सच कहू दोस्तों ! मुझे तो याद भी न था की २० को गौरैया दिवस है. प्रिय मित्र राहुल सिंह का मैसेज मिला और गौरैया की तरह फुदकने का मन करने लगा. कोई कुछ भी बोले मेरी तो आदत है, जिस बात की जानकारी मुझे नहीं होती बस भानमती का पिटारा खंगालने बैठ जाता हूँ. अम्बरीश श्रीवास्तव, डा. राकेश शर्मा,एन. शैलजा ( मूल तेलुगु और रामचंद्र जनवार की कवितायेँ पढ़कर मजा आ गया. आप भी इसका आनंद लीजिए. रहा सवाल पक्षी विज्ञानं (ORNITHOLOGY ) से जुडी सूचनाओ का ,गौरैया यानि Passer domesticus पर ढेर सारी जानकारियों का खजाना मौजूद है.चलिए आप फिलहाल पढ़िए गौरैया पर हिंदी कविताएँ ----
गौरैया बचाओ!!!! कोई तो आओ !!!!..........
आज के परिवेश में एक प्रश्न सभी से .....
इधर उधर
फुदकती
मन भाती
चारों ओर चहचहाती
चिरैया
आँगन में नृत्य करती
गौरैया
लगता है
शायद अब
किताबों में ही दिखेगी
अमानवीय क्रूर हाथों से
कैसे बचेगी वो ?
--अम्बरीष श्रीवास्तव
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ओ गौरैया..... ओ गौरैया
नहीं सुनी चहचहाहट तुम्हारी
इक अरसे से
ताक रहे ये नैन झरोखे
कुछ सूने और कुछ तरसे से।
फुदक फुदक के तुम्हारा
हौले से खिड़की पर आना,
जीवन का स्वर हर क्षण में
घोल निडर नभ में उड़ जाना।
धागे तिनके और फुनगियां
सपनों सी चुन चुन कर लाती,
उछलकूद कर इस धरती पर
अपना भी थी हक जतलाती।
खो गई तुम कहीं गौरेया
भौतिकता के अंध-जाल में
मानव के विकट स्वार्थ और
अतिवाद के मुख कराल में।
सिमट गई चिर्र-मिर्र तुम्हारी
मोबाइल के रिंग-टोन पर,
हँसता है अस्तित्व तुम्हारा
सभ्यता के निर्जीव मौन पर।
मोर-गिलहरी जो आंगन को
हरषाते थे सांझ-सकारे,
कंक्रीट के जंगल में हो गए
विलीन सभी अवशेष तुम्हारे।
तुलसी के चौरे से आंगन
हरा-भरा जो रहता था,
कुदरत के आंचल में मानव
हँसता भी था और रोता था।
भूल गये हम इस घरती पर
औरों का भी हक था बनता,
मानव बन पशु निर्दयी
मूक जीवों को क्यों हनता।
डॉ. राकेश शर्मा
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मुझे एक गौरैया ला दो ( तेलुगु कविता )
एन शैलजा
मुझे एक गौरैया ला दो!
नहीं चाहिए मुझे दुर्लभ बाघ
पोलार भालू भी नहीं
चाहिए नहीं सोने का हिरन
अंतरिक्ष का चन्द्रयान भी नहीं!
चाहिए मुझे
एक सजीव गौरैया जो
मन के बन्द किवाडों को
अपनी चोंच से खटखटाकर
मुझे जगाती हैं।
दुपहर की तनहाई के समय
उडते हुए आकर
अपनी चहचहाहट से
कुशल-क्षेम पूछने वाला
गौरैया का वह स्वर चाहिए मुझे।
बूढे माथे की झुर्रियों को
विस्मद मोद का विकास चाहिए।
नजर भले ही क्षितिज पार करे
लापता प्रवास ही तो है जीवन!
दिल में घोंसले में चहकनेवाले गौरैये के लिए
है नहीं थोडी-सी भी जगह!
सच है
जिस घर की ओलती न हो
है वह मेहमानदारी से अनभिज्ञ मन!
जहाँ तक नजर जाती
लम्बी शीशों की गगनचुम्बी इमारतें
जगह नहीं चिडया के घोंसले के लिए
मुट्ठी भर मन के लिए!
अगोचर एस एम एस लहरों के जाल में, फन्दे में फँसकर
घुटते दम की बेचारी भोली गौरैया
है या नहीं पता नहीं
फिर दिखाई पडेगी या नहीं मालूम नहीं!
अपने भीतर हम भी झाँकते तब न
जब हमें मिले फुरसत
कब मिले वह फुरसत कि
हम सोच ले मन टटोलकर
बेचारी गौरैया क्यों गायब है?
जिस घर पर गौरैया नहीं बैठे
वह ऐसे ओंठ-सा है, जैसे
मुस्कुराहट का गीलापन कभी छूता तक नहीं
वह सूखकर दरार पडे तालाब-सा है, जो
प्रवास पक्षी के चले जाने पर गला फाड-फाडकर रोता है
गलत मत मानो
करो पूरी मेरी एक छोटी-सी माँग
मान के बखार पर बैठकर
दाने-दाने को अपनी चोंच से उधेडकर खानेवाले
गौरैयों के समूह को मुझे एक बार दिखा दो!
उडते हुए जीवन के दो क्षणों को
मुझे याद करने दो!
गौरैया बहुत परेशान
सूखे-सूखे ताल-पोखर
सूने खलिहान
बीघा भर धरती में
मुठ्ठी भर धान
चुग्गा-चाई का कहीं
ठौर ना ठिकान
गौरैया बहुत परेशान
कौन जाने कहाँ गए
मेघों के साए
तपती दुपहरिया
पंखों को झुलसाए
भारी मुश्किल में है
नन्ही सी जान
गौरैया बहुत परेशान
घनी-घनी शाखों पर
बाज़ों का डेरा
कहां बनाए जाकर
अपना बसेरा
मंजिल अनजानी है
रस्ते वीरान
गौरैया बहुत परेशान
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गौरैया बहुत परेशान
(राम चन्द्र जनवार )
सूखे-सूखे ताल-पोखर
सूने खलिहान
गौरैयों के समूह को मुझे एक बार दिखा दो!
बीघा भर धरती में
मुठ्ठी भर धान
चुग्गा-चाई का कहीं
ठौर ना ठिकान
गौरैया बहुत परेशान
कौन जाने कहाँ गए
मेघों के साए
तपती दुपहरिया
पंखों को झुलसाए
भारी मुश्किल में है
नन्ही सी जान
गौरैया बहुत परेशान
घनी-घनी शाखों पर
बाज़ों का डेरा
कहां बनाए जाकर
अपना बसेरा
मंजिल अनजानी है
रस्ते वीरान
गौरैया बहुत परेशान
जब खुद को कोई जानकारी न हो तब ज्ञानार्जन करने और बाटने का ये मेरा अपना अंदाज है .
काश २० तारीख को पैदा होने वाली किसी बच्ची का नाम भी गौरैया ही रख दिया जाए !आज बस इतना ही
किशोर दिवसे
12:55 am
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जवाब देंहटाएंदिवसे जी परेशान तो हम भी है जो आप के ब्लॉग के समर्थक नहीं बन पा रहे है
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होली है
होली की हार्दिक शुभकामनायें
manish jaiswal
Bilaspur
chhattisgarh
बहुत सुंदर कविताएं जुटाई हैं आपने, बहुत-बहुत धन्यवाद. गौरैया पर एक अच्छी पोस्ट संजीव तिवारी जी के 'आरंभ' पर भी आई है.
जवाब देंहटाएंगौरेया अब शहरों से गायब होने लगी है, मोबाईल युग ने हमसे प्यारी सी फुदकती गौरेया और कलरव करते कई खग छीन लिए हैं। बहरहाल गौरेया को हमारे भाई-बंधु याद कर रहे हैं, निश्चित ही अच्छी बात है। बहुत बधाईयां किशोर जी।
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