बेवकूफ कहीं की !इतना खूबसूरत सुनहरा जिल्द तुमने बर्बाद कर दिया... वह भी एक जिल्द लगाने के लिए!" तीन बरस की नन्ही मासूम को उसके पिता ने जोरदार डांट पिलाई .उस मासूम ने सुनहरा जिल्द एक बक्से पर लगा दिया था.अगले रोज सुबह वह नन्ही परी सुनहरे जिल्द में लिपटा बक्सा अपने पापा के पास लाकर बोली ," यह आपके लिए है पापा!"
उसके पापा पहले तो अपने बेवजह गुस्सा हो जाने पर कुछ पल बगलें झाँकने लग गए लेकिन उस समय उनका पारा फिर भड़क गया जब उनहोंने देखा की वह बक्सा पूरी तरह खाली है.लाल -पीला होते हुए उस बच्ची के पापा ने कहा ," मूर्ख लड़की! तुम्हें इतनी भी अक्ल नहीं है ... यह भी नहीं जानती कि जब किसी को उपहार दिया जाता है तब बक्सा ख़ाली नहीं रखना चाहिए!"
एकदम डबडबा आई उस नन्ही परी की भोली-भाली आँखे.आंसू भरकर सुबकते हुए बोली ," ओह पापा!यह बक्सा ख़ाली नहीं है.मैंने अपने ढेर सारे चुम्बन इसमें रखे हैं.ये सब सिर्फ आपके लिए हैं पप्पा.!"
उसके पिता का चेहरा लटक गया.उनहोंने " नन्ही सी जान" को अपनी बाहों में लपेट लिया और पूरी नरमी से कहा," प्लीज मुझे माफ़ कर दो बेटी!"
कुछेक हफ्ते गुजरे होंगे और वह काला दिन आ गया जिसके बारे में कभी सपने में भी सोचा नहीं था.एक भयानक हादसा हुआ और पप्पा की आँखों के सामने से वह नन्ही परी आसमान में ग़ुम हो गई.दूर... बहुत दूर...जहाँ से कभी कोई लौटकर नहीं आता.टूटकर बिखर गए पापा के पास अब भी उनके बिस्तर पर वही सुनहरी जिल्द से लिपटा हुआ बक्सा रखा है.जब भी अपनी नन्ही परी की याद में उनकी आँखे सागर बन जाती हैं उस बक्से में से अपनी नन्ही परी का एक चुम्बन निकालकर देर तक खो जाते हैं उसकी मीठी-मीठी यादों में.
आप और हम सब इस हकीकत को हमेशा झुठला देते है कि सबके पास ईश्वर और खुदा की एक अनमोल सौगात है.यह वही सुनहरी जिल्द से लिपटा हुआ बक्सा है जिसमें ढेर सारा प्यार है और अनगिनत चुम्बन भी.अपने बच्चों से , परिवार के सदस्यों से ,दोस्तों से और ईश्वरीय शक्ति या सुप्रीम पावर से मिला है यह अथाह प्रेम.
अनचाहा, अनचीन्हा और लावारिस सा हम कब तक पड़े रहने देंगे उस सुनहरी जिल्द से लिपटे बक्से को? उसे तलाश है उन सबकी जो - धन कि हवस में बन गए हैं धन पिशाच ,जिस्म की हवस में बन गए हैं मनोरोगी और शराब तथा नशे कि हवस में हो गए है मदहोश.अपने पिटारे में से एक-एक बहाना सांप की तरह निकालकर डराने और भरमाने में माहिर हैं सब लोग.हवस और जूनून के पाजिटिव और निगेटिव फैक्टर को पहचानने क़ी जहमत भी मोल नहीं लेना चाहते !उच्चाकांक्षा क़ी अंधी सुरंग में क्या यह भूलना रत्ती भर भी जायज है कि सुखों क़ी ललक में हममें से कई उन सुखों का भी उपभोग नहीं कर सके जो हमारे पास पहले से ही मौजूद थे.
सो, जिंदगी की मेराथन में भागते जरूर रहिए मगर इतना ख्याल रहे कि सपनों के कल्पवृक्ष की ललक में अपने परिवार की महकती अमरैया को जरा भी मुरझाने न दें .यकीन मानिए, हर किसी के पास सबसे अनमोल धरोहर है.वही सुनहरी जिल्द लगा बक्सा जिसमें छिपा है बच्चे... परिवार...दोस्त...और ईश्वर से मिला प्रेम और अनगिनत चुम्बन !जो निःस्वार्थ और निशर्त है .उसी नन्ही परी के चुम्बनों क़ी तरह! या हो सकता है वह नन्हा राजकुमार भी हो!
अभी बस इतना ही. शुभ रात्रि... शब्बा खैर ... अपना ख्याल रखिए...
किशोर दिवसे
12:33 pm