार को आमंत्रित किया जाने लगा।  इस वर्ष नगर के एक कलागुरु श्री विसु पिल्लै और ''स्पिकमैके'' के बिलासपुर प्रमुख श्री अजय श्रीवास्तव को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। ''स्पिकमैके'' संगीत और नृत्य कला के क्षेत्र में सक्रिय राष्ट्रीय संगठन है। और श्री पिल्लै स्थानीय बच्चों को चित्रकला का निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। 
इस वर्ष यह आयोजन नगर से १० किलोमीटर दूर, बिलासपुर के एक मशहूर अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ० प्रकाश लाडीकर के फ़ार्म हॉउस में सम्पन्न हुआ। डॉ० लाडीकर स्वयं के कवि हैं और कला के प्रति अनुराग रखते हैं। उन्होंने कलागुरु श्री पिल्लै के पास प्रशिक्षण पा रहे बच्चों को लैण्डस्केपिंग के लिए अपने यहां आमंत्रित भी किया। इस अवसर पर उपस्थित, बिलासपुर रेल मण्डल की वरिष्ठ वाणिज्य प्रबंधक श्रीमती रश्मि गौतम ने भी श्री पिल्लै के सामने एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने प्रस्तावित किया कि बिलासपुर रेल मण्डल उनके कलाकारों के लिए एक उपयुक्त स्थान उपलब्ध करायेगा जहां वे अपना काम कर सकेंगे। श्रीमती गौतम न सुझाया कि वहाँ कलाकारों को  काम करता हुआ देखने से नगर में कला चेतना का विकास होगा।  इस अवसर पर बिलासपुर रेलवे ज़ोन के मुख्य वाणिज्य प्रबन्धक श्री जी० सी० मीणा, चीफ कंट्रोलर श्री विनय चतुर्वेदी, श्री खुर्शीद हयात और भारतीय रेल के श्री तनवीर हसन भी उपस्थित थे। श्री खुर्शीद हयात उर्दू के जाने माने कहानीकार हैं। और श्री तनवीर हसन एक सुलझे हुए कवि हैं। इस अवसर पर उपस्थित वन अधिकारी श्री ओ० पी० चौबे ने भी श्री पिल्लै के कला छात्रों को खोन्ड्रा स्थित नेचर एन्ड एन्वायरनमेंट क्लब भ्रमण के लिए आमंत्रित किया।
हिंदी दैनिक ''बी पी एन टाइम्स'' के राज्य सम्पादक श्री सजीव बिस्वास, पत्रकार श्री अरविन्द शर्मा, श्री रतन जैसवानी, श्री किशोर दिवसे भी इस आयोजन में शामिल थे। एस० ई० सी० एल० के जनसम्पर्क प्रबंधक श्री मिलिंद चहान्डे तथा गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के श्री सत्येश भट्ट इस आयोजन में विशेष आमंत्रित थे। उद्योगपति कवि श्री दलजीत सिंह कालरा, श्री संजय पाण्डेय तथा अरपा फिल्म सोसाइटी के एक संस्थापक सदस्य श्री सुखवंत सिंह भी इस आयोजन में शामिल थे। श्री सिंह ने बिलासपुर में फिल्म दृष्टि के विकास में अरपा फिल्म सोसाइटी के अपने अनुभव सबके साथ साझा किये।

xxxxx 

(रायपुर से प्रकाशित होने वाले हिंदी दैनिक ''बी पी एन टाइम्स'' के (बिलासपुर, दिनांक २० जनवरी २०१६ के अंक) में, पृष्ठ १२ पर प्रकाशित यह समाचार, इस अखबार के छत्तीसगढ़ संपादक श्री सजीव बिस्वास के सौजन्य से)। 

सोमवार, 18 जनवरी 2016

कुदरती मधु सर्जक हैं हम....

Posted by with No comments




कुदरती मधु सर्जक हैं हम....
==============
उस पंखे पर टंगी है एक
शहद की कुदरती फैक्टरी
न जाने क्यों करती है मजबूर
सोचने पर मुझे आज
जब मैं बैठा हूँ कुछ ही दूर
और छितराई बातों के दरम्यान
सोचने लगते हैं कुछ लोग भी
पर यकायक उठती है एक लहर
उसी हसीं कुदरती फैक्टरी से
आँखें मिलाकर शहदिया कुनबा
पूछने लगता है सरेआम
दोस्त!आखिर इंसान ही रहोगे!
कैसे समझोगे हमारा समर्पण
क्यों सिर्फ खौफज़दा होते हो?
कहीं शिकार न हो जाए कोई बन्दा
अरे!यह भी कभी सोचा तुमने
इंसान तो इंसान के बारे में
बुरा सोचता,करता भी है उसका
बिना जाने और पहचाने भी
शहदिया कुनबा हमारा लेकिन
नहीं देता दंश किसी को भी
जब तक कोई छेड़े न हमें
सो...मत हो ख़ौफ़ज़दा फिजूल
कोई इंसान थोड़े ही हैं हम
मिठास भरते हैं जिंदगी में
कुदरती मधुसर्जक हैं हम
(रविवार 17 january सुबह बिलासपुर में ही डॉ .लाड़ीकर के फार्म हाउस में यह नज़ारा दोस्तों के बीच देखते हुए सोचा था मैंने.....)

शनिवार, 16 जनवरी 2016

"वायुमार्ग " के जरिए विकास सुनिश्चित

Posted by with No comments
"वायुमार्ग " के जरिए  विकास सुनिश्चित

बलरामपुर- रामानुजगंज  के पास ताम्बेश्वर ग्राम में 13. 32  करोड़ की  लागत से नवनिर्मित्त हवाई पट्टी का लोकार्पण हालिया 14  जनवरी को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किया है। 1  जनवरी 2012 को अस्तित्व में आया बलरामपुर जिला पहले सरगुजा में शामिल था। तीन वर्ष की अवधि में यहाँ पर हवाई पट्टी  का बनना इस तथ्य को इंगित  करता है कि इस क्षेत्र में विकास  की आवश्यकता को राज्य के राजनैतिक नेतृत्व ने भांप लिया। हवाई पट्टी निहायत जरूरी थी भी क्योंकि 3806  . 08वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पसरा अंबिकापुर ( सरगुजा संभाग ) का यह इलाका धुर नक्सली प्रभावित  रहा है।   यूं तो  सरगुजा में ही नक्सली आमद हो चुकी है  जिसके मद्देनजर बरास्ता हवाई पट्टी तथा शीघ्र ही रेल विस्तार की कार्ययोजना का खाका तैयार किये जाने का  भरोसा मुख्यमंत्री रमन सिंह ने दिया है। वह भी उस वक्त जब वे अपने सम्बोधन में कह रहे थे कि नक्सल समस्या के खात्मे के साथ के साथ विकास हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
          वायुमार्ग ,रेल यातायात  विस्तार तथा सडकों के  आल-जाल की सघनता ही विकास की मुख्यधारा को दूरस्थ ( रिमोट या माइक्रो रिमोट ) क्षेत्र के नजदीक लाती है, यह सिद्धांत विकास पत्रकारिता का सरकारों द्वारा आजमाया गया वैश्विक स्तरीय बुनियादी सिद्धांत है।  लिहाजा रामानुजगंज जिले में हवाई पट्टी का बनना इस क्षेत्र के अलावा निकटवर्ती इलाकों  के विकास को भी गतिशील करेगा। इस तथ्य  में कोई  दो मत नहीं हो सकता। ऐसा इसलिए भी क्योंकि छत्तीसगढ़ का यह उत्तरी क्षेत्र झारखंड की  .सीमा से सटा  हुआ है। रांची तथा रायपुर हवाई अड्डे निकटवर्ती होने की वजह से विकास की संभावना और भी अधिक सुनिश्चित हो जाती है। फिलवक्त  गढवा और अम्बिकापुर  स्टेशन रामानुजगंज जिले के बलरामपुर  हैं। भविष्य की रेल विस्तार योजनाएं निश्चित रूप से प्रभावकारी साबित होंगी।
           समूचा सरगुजा ही  , अपार वन सम्पदा ,ऐतिहासिक पुरावशेषों , खनिज अयस्क ,एडवेंचर स्पोर्ट्स,तथा पर्यटन स्थलों आदि के लिए सर्वानुकूल इलाकों की अवस्थितता की वजह से संसाधन सम्पन्न है। लिहाजा  वायुमार्ग से जुड़ना अवश्य ही विकास को गतिशील करेगा। दरअसल , वायुमार्ग से किसी शहर का जुड़ना इसलिए भी फायदेमंद होता है क्योकि यह उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित  करता है। अब , यह जवाबदेही सरकार की होगी कि उद्योग ,पर्यावरण सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करें। रोजगार निर्माण के प्रति भी क्षेत्रीय जनमत  का सम्मान करें। बजरिये जनचेतना के उत्प्रेरण ऐसा किया जाना भी चाहिए।
बलरामपुर ही नहीं देश के जिस किसी शहर में वायुमार्ग का विकास हुआ राजनैतिक और समाजार्थिक विकास को भी रफ़्तार मिली. निश्चित रूप से यह भी ध्यान दिया जाना जरूरी होगा कि पुरानी या नयी हवाई पट्टी पर कोई निजी रसूखदार अपना कब्जा नहीं कर सके कर सके। रखरखाव और मॉनिटरिंग भी उतनी मजबूती से  है।
                वायुमार्ग से विकास सुनिश्चित   करने छत्तीसगढ़ सरकार को चाहिए कि  छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख शहरों को चाहे वे सरगुजा या बस्तर जैसे दूरस्थ  इलाकों में अवस्थित हों या  दीगर औद्योगिक शहर हवाई पट्टियों  के   निर्माण के अलावा रेल यातायात विस्तार की   सुगमता से भी जोड़ें। फिलवक्त रेल-सड़क यातायात विस्तार की अनेक योजनाएं क्रियान्वयन के चरण में हैं। फिर भी ,वायुमार्ग से  राज्य में व्यक्तिगत और सामूहिक विकास सुनिश्चित करने की महती जिम्मेदारी स्थानीय जनप्रतिनिधियों की होगी। जनअपेक्षाओं को मूर्त रूप देने नीति निर्धारकों के जरिये क्रियान्वित कराने की जिम्मेदारी भी उनकी है। यकीनी तौर पर बहुआयामी विकास में वायुमार्गों का व्यवहारिक  रूप से भागीदार होना सुनिश्चित  करने में रचनात्मक जनचेतना का अत्यंत मुखर होना आज सर्वोपरि  है।        

शनिवार, 9 जनवरी 2016

भूख से अब भी तड़पते हैं हजारों इन्सां.......घांस के बाद बिल्ली और कुत्ते भी मारकर खाने लगे है लोग !

Posted by with No comments












वो शख्स भूख मिटाने के वास्ते
मेरे अलाव की लपटें निगलने लगा है
जर्द  चेहरा , निगाहें भी हैं कितनी परेशां
भूख से अब भी तड़पते हैं हजारों  इन्सां

भूख से तड़पने का यह दहशतनाक और  मार्मिक मंजर है सीरिया का . यह पश्चिम एशियाई देश है  जिसकी सरहद पश्चिम में लेबनान, और भू मध्य सागर  से सटी है . उत्तर में तुर्क और दक्षिण में जॉर्डन .वैसे तो सीरिया में उपजाऊ मैदान ,पहाड़ियां  और रेगिस्तान भी हैं .विविधजातीय  बसाहटों में सीरियाई अरब , ग्रीक , आर्मीनियाई,असीरियाई ,कुर्द,सिरकेसियन ,माण्डियन और तुर्क भी शामिल हैं .धर्मावलम्बियों में सुन्नी , अलावित ,ईसाई ,ड्रूज ,माण्डियन  , शिया ,सलाफी और यज़ीदी शामिल हैं .सीरिया में सुन्नी अरबी  बहुसंख्यक हैं .
                       आज के दौर में सीरिया अरसे से जारी गृहयुद्ध की वजह से भुखमरी का शिकार हो चुका है . हालात की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग पेट की आग बुझाने घास तक खाने को मजबूर हो चुके हैं .आहिस्ता - आहिस्ता तेज होती मौत की दस्तक ने अब तक दमिश्क से लगे शहर मदाय में तेईस  लोगों की जान ले ली.  अमूमन चालीस हजार लोग भुखमरी की कगार पर हैं .भूख से उपजी दहशत का मंजर इस कदर  दर्दनाक है कि  घांस के बाद बिल्ली और कुत्ते जैसे जानवरों को भी मारकर खाने की शुरुआत हो चुकी है . इस समूची आपदा की बुनियादी वजह सिर्फ और सिर्फ सीरियाई गृहयुद्ध और वहां पर जारी  संघर्ष ही है .अमेरिकेयर नाम की संस्था ने सीरियाई में  तथा नजदीकी देशों में रह रहे विस्थापितों को 2012  से आज तक   4 .4 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता की है .दीगर वैश्विक फोरम भी इस त्रासदी से निपटने खुले दिल से आगे आ रहे हैं .
                      दरअसल मुद्दा आर्थिक मदद का नहीं बल्कि गृह युद्ध से जूझते देश का है  जो लगातार भीतरी संघर्षों  का शिकार होता रहा . ताजातरीन गुहार के असर से लेबनान में विस्थापित  अरसाल शरणार्थी शिविर में शरण लिए सीरियाई बच्चों की मदद के लिए  दो जहाज राहत सामग्री  भेजी जा चुकी है  .मदद का सिलसिला जारी है . फिर भी दुनिया इस मसले पर गंभीरता से सोचने पर  मजबूर हो चुकी है कि कायनात के जितने भी देश गृह युद्ध से जूझ रहे हैं या जातीय अथवा धर्मीय संघर्षों का शिकार हैं वहां पर भी क्या कालांतर में ऐसी  ही परिस्थिति बनने की नौबत आएगी?
                सीरियाई गृह युद्ध दरअसल बहुतरफ़ा सशस्त्र संघर्ष है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय दखलअंदाजियां हो रही हैं .यह अशांति 2011  की गर्मियों के शुरूआती दिनों से ही प्रारम्भ हुई थी .जिसे " अरब स्प्रिंग प्रोटेस्ट " नाम दिया गया था . .यह प्रेसीडेन्ट बशर अली की सरकार  के विरुद्ध देशव्यापी मुखालफत  थी ., सैन्य हस्तक्षेपों के विरोध में यह सामूहिक  जन जिहाद भी था  . दिसंबर 2012 में छपी संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ यह संघर्ष घोर पंथिक जिहाद में परिणीत हो गया था .. इसमें अलावित  शासकीय बल ,मिलिशिया और दीगर शिया कुनबे  भिड़ते रहे . हालांकि सरकार और विपक्ष इस सच को नकारती रही .
                  आज की तारीख में सीरिया के  समूचे इलाकों में कुपोषण तो है ही ,जुलाई महीने से प्रेसीडेन्ट बशर अल असद की सेनाओं की घेरेबंदी है .लिहाजा ईंधन , रसद या दवाएं भी नहीं मिल रहीं . अब  तो  विपक्ष में मौजूद राष्ट्रीय गठबंधन ने भी मानवीय त्रासदी की  आवाज बुलंद कर दी है .कुछ इलाके  ऐसे भी हैं जहाँ पर हफ्ते भर से लोग भूख से तड़प रहे हैं .
                        इतिहास के पन्ने पलटे तो हम देखते हैं ,शुरूआती  दौर में तो सीरियाई सरकार अपने  सशस्त्र बल के भरोसे रही . कालांतर में स्थानीय सुरक्षा इकाइयों  के बनने के बाद  उसे  रूस , इरान और ईराक से वित्तीय ,तकनीकी और राजनैतिक मदद मिलने लगी   सन 2013  में  गृहयुद्ध में इरान समर्थित हिजबुल्लाह ने सीरियाई सेनाओं का साथ दिया . सच तो यह भी है कि विदेशी दखल अन्दाजी की वजह से सीरियाई गृहयुद्ध  को " प्रोक्सी वार " भी कहा जाने लगा .सितम्बर 2015  में रूस , इराक , ईरान और सीरिया ने बग़दाद में साझा गतिविधि केंद्र बनाया .बाद में रूस ने सीरिया के ही कहने पर एकतरफा हवाई हमले कर दिए .  नतीजतन अमेरिका- रूस प्रोक्सी वार  की तत्कालीन  स्थिति को  कुछ विश्लेषकों ने " प्रोटो  वर्ल्ड वार "की संज्ञा भी दी . उस दौर में अमूमन दो दर्जन देश  दो समानांतर युद्ध में रत रहे .
          इतिहास गवाह है   1980  के दौर में सीरिया ने रासायनिक शस्त्रों का जखीरा इकठ्ठा किया था . इसकी बुनियादी वजह थी क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताएं  और इजरायल से इसकी काटो -काट दुश्मनी . 1967  और 1973  में मिली शिकस्तों ने  सीरिया को आइना दिखा दिया था .
                   दुनियावी संगठनों ने सीरियाई  सरकारऔर विपक्षी दलों पर कुछ मानव अधिकारों के उल्लंघन का भी आरोप लगाया है . गृह युद्ध की वजह से आबादी व्यापक रूप से विस्थापित भी हुई .लिहाजा अमेरिका ,यूरोपीय संघ ,रूस,चीन और  मध्य पूर्व के कुछ अन्य देशों (तुर्क, इजिप्ट सऊदी अरब और पहली दफे ईरान ने भी शान्ति वार्ता की पहल की है  जिससे  पीड़ादायक गृह युद्ध की समाप्ति हो सके . चौकाने वाला तथ्य यह है  कि  सरकार विरोधी  सशस्त्र  संघर्षों की वजह से बीते साढ़े चार बरसों में सीरिया में  250,000  से ज्यादा सीरियाई अपनी जान गवां बैठे हैं .आज की तारीख में वही संघर्ष  गृह युद्ध की शक्ल अख्तियार कर चुका है.  आज वक्त का तकाजा है  कि  सारी दुनिया इस मसले पर फौरी तरीके से हस्तक्षेप करे. सारे दुनियावी फोरम भूख से तड़पते सीरिया ही नहीं वरन सभी ऐसे देशों की पीड़ित मानवता के लिए एकजुट हों. जब मसला भूख का होता है तब पेट या आंतें चीखकर यही कहती हैं -
         

भीड़ से छिटककर आता हूँ मैं
किसी परछाई की तरह /और
बैठ जाता हूँ हर इंसान की बाजू में
कोई भी नहीं देखता मुझे/पर
सभी देखते हैं एक-दूसरे का चेहरा
वे जानते हैं की मैं वहां पर हूँ
मेरा मौन है किसी लहर की ख़ामोशी
जो लील लेता है बच्चों का खेल मैदान
धीमी रात्रि में गहराते कुहासे की तरह
आक्रान्ता सेनाएं रौंदती,मचाती हैं तबाही
धरती और आसमान में गरजती बंदूकों से
लेकिन मैं उन फौजों से भी दुर्दांत
गोले बरसाती तोपों से भी प्राणान्तक
राजा और शासनाध्यक्ष देते हैं आदेश
पर मैं किसी को नहीं देता हुक्म
सुनाता हूँ मैं राजाओं से अधिक
और भावपूर्ण वक्ताओं से भी
निः  शपथ करता हूँ शब्दों  को
सारे उसूल हो जाते हैं असरहीन
नग्न सत्य अवगत हैं मुझसे
जीवितों को महसूस होने वाला
प्रथम और अंतिम शाश्वत हूँ मैं
भूख हूँ मैं... भूख हूँ मैं!
(राबर्ट बिनयन की मेरे द्वारा अनूदित  कविता
.