आप सब जागते रहें। अलख निरंजन !
मगर मच्छों का झुण्ड .. जबड़े पूरी तरह फाड़े हुए। नीयत , फ़ौरन निगल जाने की । उनके बीच फंसा हुआ है एक हिरन। अपने कुछ नवजात शावकों के साथ। मार दिया जाय या छोड़ दिया जाय!अमूमन यही सीन नजर आ रहा है दिल्ली की आप पार्टी सरकार के सन्दर्भ में।
सारी दुनिया की निगाहें आप पार्टी की अगुवाई में बन रही दिल्ली की सरकार पर टिकी है। सबसे पहली वजह यही कि दिल्ली की नवजात सरकार वैकल्पिक मीडिया के जबर्दस्त उत्प्रेरक प्रभाव और राष्ट्रिय दलों के विरोध से प्रसूत बुनियादी मसलों की रण - दुंदुभि से गूंजती नव गठित सरकार है। जितनी अधिक अपेक्षाएं हैं उससे भी ज्यादा दुष्कर इस सरकार का टिके रहना समझा जा रहा है,यकीनन है भी। सरकार चलाने का तरीका समझने में इन्हें निश्चित रूप से वक्त लगेगा। दहकता सवाल कानून और साथ दे रही पार्टी कांग्रेस की नीयत का भी है। संवैधानिक अड़चने भी मुह बाये खड़ी दिखाई देंगी।
जनता के सन्दर्भ में कहा जाये तो अगर दिल्ली के लोगो को आप पार्टी के 18 सूत्री घोषणा पत्र में उल्लिखित वायदों के अमल का तोहफा मिल गया तब यह एक व्यवहारिक- चमत्कार ही होगा। और सिर्फ चमत्कार ही नहीं बल्कि पुख्ता नजीर भी बन जायेगी कि सरकारी सुविधाओं और व्यवस्थापन पर सदियों से हो रहे बेतहाशा खर्च में इस तरह से कटौती कर दीगर सरकारें भी क्यों चलायी नहीं जा सकती अब सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि जिनके ( पार्टी और नेता) मुंह में खून लगा हो वे नेक नीयत कैसे हो सकते हैं ?क्या दीगर राष्ट्रीय दल भी इस प्रयोग(जो जन हितकारीदिखाई दे रहा है )को किसी भी तरीके से सफल होने देंगे? यह उनके बदनीयत इरादों के अस्तित्व की रक्षा का प्रश्न होगा। दिल्ली की सरकार का यह प्रयोग अगर सफल होता है तब निश्चित रूप से चुनाव में सुधार( सरकारी व्यवस्थापना व्यय में कटौती व् अन्य बेहतर विकल्प लाने की जिम्मेदारी भारत कि जनता पर नहीं होगी ?इस मसले पर जन जिहाद और आप पार्टी की सरकार की सफलता के मध्यकाल का अंतराल के बीच-- आप सब जागते रहें। अलख निरंजन !
मगर मच्छों का झुण्ड .. जबड़े पूरी तरह फाड़े हुए। नीयत , फ़ौरन निगल जाने की । उनके बीच फंसा हुआ है एक हिरन। अपने कुछ नवजात शावकों के साथ। मार दिया जाय या छोड़ दिया जाय!अमूमन यही सीन नजर आ रहा है दिल्ली की आप पार्टी सरकार के सन्दर्भ में।
सारी दुनिया की निगाहें आप पार्टी की अगुवाई में बन रही दिल्ली की सरकार पर टिकी है। सबसे पहली वजह यही कि दिल्ली की नवजात सरकार वैकल्पिक मीडिया के जबर्दस्त उत्प्रेरक प्रभाव और राष्ट्रिय दलों के विरोध से प्रसूत बुनियादी मसलों की रण - दुंदुभि से गूंजती नव गठित सरकार है। जितनी अधिक अपेक्षाएं हैं उससे भी ज्यादा दुष्कर इस सरकार का टिके रहना समझा जा रहा है,यकीनन है भी। सरकार चलाने का तरीका समझने में इन्हें निश्चित रूप से वक्त लगेगा। दहकता सवाल कानून और साथ दे रही पार्टी कांग्रेस की नीयत का भी है। संवैधानिक अड़चने भी मुह बाये खड़ी दिखाई देंगी।
जनता के सन्दर्भ में कहा जाये तो अगर दिल्ली के लोगो को आप पार्टी के 18 सूत्री घोषणा पत्र में उल्लिखित वायदों के अमल का तोहफा मिल गया तब यह एक व्यवहारिक- चमत्कार ही होगा। और सिर्फ चमत्कार ही नहीं बल्कि पुख्ता नजीर भी बन जायेगी कि सरकारी सुविधाओं और व्यवस्थापन पर सदियों से हो रहे बेतहाशा खर्च में इस तरह से कटौती कर दीगर सरकारें भी क्यों चलायी नहीं जा सकती अब सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि जिनके ( पार्टी और नेता) मुंह में खून लगा हो वे नेक नीयत कैसे हो सकते हैं ?क्या दीगर राष्ट्रीय दल भी इस प्रयोग(जो जन हितकारीदिखाई दे रहा है )को किसी भी तरीके से सफल होने देंगे? यह उनके बदनीयत इरादों के अस्तित्व की रक्षा का प्रश्न होगा। दिल्ली की सरकार का यह प्रयोग अगर सफल होता है तब निश्चित रूप से चुनाव में सुधार( सरकारी व्यवस्थापना व्यय में कटौती व् अन्य बेहतर विकल्प लाने की जिम्मेदारी भारत कि जनता पर नहीं होगी ?इस मसले पर जन जिहाद और आप पार्टी की सरकार की सफलता के मध्यकाल का अंतराल के बीच-- आप सब जागते रहें। अलख निरंजन !
11:29 pm
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