शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

उनके नाम पर छी... उनके नाम पर थू.!!!!!!!!!!

Posted by with 5 comments
     १३ दिसंबर के हिन्दुस्तान टाइम्स में एक रिपोर्ट पढ़ी थी.शनिवार को कोई चैनल भी इसे जोर-शोर से दिखा रहा था. इस रिपोर्ट के मजमून ने रोंगटे खड़े कर दिए.हालाकी हमारे यहाँ कुछ परम्पराएं अच्छी है पर कुछ इतनी हद दर्जे की वाहियात है की उन्हें समूल ख़त्म करने पर समाज जब सोचने की भी जहमत मोल नहीं लेता तब जबरदस्त कोफ़्त  होती है.
                    दक्षिण कर्णाटक के कुक्के सुब्रमनियम मंदिर का नजारा दिखाया जा रहा था चैनल पर.४०० बरस से यह परंपरा जारी है.केले की पत्तियों पर ब्राह्मणों की जूठन पर दलित समाज के गरीब लोट रहे थे.आम मान्यता यह है कि ऐसा करने से उनके शरीर से चर्म रोग दूर हो जाएँगे..हालाकी कुछ संगठनों ने इसका विरोध किया लेकिन बात नहीं बनी.कहना है क़ि इस कुकर्म में सभी समाज के लोग शामिल होते है.मायावती इस कुप्रथा पर प्रतिबन्ध चाहती है लेकिन मंदिर प्रबंधन का दावा है कि वे दबाव नहीं डाल सकते.यह मंदिर यूं पी सरकार के मुजराई विभाग के अंतर्गत है.विभाग के मंत्री वी एस आचार्य के मुताबिक यह आस्था का मामला है, हम कुछ नहीं कर सकते.सुब्रमनियम मंदिर बंगलूरू से सिर्फ ३० की मी दूर है , जो शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हब है.
                       कुपराम्पारा से जुदा एक कथानक- सुब्रमनियम ने सर्प देव वासुकी को शरण दी जो कुक्के की गुफामें गरुड़ के आतंक से बचने जा छिपे थे.रोचक तथ्य यह है की सर्प दोष दूर करने यह पर सर्प संस्कार किया जाता है.अनेक ही प्रोफाइल लोग यह आ हुके है जिनमें अमिताभ बच्चन और शिल्पा शेट्टी भी शामिल हैं.शुक्रवार को जब रस्म अद्द्य्गी हो रही थी तब विरोध के स्वर बुलंद भी हुए थे. अब आस्था को हौवा बनाकर आखिर कब तक यह शर्मनाक तमाशा चलता रहेगा और समाज कब तब इसे बर्दाश्त करेगा - परंपराओ के नाम पर , यह सोचने का दारोमदार भी समाज के धार्मिक मठाधीशों और शिक्षित  युवा फ़ोर्स पर है, ऐसा मुझे लगता है. इस बारे में आप क्या सोचते है, बताइयेगा. आज बस इतना ही.
                                                         अपना ख्याल रखिए...
                                                                                   किशोर दिवसे.

Related Posts:

  • गौरैया बहुत परेशान सच कहू दोस्तों ! मुझे तो याद भी न था की  २० को गौरैया दिवस है. प्रिय मित्र राहुल सिंह  का मैसेज मिला और गौरैया की तरह फुदकने का मन करने लगा. कोई कुछ भी बोले  मेरी तो आदत है,… Read More
  • तियामत, समंदर की देवी तियामत, समंदर की देवी बेबीलोन के मिथकों में तियामत विशालकाय मादा ड्रेगन है.समंदर के उद्वेग का प्रतीक.समस्त देवताओं और देवियों में आदिकालीन.उसका पति है आपसु,धरती के नीचे ताजा जलराशि का गड्ढा.उन… Read More
  • इंसान अपना मूल स्वभाव पूरी तरह नहीं बदल सकता? Human being cant completely transform its original behavior इंसान और संस्कृति के ढांचे के बीच गहरा रिश्ता पहले था, शायद अब भी  है। यही रिश्ता सम… Read More
  • Hi folks ...... you must know who were born today    Some amazing personalities of the world were born today on july 6th . The first one is Tenzin Gyatso popularly known as Dalai Lama . !4 th Dalai Lama is religio… Read More
  • अनुसन्धान के क्षेत्र में बिलासपुर का गौरव -समीक्षा वासनिक "कड़ी मेहनत और लक्ष्य तय कर काम करने से सफलता जरूर मिलती है" अनुसन्धान के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ का गौरव -समीक्षा वासनिक "मुझे हमेशा प्रतिस्पर्धात्मक और चुनौती भरे माहौल में काम करना पसंद रहा है। क… Read More

5 टिप्‍पणियां:

  1. किशोर जी वर्तनी की इतनी चूक क्‍यों, जो पढ़ने में बाधक हो रही है. आपकी दाढ़ी से लोग भिी बिग बी को याद करते थे, अब 'अपना ख्‍याल रखिए' चलिए, ख्‍याल कराने का शुक्रिया. आप भी अपना ख्‍याल रखें.

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ जगहों पर कुछ चीजें बची हैं अभी.

    जवाब देंहटाएं
  3. यह कार्यक्रम स्वस्फूर्त था या प्रायोजित ?

    जवाब देंहटाएं
  4. दुम मरोड़ने का शुक्रिया..राहुल भाई ,वर्तनी में भद्दी चूक ब्लॉग के ट्रांसलेटर से रोमन स्क्रिप्ट के जरिए कम्पोज करते वक्त हड़बड़ी में हो जाती हैं. आइन्दा ख्याल रखूंगा. ब्रज किशोर सर जी, आपने ठीक कहा,कुछ जगहों पर कुछ चीजें बची हैं अभी. सवाल यह है कि उन्हें सहेजने पर कब कौन कैसे सोचता है. वैसे सर जी,ऐसी परम्पराओं का आवेग कर्नाटक में ही नहीं दीगर कई राज्यों में भी नजर आ रहा है. छत्तीसगढ़ में भी व्याप्त कुछ कुप्रथाओ पर प्रिंट मीडिया ने बाखबर करने का काम किया है.चैनल वाले यहाँ अभी कुछ लो प्रोफाइल पर है.हाँ...कब कौन से टीवी चैनल वाले किस मोमेंट को सनसनी के नाम पर अपना हिडन एजेंडा बना लें क्या भरोसा ?

    जवाब देंहटाएं
  5. ऐसे अंध विश्वासों को टीवी पर देखकर या कहीं पढ़कर सहसा विश्वास नहीं होता। कुछ लोग इन अंध विश्वासों के चलते पशुओं से भी बदतर जीवन गुज़ार रहे हैं। शायद शिक्षा ही इसका हल है।

    जवाब देंहटाएं