गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

नए साल में हम करें एक नयी शुरुआत आओ कस कर थाम लें उम्मीदों के हाथ

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नए साल में हम करें एक नयी शुरुआत
आओ कस कर थाम लें उम्मीदों के हाथ


अंदाज हर बरस के बीतने का कुछ अलहदा होता है .इस बरस के बीतने की दुपहरी छत्तीसगढ़ के निकाय चुनावों के सिलसिले में टीवी स्क्रीन पर  नज़रे गड़ाए गुजर  रही थी .  भाजपा का भगवा रंग धूमिल होने और कांग्रेस के चेहरे पर मुस्कान इंच -दर-इंच बढ़ने की खबर गरमाते जाने से सूपड़ा साफ़ होने और हौसला अफजाई के अक्स भी पारदर्शी होने लगे थे .कहीं ख़ुशी ... कहीं गम !
                   मोबाइल की स्क्रीन पर वैलकम 2016 , और अलविदा 2015  के संदेशे आने -जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी था .उम्मीद ... उल्लास ... ऊर्जावान ... खुश रहने की दुआएं और शुभकामनाएं आखों की पुतलियों से सामने से गुजर रही थी असहिष्णुता  ... सहिष्णुता ....आरोप - प्रत्यारोप .....मजहबी  अतिरेक के भोंडे प्रदर्शन की बढ़ती भावना के जूनून  का  रंग- बदरंग ......हमेशा की तरह नजर आया .इसी बीच अनुप्रिया के सन्देश  ने कुछ हौसला बढ़ाया-और वर्ष 2015 की विदाई की दुपहरी में मैं यही दुहराने लगा -

नए साल में हम करें एक नयी शुरुआत
आओ कस कर थाम लें उम्मीदों के हाथ
हर शख्स की उम्मीद का आसमान अलग होता है .... सपनों की मानिंद .ह़र किसी का अपना अलहदा अंदाज होता है बीते बरस को अलविदा कहने का.वर्ष 2015 की विदाई और2016 का  स्वागत करने प्लानिंग अमूमन पहले से ही हो जाया करती है.कईयों ने सोचा की आउटिंग कर ऐश करे और रात दारू-शारू के साथ मजे लें. जीत की ख़ुशी के जाम , हार के गम के भी जाम ...... अंगूर की बेटी तो हर मूड में ओठों से लगने को बेताब हुई जाती है, क्यों!
              नव- धनाढ्यों  का कुनबा बड़ी होटलों में साल की विदाई पार्टी के साथ "रात रंगीन " करने शराब -शबाब के पॅकेज डील कर चुका होता है.बीते बरस भी ३१ की रात को सुरूर में पहले तो तेज रफ़्तार सडको पर कुछ नौजवान घूमे फिर उनमें से कुछ अस्पताल में भी नजर आए.यह  हकीकत  थी ,है और शायद रहेगी भी!
                        वर्ष 2015 की रात को भी बारह बजे शहर जवान हो कर मस्ती में बल्ले-बल्ले कर रहा था. अपनी- अपनी सोच और नसीब के चक्कर में बीते साल की विदाई का अंदाज भी मजदूरों, मिडिल क्लास और रईसों की तकदीर- तदबीर के पारदर्शी अक्स दिखा जाता है.कहीं खुशी .. कहीं गम ...कहीं जोश-ऍ- जूनून तो कहीं झुंझलाहट नजर आती है.रात में टीवी के सामने " हात एंड मसाला कार्यक्रमों को देखने वालों का तबका भी होता है.युवा होस्टलों में जश्न का अलग अंदाज तो जिनकी एग्जाम चल रही है वे थोडा  सा एन्जॉय कर ज्यादा टाइम खोटी नहीं करना चाहते.
                               आज रात भी यही सब होगा . पिछले बरस अपने दद्दू ने टिप्पणी की थी ,"दोस्त! बाजार और नई हवा के इशारे पर ही सही लोग अब अवसरों को बिंदास तरीके से जीने की जीवनशैली अपना चुके हैं.यह बात अलग है की  जिंदगी में मिली सौगातें अपने-अपने पुरुषार्थ और नसीब का मिला-जुला फलादेश है.कुछ लोग नए वर्ष पर जश्न के साथ कोई रिसोलुशन भी लेते हैं . हाँ! कौन निभाता है कौन नहीं यह अपनी जिद की बात है.
                           " संकल्प के लिए नए बरस की शुरुआत की मोहताजग़ी   क्यों ? क्या हम साल भर उत्सव की तरह नए  संकल्पों के साथ नहीं मना सकते? "क्यूँ नहीं!नए वर्ष का सन्देश है परिवर्तन.हमसे जुडी  व्यवस्थाओं के प्रति जाग्रति,सच्चे ज्ञान ,प्रेम और खुशियाँ बाटने का संकल्प  कर हम साल भर उसपर अमल कर सकते हैं.रात गई, बात गई कहकर एक दिनी हुल्लड़ और अय्याशी से कुछ नहीं होने का.फिर भी टेंशन भरी जिंदगी में हम लोग फुल -टू मनोरंजन का कोई भी मौका नहीं चूकते..चूकना भी नहीं चाहिए.
       बीते बरस की विदाई और नए वर्ष के स्वागत को एक दिनी जश्न मानने वालों के अलावा बच्चे से बूढ़े तक के लिए नए वर्ष का समूचा अजेंडा  गुरुदेव रवीन्द्र नाथ  टेगोर की " गीतांजलि" में इन पंक्तियों से प्रतिध्वनित होता है-
                                जहाँ पर मस्तिष्क हो निर्भय,
                                  और भाल सदा गर्वोन्मत्त
                                  जहां  हो ज्ञान का मुक्त भंडार,
                                 जहाँ न हो विश्व विभाजित
                                  संकीर्ण सरहदी दीवारों से
                                    जहाँ सदा जन्म लें अक्षर
                                  ध्रुव सत्य की कोख से
                                 जहाँ अनथक  परिश्रम आतुर हो
                                  उत्कर्ष का आलिंगन करने
                                    जहाँ निरंतर प्रयोजन के स्रोत
                                   स्वार्थ मरू में न हो गए हो लुप्त
                                     जहाँ मेधा इन सत्य पुष्पों से
                                    सदैव हो परिचालित,विचारवान
                                     मेरे पिता!जागने दो मेरे देश  को!
चलिए छोड़िए.... बीते बरस की विदाई में जुट जाएँ  अपने- अपने तरीके से.कल सुबह कोई मंदिर जाएगा  भगवान से आशीर्वाद लेने ... आराध्य  से नया वर्ष सुखद होने की कामना करेंगे.कोई देर सुबह तक हैंगओवर के चलते उनींदा सा होगा. सो फिलवक्त l  मैं  आपका नया वर्ष खूब प्यार और खुशहाली भरा होने की कामना करता हूँ..
                           
                                     खुश रहिए ... खुश रखिए...और अपना ख्याल रखिएगा...
                                                                             किशोर दिवसे
                                                                               मोबाईल -09827471743                              
                                      

शनिवार, 26 दिसंबर 2015

मोदी बन गए बेनजीर ! या अँधेरे में तीर !

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मोदी  बन गए बेनजीर   ! या अँधेरे में तीर !



बिरियानी टू बर्थ डे डिप्लोमेसी..,गुडविल दौरा..गिफ्ट और .सरप्राइज डिप्लोमेसी ...ब्रेकफास्ट काबुल में , लाहौर में चाय ,.....क्रिसमस के दिन चौकाने वाली यात्रा के बरक्स सचमुच का बड़ा दिन .....और अपने -अपने नजरिये का तूफ़ान  और जिन लाहौर नहीं देख्यां ...उसने क्या जिया  ......न जाने कितने जुमले पीएम मोदी की चौकाने वाली हवाई यात्रा से उड़कर दिमागों में तूफ़ान मचा गए .सोचने वाली बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी की पाक यात्रा के रोज नवाज शरीफ की नातिन का ब्याह, खुद शरीफ का जन्मदिन  अटल बिहारी वाजपेयी  और पाकिस्तान के   संस्थापक   मुहम्मद अली जिन्नाह का भी जन्मदिन था . जिन्ना का जिक्र किसी ने नहीं किया!मोदी- शरीफ मुलाक़ात पर  हर तरफ बवाल के बादल गरज रहे हैं .
                      वाह रे कुदरत! २५ तारीख यानी जुम्मे और पूर्ण चन्द्र की यामिनी में  ही अफ़ग़ान , पाकिस्तान और दिल्ली के कुछ इलाकों में भी भूकम्प के झटके महसूस किये जाएंगे इसका अंदाज किसी को नहीं था . प्रकृति जनित भूकम्प का केंद्र अफ़ग़ान था लेकिन यकीनन हर सोच के पंथियों ने अपने भीतर महसूस किया .और यकीनन यह भी सवाल किया अपनी सोच के आईने को देखकर की क्या " शरीफ के घर जाकर क्या पीएम मोदी खुद ही बेनजीर हो गए?सभी को मालूम है की मोदी रूस और अफ़ग़ान के दौरे पर थे और यकायक पाकिस्तान उसमें जुड़ गया .
                 पी एम मोदी की अचानक    पाकिस्तान यात्रा को    ऐतिहासिक इस  लिहाज से भी कहा जा रहा है कि ११ बरस बाद कोई भारतीय पीएम पाकिस्तान की यात्रा पर बवालिया स्टाइल में पहुंचा था ..पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमृतसर से लाहौर गए थे ., मोदी काबुल से गए .फिर भी  यह सच है कि  अपनी शोमैन शिप के चलते    चौकाने की यह हैट्रिक   बनाई है मोदी ने .                
               .पहली दफे नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर ,दुसरे बार पेरिस की जयवायु कॉन्फ्रेंस में फौरी बात कर . और अब यह तीसरी .बार .बोलने को टू पीएम के लाहौर जाने की जानकारी किसी को नहीं थी . होती भी कैसे ? पहली बात वो कोई आम आदमी तो हैं  नहीं. दूसरे- पीएम का विशेषाधिकार  और शीर्ष सुरक्षा मसला . तीसरे- अगर पहले से ही लाहौर जाने का ऐलान कर देते तो प्रतिक्रियावादियों का कोहराम कितना गूंजता . उन रिएक्शनरियों में  पाकिस्तान के कठमुल्लई नजरिये  वाला कुनबा और भारत के कान फाडू शोर मचाने वाले दक्षिणपंथी सियासी गिरोह भी क्या शामिल नहीं हो जाते?फिर भी जो प्रतिक्रियाएं हुई वो आपने देखी और सुनी भी .
                       अचानक लाहौर यात्रा का मतलब क्या?-शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा .आश्चर्यजनक तरीके से माकपा अगुवाई के वाम मोर्चा ने इसका स्वागत  किया .भाकपा के डी. राजा ,और  कश्मीर के सीएम उम्र अब्दुल्ला ने भी सकारात्मक राय दी ..अमरीका ने मोदी और शरीफ़ की बातचीत का स्वागत कर कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के रिश्ते सुधरना दक्षिण एशिया के हित में है.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने भी इसका स्वागत करते हुए उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता आगे बढ़ेगी.'द वॉशिंगटन पोस्ट' के मुताबिक़ मोदी ने परमाणु शक्ति संपन्न भारत-पाक के गर्म-ठंडे रिश्तों पर रीसेट बटन दबाकर अगले महीने होने वाली समग्र वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.'द शिकागो ट्रिब्यून' की रिपोर्ट कहती है कि अचानक हुआ
मोदी का यह दौरा इस बात की तरफ़ इशारा भारत-पाक रिश्तों में गर्माहट आ रही है.
श्रीलंकाई अख़बार 'श्रीलंका गार्डियन' का कहना है कि शांति चाहने वाले भारत और पाकिस्तान के नागरिकों की कामना होगी कि अगला साल दोनों देशों के बीच शांति और सौहार्द लेकर आए.
                        जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की औचक पाकिस्तान यात्रा को सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है।कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने मोदी की पाक यात्रा की आलोचना करते हुए कहा है कि मोदी और शरीफ के बीच मुलाकात एक उद्योगपति ने पहले से ही तय कर रखी थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान यात्रा पहले से ही एक उद्योगपति की पहल पर तय होने के कांग्रेस के दावे पर भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में ऐसा विपक्ष है जो हर सकारात्मक प्रयास में नकारात्मक ही देखता है।
                              मोदी के पाकिस्तान दौरे से आतंकी हाफिज़ सईद बौखला उठा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने कहा है कि नवाज़ ने दुश्मन का स्वागत किया है और इसके लिए उन्हें पाकिस्तान की जनता को सफाई देनी चाहिए।हाफिज़ ने कहा कि पाकिस्तान को अपना सबसे
 बड़ा वकील समझने वाले कश्मीरी, पाकिस्तान में मोदी के स्वागत को देखककर रो रहे हैं।              
                      यात्रा को लेकर दक्षिण एशिया मामलों के जानकार सुशांत सरीन की राय:" इस तरह सबको अचंभित कर देना एक तरह से नरेंद्र मोदी की कूटनीति को परिभाषित करने वाली शैली बन गई है.वे ख़ुद ही निर्णय लेते हैं कि क्या करना है. किसी को कुछ पता नहीं होता  इसलिए सारे लोग
 अंधेरे में तीर चलाते रहते हैं लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री को पता हो कि वे क्या कर रहे हैं.जहां तक ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी के अंधेरे में तीर चलाने की संभावना है तो वो ऐसा करने
वाले पहले प्रधानमंत्री नहीं है. इससे पहले भी, पाकिस्तान को लेकर भारत के प्रधानमंत्रियों ने अंधेरे तीर चलाया है. लेकिन इससे कुछ हासिल होता नहीं है.
                  अब देखिये किस तरह के सवाल उठा करते हैं ..भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी के लिए जो बातचीत चल रही है, ये साफ़ है कि उसमें पाकिस्तानी सेना की सहमति शामिल है.पाकिस्तानी सेना भी समझती है कि रिश्तों को बेहतर करना चाहिए लेकिन उसकी आशंका
 इस बात को लेकर रहती है कि बातचीत केवल चरमपंथ तक ही सीमित न रह जाए और कश्मीर का मुद्दा पीछे छूट जाए.यह सवाल उठा कि क्या पाकिस्तानी सेना को मोदी
  के इस दौरे के बारे में मालूम था सरकार के लोगों का कहना है कि सेना की रजामंदी के बिना इतना
 बड़ा फ़ैसला नहीं लिया जा सकता.चूंकि यह भी सच है कि मोदी के लाहौर सफर के रोज पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन  भी था .क्या किसी को  इस मोदी एपिसोड में वाजपेयी  की  विदेश नीति के अक्स का टुकड़ा नजर आया?
                      वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने भी अपनी  आशंका जाहिर कि है .एक तो क्या पाक सेना मोदी की यूनिक अग्रेसिव डिप्लोमेसी में रुचि लेगी ? दूसरे क्या एक नई सुबह होगी यह कहना फिलहाल मुश्किल  है .    इससे भी गम्भीर सवाल यह भी है कि इस दौरे के पीछे कोई अमेरिकी दबाव तो नहीं? पाकी जनरल राहील शरीफ को अमेरिका ने क्या हो सकता है यह ताकीद भी की थी .तालिबानी और कट्टरपंथियों के सैन्य अभियान पाक के सिरदर्द बने हुए हैं .
      दरअसल  पाक पर भारत से वार्ता करने जबरदस्त दबाव है .अमूमन यही स्थिति भारत के भी साथ है .शायद सुपर पावर्स अमेरिका- चीन- रूस के दरम्यानी  खींचतान  का एक अनिवार्य  हिस्सा  भी! सुपर पावर्स की खींचतान इस लिहाज   से भी एक तरफ तो अमेरिका परस्ती आज की मौजूदा एक-ध्रुवीय दुनिया की जरूरत बन गयी है .. दूसरी तरफ बकलम मीडिया गुरु रमेश नैयर ,"मोदी की काबुल और मास्को यात्रा में विशवास और आत्मीयता बढ़ने की ललक थी  और लाहौर औपचारिकता .चीन बहुत बड़ी सैन्य और आर्थिक ताकत भी है . मोदी को अंतस की यात्रा पर निकलने का समय निकालना होगा ."
                  मैं तो व्यापारी हूँ - मोदी खुद क़ुबूल करते हैं . इस लिहाज से  स्टील कारोबारी सज्जन जिंदल की मोदी के साथ मौजूदगी क्या इशारा करती है?वे शरीफ और मोदी दोनों के ही करीबी हैं .अब मोदी की इस यात्रा से भारत के लिए बरास्ता  पाकिस्तान अफ़ग़ान और मध्य एशिया जाने का रास्ता खुल जाएगा .वहां की खनिज सम्पदा से भारत लाभान्वित होगा ,बड़े बाजार का रास्ता खुलेगा यह खुशफहमी जो वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने जाहिर की है अगर   हकीकत में बदल जाती है तो वाह वाह !
                        बहरहाल अगर आम आदमी के मनोविज्ञान की बरक्स सोचा जाये तो दुश्मन  से भी अगर मुलाकातें अनायास या सायास भी होती रहें तो बुराई क्या है?मुलाकातों की ऊष्मा कभी  न कभी कठोर रिश्ते की पिघलती बर्फ के दरम्यान  मसलों के हल की राह दिखाती ही  है  .विदेश  नीति और मसले इतने  सहज नहीं जो अलादीन के चिराग घिसकर समाधान निकाल दें .बंद दरवाजे खोलने का साहस और दिलदारी सभी को दिखानी होगी . यकीनी तौर पर कहावत सही है ," रोम वाज़ नॉट बिल्ट इन अ डे बट आफ्टर  आल इट वाज़ बिल्ट! लिहाजा .जारी रखी जानी चाहिए कोशिशों की नजीरों का बनना.  लब्बो लुबाब यह कि वक्त ही तय करेगा कि कायनात अँधेरे में  तीरों का उड़ना देख रही है या फिर मोदी बन गए बेनजीर!

               
             

                         



मोदी बन गए बेनजीर ! या अँधेरे में तीर !

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 मोदी  बन गए बेनजीर   ! या अँधेरे में तीर !


बिरियानी टू बर्थ डे डिप्लोमेसी..,गुडविल दौरा..गिफ्ट और .सरप्राइज डिप्लोमेसी ...ब्रेकफास्ट काबुल में , लाहौर में चाय ,.....क्रिसमस के दिन चौकाने वाली यात्रा के बरक्स सचमुच का बड़ा दिन .....और अपने -अपने नजरिये का तूफ़ान  और जिन लाहौर नहीं देख्यां ...उसने क्या जिया  ......न जाने कितने जुमले पीएम मोदी की चौकाने वाली हवाई यात्रा से उड़कर दिमागों में तूफ़ान मचा गए .सोचने वाली बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी की पाक यात्रा के रोज नवाज शरीफ की नातिन का ब्याह, खुद शरीफ का जन्मदिन  अटल बिहारी वाजपेयी  और पाकिस्तान के   संस्थापक   मुहम्मद अली जिन्नाह का भी जन्मदिन था . जिन्ना का जिक्र किसी ने नहीं किया!मोदी- शरीफ मुलाक़ात पर  हर तरफ बवाल के बादल गरज रहे हैं .
                      वाह रे कुदरत! २५ तारीख यानी जुम्मे और पूर्ण चन्द्र की यामिनी में  ही अफ़ग़ान , पाकिस्तान और दिल्ली के कुछ इलाकों में भी भूकम्प के झटके महसूस किये जाएंगे इसका अंदाज किसी को नहीं था . प्रकृति जनित भूकम्प का केंद्र अफ़ग़ान था लेकिन यकीनन हर सोच के पंथियों ने अपने भीतर महसूस किया .और यकीनन यह भी सवाल किया अपनी सोच के आईने को देखकर की क्या " शरीफ के घर जाकर क्या पीएम मोदी खुद ही बेनजीर हो गए?सभी को मालूम है की मोदी रूस और अफ़ग़ान के दौरे पर थे और यकायक पाकिस्तान उसमें जुड़ गया .
                 पी एम मोदी की अचानक    पाकिस्तान यात्रा को    ऐतिहासिक इस  लिहाज से भी कहा जा रहा है कि ११ बरस बाद कोई भारतीय पीएम पाकिस्तान की यात्रा पर बवालिया स्टाइल में पहुंचा था ..पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमृतसर से लाहौर गए थे ., मोदी काबुल से गए .फिर भी  यह सच है कि  अपनी शोमैन शिप के चलते    चौकाने की यह हैट्रिक   बनाई है मोदी ने .                  
               .पहली दफे नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर ,दुसरे बार पेरिस की जयवायु कॉन्फ्रेंस में फौरी बात कर . और अब यह तीसरी .बार .बोलने को टू पीएम के लाहौर जाने की जानकारी किसी को नहीं थी . होती भी कैसे ? पहली बात वो कोई आम आदमी तो हैं  नहीं. दूसरे- पीएम का विशेषाधिकार  और शीर्ष सुरक्षा मसला . तीसरे- अगर पहले से ही लाहौर जाने का ऐलान कर देते तो प्रतिक्रियावादियों का कोहराम कितना गूंजता . उन रिएक्शनरियों में  पाकिस्तान के कठमुल्लई नजरिये  वाला कुनबा और भारत के कान फाडू शोर मचाने वाले दक्षिणपंथी सियासी गिरोह भी क्या शामिल नहीं हो जाते?फिर भी जो प्रतिक्रियाएं हुई वो आपने देखी और सुनी भी .
                       अचानक लाहौर यात्रा का मतलब क्या?-शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा .आश्चर्यजनक तरीके से माकपा अगुवाई के वाम मोर्चा ने इसका स्वागत  किया .भाकपा के डी. राजा ,और  कश्मीर के सीएम उम्र अब्दुल्ला ने भी सकारात्मक राय दी ..अमरीका ने मोदी और शरीफ़ की बातचीत का स्वागत कर कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के रिश्ते सुधरना दक्षिण एशिया के हित में है.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने भी इसका स्वागत करते हुए उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता आगे बढ़ेगी.'द वॉशिंगटन पोस्ट' के मुताबिक़ मोदी ने परमाणु शक्ति संपन्न भारत-पाक के गर्म-ठंडे रिश्तों पर रीसेट बटन दबाकर अगले महीने होने वाली समग्र वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.'द शिकागो ट्रिब्यून' की रिपोर्ट कहती है कि अचानक हुआ
मोदी का यह दौरा इस बात की तरफ़ इशारा भारत-पाक रिश्तों में गर्माहट आ रही है.
श्रीलंकाई अख़बार 'श्रीलंका गार्डियन' का कहना है कि शांति चाहने वाले भारत और पाकिस्तान के नागरिकों की कामना होगी कि अगला साल दोनों देशों के बीच शांति और सौहार्द लेकर आए.
                        जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की औचक पाकिस्तान यात्रा को सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है।कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने मोदी की पाक यात्रा की आलोचना करते हुए कहा है कि मोदी और शरीफ के बीच मुलाकात एक उद्योगपति ने पहले से ही तय कर रखी थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान यात्रा पहले से ही एक उद्योगपति की पहल पर तय होने के कांग्रेस के दावे पर भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में ऐसा विपक्ष है जो हर सकारात्मक प्रयास में नकारात्मक ही देखता है।
                              मोदी के पाकिस्तान दौरे से आतंकी हाफिज़ सईद बौखला उठा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने कहा है कि नवाज़ ने दुश्मन का स्वागत किया है और इसके लिए उन्हें पाकिस्तान की जनता को सफाई देनी चाहिए।हाफिज़ ने कहा कि पाकिस्तान को अपना सबसे
 बड़ा वकील समझने वाले कश्मीरी, पाकिस्तान में मोदी के स्वागत को देखककर रो रहे हैं।                
                      यात्रा को लेकर दक्षिण एशिया मामलों के जानकार सुशांत सरीन की राय:" इस तरह सबको अचंभित कर देना एक तरह से नरेंद्र मोदी की कूटनीति को परिभाषित करने वाली शैली बन गई है.वे ख़ुद ही निर्णय लेते हैं कि क्या करना है. किसी को कुछ पता नहीं होता  इसलिए सारे लोग
 अंधेरे में तीर चलाते रहते हैं लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री को पता हो कि वे क्या कर रहे हैं.जहां तक ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी के अंधेरे में तीर चलाने की संभावना है तो वो ऐसा करने
वाले पहले प्रधानमंत्री नहीं है. इससे पहले भी, पाकिस्तान को लेकर भारत के प्रधानमंत्रियों ने अंधेरे तीर चलाया है. लेकिन इससे कुछ हासिल होता नहीं है.
                  अब देखिये किस तरह के सवाल उठा करते हैं ..भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी के लिए जो बातचीत चल रही है, ये साफ़ है कि उसमें पाकिस्तानी सेना की सहमति शामिल है.पाकिस्तानी सेना भी समझती है कि रिश्तों को बेहतर करना चाहिए लेकिन उसकी आशंका
 इस बात को लेकर रहती है कि बातचीत केवल चरमपंथ तक ही सीमित न रह जाए और कश्मीर का मुद्दा पीछे छूट जाए.यह सवाल उठा कि क्या पाकिस्तानी सेना को मोदी
  के इस दौरे के बारे में मालूम था सरकार के लोगों का कहना है कि सेना की रजामंदी के बिना इतना
 बड़ा फ़ैसला नहीं लिया जा सकता.चूंकि यह भी सच है कि मोदी के लाहौर सफर के रोज पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन  भी था .क्या किसी को  इस मोदी एपिसोड में वाजपेयी  की  विदेश नीति के अक्स का टुकड़ा नजर आया?
                      वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने भी अपनी  आशंका जाहिर कि है .एक तो क्या पाक सेना मोदी की यूनिक अग्रेसिव डिप्लोमेसी में रुचि लेगी ? दूसरे क्या एक नई सुबह होगी यह कहना फिलहाल मुश्किल  है .    इससे भी गम्भीर सवाल यह भी है कि इस दौरे के पीछे कोई अमेरिकी दबाव तो नहीं? पाकी जनरल राहील शरीफ को अमेरिका ने क्या हो सकता है यह ताकीद भी की थी .तालिबानी और कट्टरपंथियों के सैन्य अभियान पाक के सिरदर्द बने हुए हैं .
      दरअसल  पाक पर भारत से वार्ता करने जबरदस्त दबाव है .अमूमन यही स्थिति भारत के भी साथ है .शायद सुपर पावर्स अमेरिका- चीन- रूस के दरम्यानी  खींचतान  का एक अनिवार्य  हिस्सा  भी! सुपर पावर्स की खींचतान इस लिहाज   से भी एक तरफ तो अमेरिका परस्ती आज की मौजूदा एक-ध्रुवीय दुनिया की जरूरत बन गयी है .. दूसरी तरफ बकलम मीडिया गुरु रमेश नैयर ,"मोदी की काबुल और मास्को यात्रा में विशवास और आत्मीयता बढ़ने की ललक थी  और लाहौर औपचारिकता .चीन बहुत बड़ी सैन्य और आर्थिक ताकत भी है . मोदी को अंतस की यात्रा पर निकलने का समय निकालना होगा ."
                  मैं तो व्यापारी हूँ - मोदी खुद क़ुबूल करते हैं . इस लिहाज से  स्टील कारोबारी सज्जन जिंदल की मोदी के साथ मौजूदगी क्या इशारा करती है?वे शरीफ और मोदी दोनों के ही करीबी हैं .अब मोदी की इस यात्रा से भारत के लिए बरास्ता  पाकिस्तान अफ़ग़ान और मध्य एशिया जाने का रास्ता खुल जाएगा .वहां की खनिज सम्पदा से भारत लाभान्वित होगा ,बड़े बाजार का रास्ता खुलेगा यह खुशफहमी जो वरिष्ठ आतंरिक सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने जाहिर की है अगर   हकीकत में बदल जाती है तो वाह वाह !
                        बहरहाल अगर आम आदमी के मनोविज्ञान की बरक्स सोचा जाये तो दुश्मन  से भी अगर मुलाकातें अनायास या सायास भी होती रहें तो बुराई क्या है?मुलाकातों की ऊष्मा कभी  न कभी कठोर रिश्ते की पिघलती बर्फ के दरम्यान  मसलों के हल की राह दिखाती ही  है  .विदेश  नीति और मसले इतने  सहज नहीं जो अलादीन के चिराग घिसकर समाधान निकाल दें .बंद दरवाजे खोलने का साहस और दिलदारी सभी को दिखानी होगी . यकीनी तौर पर कहावत सही है ," रोम वाज़ नॉट बिल्ट इन अ डे बट आफ्टर  आल इट वाज़ बिल्ट! लिहाजा .जारी रखी जानी चाहिए कोशिशों की नजीरों का बनना.  लब्बो लुबाब यह कि वक्त ही तय करेगा कि कायनात अँधेरे में  तीरों का उड़ना देख रही है या फिर मोदी बन गए बेनजीर!

                 
               

                           












                         
                  

शनिवार, 12 दिसंबर 2015

किसान नेता शरद जोशी होने का मतलब....

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किसान नेता शरद जोशी होने का मतलब....
निधन पर विशेष



जुझारू किसान नेता शरद जोशी नहीं रहे .वैसे भी देश में कृषि और किसानों की दिशा और दशा के मद्देनजर जमीनी स्तर के किसान  नेताओं का टोटा महसूस किया जा रहा था..... यह कमी अब भी है . . फिर भी हर पल उन्होंने बतौर किसान नेता अपनी जवाबदेहिया व्यापक रूप से बखूबी निबाही . महाराष्ट्र ही नहीं देश में  कृषि से जुड़ा विचार -केन्द्रों  का जर्रा -जर्रा शरद जोशी से वाकिफ है .
          गाँवों की संख्या घटती जा रही है . किसान खुद्कुशियां कर रहे हैं.जल जंगल और जमीन के मसले गहरा चुके हैं .समर्थन मूल्य से लेकर तमाम किसानी मुद्दे कृषि की रीढ़ तोड़ चुके हैं .जमीनी स्तर के किसान  नेताओं की जरूरत अब शिद्दत से महसूस की जाने लगी है .कृषि अब भी वरीयता के अजेंडे में उतनी  पुख्ता स्थिति में नहीं है जितनी होनी चाहिए .
              सारी जिंदगी किसानों के लिए शरद जोशी संघर्ष करते रहे .सरकार की किसान विरोधी नीतियों की मुखालफत की वजह से लोग उन्हें किसान नेता मानते थे .शरद जोशी महाराष्ट्र में किसान आंदोलन के प्रणेता और सांसद थे . .वे स्वतंत्रता भारत  पक्ष पार्टी और शेतकारी संघटना के संस्थापक  भी रहे . .वे अकेले सांसद थे जिन्होंने संसद में महिला आरक्षण के खिलाफ मतदान किया .विश्व बैंक के अधिकारी की भूमिका भी उन्होंने भी सक्षमता से निबाही   .
       अंग्रेजी अखबारों में सम्पादकीय के माध्यम से शरद जोशी ने किसानों की बेहतरी के लिए बुनियादी तौर पर सोचा .किसानों और बुद्धिजीवियों के बीच वैचारिक संघर्ष से वे अक्सर आहत होते थे .उनकी स्पष्ट राय थी कि अगर किसानो से हमेशा संवाद होगा तब बुद्धिजीवी तथ्यों को समझ सकेंगे .विश्व बैंक के अधिकारी होने की वजह से उनकी सोच में मौलिकता थी .
               आज कृषि क्षेत्र की हकीकत क्या है? आज किसानों को जागरूक करना जरूरी है ताकि  देश का किसान अपनी बात को हुक्मरानों को कह सके। आज किसान में  जागरूकता का स्तर हर राज्य  में अलहदा है .  उत्पीड़न के खिलाफ आये दिन किसान सड़कों पर अपनी आवाज बुलन्द कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की एकता में आयी कमी के कारण किसान खेती किसानी के मुद्दों पर हारी हुई जंग लड़ रहा है।
                    महाराष्ट्र में लंबे समय तक किसानों का बड़ा आंदोलन चलाने वाले शेतकारी संगठना के नेता शरद जोशी हमेशा कहते रहे  कि यदि सरकार खेती में हस्तक्षेप बंद कर दे और किसानों को खुली मंडी में अपनी उपज बेचने दे तो न किसान आत्महत्या करेंगे और न बदहाल रहेंगे। शरद जोशी की कृषि उत्थान के क्षेत्र में बेहतरी में निबाही गई भूमिका के मद्देनजर ऐसा लगता है कि भारत के हर राज्य को शरद जोशी जैसे दमदार  किसान नेता की जरूरत है .किसानों में जन चेतना जगाने का अभी  सही वक्त भी है .

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

आज से मेरे फन का मकसद है जंजीरें पिघलाना , आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा

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आज से मेरे फन का मकसद है जंजीरें पिघलाना
  आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा


चुनौती भरे 1095  दिन
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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने राज्य  के अगुवा  की हैसियत से शनिवार को 12 बरस पूरे कर लिए .निश्चित रूप से यह  लम्हा  उनके  लिए " क्या पूरा किया,क्या बचा और क्या करना है "इस मसले पर मंथन का है .2003  में जब रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ की सत्ता सम्हाली थी परिदृश्य कुछ  अलहदा था .आज मुख्यमंत्री और नागरिकों का साझा अनुभव तो यही दर्शाता है कि राज्य में काफी कुछ  सकारात्मक हुआ और जो न हो सका उसपर रुदन और भड़ास  के बजाये ,बजरिये हर नागरिक की भागीदारी पूरा किया जाना चाहिए .समग्र मीडिया की डेवलपमेंटल थ्योरी का बुनियादी सिद्धांत भी यही है .
                सूखा-  हालातों के  बरक्स जश्न न मनाने का फैसला श्लाघ्य है .फिर भी किसानों की बुनियादी समस्याओं का हल उनकी सक्रिय भागीदारी से लघु व् दीर्घ कालिक योजना बनाकर उनपर फौरी अमल से किया जाना वक्ती मांग है .रहा सवाल छत्तीसगढ़ की पुरानी  और वर्तमान  अपेक्षाओं ,अधूरे सपनों और जनाकांक्षाओं के अक्षयपात्रों  का ,इसपर सोचने  और अमल की प्रक्रिया फिलवक्त यही स्फटिक संकेत  देती  है  कि इस मुद्दे पर ठोस पहल करने हर सकारात्मक व्यक्ति  के लिए - गेट, सेट एंड गो!
                   अधूरे काम पूरे न होने या गड़बड़झालों के लिए बहाने अनेक बनाये जा सकते हैं . आरोप  की सुई मॉनिटरिंग की कमी, अफसरशाहों  या अमल करने वाली एजेंसियों की ढिलाई ,फंड की कमी, सियासी इच्छा शक्ति का टोटा या नागरिकों की गैर जिम्मेदारी को भी इंगित कर सकती है .छोड़िये इन बातों को -अब समूचे छत्तीसगढ़ को ही विजन रखना होगा - FOCUS ON MULTI - DIMENTIONAL DEVELOPMENT .
                     निश्चित तौर  पर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इसी वजह से कनेक्टिविटी पर ही फोकस किया है .जिस राज्य की अधो संरचना शहरी . ग्रामीण और  ख़ास तौर पर " मीडिया डार्क एरियाज " में बराबरी से पुख्ता होती है वह बहुआयामी विकास की मैराथन में आगे ही आगे बढ़ता है .इसके बरक्स रेल , सड़क और डिजिटल कनेक्टिविटी  को रमन सिंह अपनी तीसरी पारी में सर्वोच्च वरीयता पर रखते हैं , तब  राज्य का विकास खुद ब खुद  अपना बयान - ए- हकीकत -करेगा .बस्तर , सरगुजा और छत्तीसगढ़ के दीगर सीमावर्ती और माइक्रोरिमोट  क्षेत्रों के लिहाज से से इन मुद्दों पर फौरी कार्ययोजना -अमल निहायत अव्वल दर्जे का एजेंडा होना भी चाहिए .
                    बेनज़ीर "प्रतिपक्ष साधक "  मुख्यमंत्री  रमन सिंह को स्पेशल 12 + क्लब में शामिल होने पर बधाइयां .अब तीसरी पारी यानी 15  साल  की मियाद पूरी होने में महज 1095 दिन बाकी रह गए हैं .मार्क्स तूलियस सिसेरो ने कहा है,"A MAN OF COURAGE IS ALWAYS FULL OF FAITH ". अगर विकास की नीयत से वाजिब प्रशासनिक सख्ती बरतनी जरूरी होती है तब ऐसा करना भी मौजूं होगा , बकौल साहिर लुधियानवी -
                         आज से मेरे फन का मकसद है जंजीरें पिघलाना
                         आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा


 लक्ष्य साफ़ है  पर हर- पल सामने है चुनौती -जेहन में पैबस्त अधूरे सपने पूरे करने की.....आम जन को विकास की आत्मा से  जोड़कर जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने की .......नौकरशाहों का " इगो" साधने की....न तो यह असाध्य लक्ष्य है न ही नामुमकिन.सियासी इच्छा शक्ति और जवाबदेह जनमानस   बनाने  के कारगर अस्त्रों से यह निश्चित रूप से काबिल -ए -हासिल है .

                       
                 
                

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

दिल मेरा धड़कता है इन ठण्ड भरी रातों से तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से

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 दिल मेरा धड़कता है इन ठण्ड भरी रातों से ,तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से 
 

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ये सर्द रात ,ये आवारगी,ये नींद का बोझ 
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते


बढ़ते शहर में मौसम को जीने का अंदाज भी चुगली कर जाता है.या फिर यूँ कहिये के बदलते वक्त में मौसम को जीने की स्टाइल भी "अपनी अपनी उम्र" की तर्ज पर करवटें बदलने लगती हैं.सर्दियों का मौसम अपना अहसास दिलाने लगा है यह भी सच है कि शहर के बन्दे अब मौसम का मजा लेने लगे हैं.और उसका अंदाज भी खुलकर व्यक्त करते हैं  सब लोग.
       यूँ ही काम ख़त्म कर चाय पीने के बहाने ,दिमाग पर पड़ते हथौड़ों को परे हटाकर उसे कपास बनाने की नीयत से लोग स्टेशन या बस स्टेंड के चौक पर इकठ्ठा हो जाया करते हैं.करियर की चिंता के तनाव को चाय की चुस्कियों में हलक से नीचे उतारती नौजवान पीढ़ी के चेहरे सर्वाधिक होते हैं.बाकी तो सर्विस क्लास और दो पल रूककर अपनी चाहत  बुझाने को रुकते हैं लोग.
प्लेटफार्म पर इन्तेजार में बैठे उस शख्स को ठोड़ी पर हाथ रखे देर रात तक सोचने की मुद्रा में देखने पर ऐसा लगा मानो वह मन में कह रहा हो... हम अपने शहर में होते तो ....! खैर अपनी -अपनी मजबूरी!
                       ठण्ड काले में सूरज भी सरकारी अफसर हो जाता है 
                      सुबह देर से आता है और शाम को जल्दी जाता है 
दिन छोटे हो गए.नीली छतरी सांझ को जल्दी ही मुंह काला कर लेती है.यह अलग बात है की सफ़ेद-पीले बिजली से रोशन"सीन्स के देवदूत"अँधेरे को उसी तरह मुंह चिढाते हैं मानो शैतान बच्चों की कतार लम्बी जीभ निकलकर कह रही हो...ऍ ssssss !  
चौक- चौराहों पर ... सड़क किनारे आबाद खोमचों -ठेलों पर पहली दस्तक मकई के भुट्टों ने दी थी.पीछे-पीछे मेराथन रेस  में दौड़ते आ गए बीही ,गजक ,गर्मागर्म मूंगफली के दाने और गुड पापड़ी.
                     घरों और शादी के रिसेप्शन में गाजर का हलवा और लजीज व्यंजनों के साथ मौसम को जीना सीखते शहर के बन्दों को देखकर बदलते मिजाज को भांपने में दिक्कत नहीं होती.
 खाते-पीते " घर के लोगों की खुशकिस्मती है पर " पीते -खाते "लोगों को देखकर ख़ास तौर पर मन उस वक्त कचोटता है जब सरी राह चलते चलते किसी कोने में दिखाई दे जाता है -
                        मुफलिस को ठण्ड में चादर नहीं नसीब 
                        कुत्ते    अमीरों के हैं लपेटे  हुए लिहाफ 
आने वाले दिनों में सर्दियाँ तेज होंगी तब अपनी तबीयत बूझकर मौसम से जूझना और उसका लुत्फ़ उठाना दोनों ही करना होगा.क्या सर्दियों में यह बेहतर नहीं होगा की समाज सेवी संगठन मानसिक आरोग्य केंद्र ,मातृछाया ,वृद्धाश्रम या  अनाथाश्रमों की पड़ताल कर उन्हें यथा  संभव मदद करने की पहल करें?वैसे सच तो यह है कि यह मौसम सबसे आरोग्यकारी है. सुबह-सुबह लोगों को तफरीह करते और गार्डन-मैदान में बैडमिन्टन खेलते देखा जा सकता है.
                       सर्दियों में जो अकेले हैं वे सोचेंगे "सर्द रातों में भला किसको जगाने जाते"दिल बहलाने को तो ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है के यादों का कफन ओढने वालों को ठण्ड का एहसास नहीं होता लेकिन ग़रीबों और बेसहारों की मदद करना भी हमारे कर्तव्य का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए.अब यह भी क्या सोचने की बात है के दूल्हा  अपनी दुल्हन के मेहंदी से रचे हाथों को देखकर क्या कह रहा होगा, यही ना कि-
                        दिल मेरा धड़कता है इन ठण्ड भरी रातों से 
                       तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से 
बहरहाल ,मुद्दे की बात यह है कि ख़ुशी या गम में पीने वाले संयम में रहें.अपनी और खास तौर पर बुजुर्गों की तबीयत का विशेष ध्यान रखें.एक बात मेरे नौजवान दोस्तों के लिए जो अपने -अपने प्यार क़ी मीठी यादों में खोकर यही कहते हैं=
                      इस ठिठुरती ठण्ड में तेरी यादों का गुलाब 
                     इस तरह महका के सारा घर गुलिस्तान हो गया 
                                                                     प्यार सहित... अपना ख्याल रखिएगा---
                                                                           किशोर दिवसे 
                                                        kishore_diwase@yahoo.com

लघुकथा ;इक्कीसवी सदी का महाभारत

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लघुकथा ;इक्कीसवी सदी का महाभारत 
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इक्कीसवी सदी की बात है .किस्सा महाभारत नाम के देश का है .संसद का शीत सत्र चल रहा था .भयंकर कोहराम की वजह से  उनकी अगुवा बारम्बार अपील कर रही थी -प्लीज प्लीज शांत हो जाइए . बेअसर होती इस अपील को उन तमाम जुओं ने भी हैरत से देखा जो नेताओं के कानों पर रेंगने की फिजूल कोशिश कर रही थीं .कुर्सी फेक,हंगामा ,बदस्तूर जारी रहा .कुछ आपस में लड़ रहे थे ... धींगा मुश्ती... एक -दूसरे पर आँखें तरेरना ... झूमा -झटकी रोक टोक पर भी जारी थी .कुछ सांसद अच्छे भी थे जो गंभीरता से  विचार मंथन में लगे थे 
                  यूं तो अखबार नवीसों को महाभारत की संसदीय कार्रवाई देखने का न्योता मिला करता था. इस बार अगुवा ने तय किया कि सांसदों को प्रशिक्षण के लिए ले जाया  जायेगा .खबर मिलते ही उनकी बांछे खिल गईं.देशी अस्पतालों के बदले बिदेसी अस्पताओं में इलाज करने के शौकीन सांसद तो आखिरकार नहीं  ही जाने वाले थे , सो नहीं गए .
     " शांत हो जाओ बच्चों ... हल्ला नहीं करना आप तो बच्चे हो ... समझदार हो . टीचर के कहते ही बच्चे खामोश हो गए ." उन सभी सांसदों ने देखा जो प्रशिक्षण के लिए स्कूल पहुंचे थे .बगलें झांकते हुए एक - दूसरे  का थोबड़ा देखने लगे . कुछ देर के भीतर ही सभी सांसद बाहर शोर मचाने लगे .प्रिंसिपल साहब के आने तक वे बाहर इसी तरह शोर मचाते रहे .इधर  बच्चों का ध्यान भंग होता देखकर  टीचर ने पहले तो कोहराम मचाते सांसदों  की ओर देखा और दूसरे ही पल बच्चों से सवाल किया - " बच्चों ! चलो बताओं कुत्तों     की पूंछ टेढ़ी क्यों होती है?  कुछ ही देर में सांसदों के दल से उनके अगुवा ने कहा ... चलिए .... हम  सब अब कल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मिलेंगे  नमस्कार..."