शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

परिवर्तन है नए वर्ष का सन्देश

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तारीख -३१ दिसंबर
वक्त  दोपहर   ( शाम के बाद समय नहीं मिलेगा इसलिए)
ह़र किसी का अपना अलहदा अंदाज होता है बीते बरस को अलविदा कहने का.वर्ष २०१० की विदाई और २०११ का  स्वागत करने प्लानिंग अमूमन पहले से ही हो जाया करती है.कईयों ने सोचा की आउटिंग कर ऐश करे और रात दारू-शारू के साथ मजे लें. नव- धनाढ्यों  का कुनबा बड़ी होटलों में साल की विदाई पार्टी के साथ "रात रंगीन " करने शराब -शबाब के पॅकेज डील कर चुका होता है.बीते बरस भी ३१ की रात को सुरूर में पहले तो तेज रफ़्तार सडको पर कुछ नौजवान घूमे फिर उनमें से कुछ अस्पताल में भी नजर आए.
                        वर्ष २००९ की रात को भी बारह बजे शहर जवान हो कर मस्ती में बल्ले-बल्ले कर रहा था. अपनी- अपनी सोच और नसीब के चक्कर में बीते साल की विदाई का अंदाज भी मजदूरों, मिडिल क्लास और रईसों की तकदीर- तदबीर के पारदर्शी अक्स दिखा जाता है.कहीं खुशी .. कहीं गम ...कहीं जोश-ऍ- जूनून तो कहीं झुंझलाहट नजर आती है.रात में टीवी के सामने " हात एंड मसाला कार्यक्रमों को देखने वालों का तबका भी होता है.युवा होस्टलों में जश्न का अलग अंदाज तो जिनकी एग्जाम चल रही है वे थोडा  सा एन्जॉय कर ज्यादा टाइम खोटी नहीं करना चाहते.
                               आज रात भी यही सब होगा . पिछले बरस अपने दद्दू ने टिप्पणी कीथी ,"दोस्त! बाजार और नई हवा के इशारे पर ही सही लोग अब अवसरों को बिंदास तरीके से जीने की जीवनशैली अपना चुके हैं.यह बात अलग है ki जिंदगी में मिली सौगातें अपने-अपने पुरुषार्थ और नसीब का मिला-जुला फलादेश है.कुछ लोग नए वर्ष पर जश्न के साथ कोई रिसोलुशन भी लेते हैं . हाँ! कौन निभाता है कौन नहीं यह अपनी जिद की बात है.
                           " संकल्प के लिए नए बरस की शुरुआत की मोह्ताज्गी क्यों ? क्या हम साल भर उत्सव की तरह नए  संकल्पों के साथ नहीं मना सकते? "क्यूँ नहीं!नए वर्ष का सन्देश है परिवर्तन.हमसे जुडी  व्यवस्थाओं के प्रति जाग्रति,सच्चे ज्ञान ,प्रेम और खुशियाँ बाटने का संकल्प  कर हम साल भर उसपर अमल कर सकते हैं.रात गई, बात गई कहकर एक दिनी हुल्लड़ और अय्याशी से कुछ नहीं होने का.फिर भी टेंशन भरी जिंदगी में हम लोग फुल -टू मनोरंजन का कोई भी मौका नहीं चूकते..चूकना भी नहीं चाहिए.
       बीते बरस की विदाई और नए वर्ष के स्वागत को एक दिनी जश्न मानने वालों के अलावा बच्चे से बूढ़े तक के लिए नए वर्ष का समूचा अजेंडा  गुरुदेव रवीन्द्र नाथ  टेगोर की " गीतांजलि" में इन पंक्तियों से प्रतिध्वनित होता है-
                                जहाँ पर मस्तिष्क हो निर्भय,
                                  और भाल सदा गर्वोन्मत्त
                                  जहां  हो ज्ञान का मुक्त भंडार,
                                 जहाँ न हो विश्व विभाजित
                                  संकीर्ण सरहदी दीवारों से
                                    जहाँ सदा जन्म लें अक्षर
                                  ध्रुव सत्य की कोख से
                                 जहाँ अनथक  परिश्रम आतुर हो
                                  उत्कर्ष का आलिंगन करने
                                    जहाँ निरंतर प्रयोजन के स्रोत
                                   स्वार्थ मरू में न हो गए हो लुप्त
                                     जहाँ मेधा इन सत्य पुष्पों से
                                    सदैव हो परिचालित,विचारवान
                                     मेरे पिता!जागने दो मेरे देश  को!
चलिए छोड़िए.... बीते बरस की विदाई में जुट जाएँ  अपने- अपने तरीके से.कल सुबह कोई मंदिर जाएगा  भगवान से आशीर्वाद लेने ... आराध्य  से नया वर्ष सुखद होने की कामना करेंगे.कोई देर सुबह तक उनींदा सा होगा. आप सभी मेरे अपने है. सो .अपनी प्रिय मित्र संज्ञा टंडन का मेरे मोबाइल पर आया यह सन्देश आपतक पहुंचाकर नया वर्ष खूब प्यार और खुशहाली भरा होने की कामना इन शब्दों में करता हूँ
                             क़ल जब किस्मत बटेगी तब ४ इक्के आप के हाथ लगेंगे ----1111  आगत वर्ष की तारीख़ - 1-1-1-1
                                     खुश रहिए ... खुश रखिए...और अपना ख्याल रखिएगा...
                                                                             किशोर दिवसे
                                                                               मोबाईल -09827471743                              
                                      
                                    

                              
                          

                                                            

रविवार, 19 दिसंबर 2010

दुम मरोड़ने का शुक्रिया

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राहुल भाई ,वर्तनी में भद्दी चूक ब्लॉग के ट्रांसलेटर से  रोमन स्क्रिप्ट के जरिए कम्पोज करते वक्त हड़बड़ी में हो जाती हैं. आइन्दा ख्याल  रखूंगा.  ब्रज किशोर सर जी, आपने ठीक कहा,कुछ जगहों पर कुछ चीजें बची हैं अभी. सवाल यह है कि उन्हें सहेजने पर कब कौन कैसे सोचता है. वैसे सर जी,ऐसी परम्पराओं का आवेग कर्नाटक में ही नहीं दीगर कई राज्यों में भी नजर आ  रहा है. छत्तीसगढ़ में भी व्याप्त कुछ कुप्रथाओ पर प्रिंट मीडिया ने बाखबर करने का काम किया है.चैनल वाले यहाँ अभी कुछ लो प्रोफाइल  पर है.हाँ...कब कौन से टीवी चैनल वाले किस मोमेंट को सनसनी के नाम पर अपना हिडन एजेंडा बना लें क्या भरोसा?

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

उनके नाम पर छी... उनके नाम पर थू.!!!!!!!!!!

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     १३ दिसंबर के हिन्दुस्तान टाइम्स में एक रिपोर्ट पढ़ी थी.शनिवार को कोई चैनल भी इसे जोर-शोर से दिखा रहा था. इस रिपोर्ट के मजमून ने रोंगटे खड़े कर दिए.हालाकी हमारे यहाँ कुछ परम्पराएं अच्छी है पर कुछ इतनी हद दर्जे की वाहियात है की उन्हें समूल ख़त्म करने पर समाज जब सोचने की भी जहमत मोल नहीं लेता तब जबरदस्त कोफ़्त  होती है.
                    दक्षिण कर्णाटक के कुक्के सुब्रमनियम मंदिर का नजारा दिखाया जा रहा था चैनल पर.४०० बरस से यह परंपरा जारी है.केले की पत्तियों पर ब्राह्मणों की जूठन पर दलित समाज के गरीब लोट रहे थे.आम मान्यता यह है कि ऐसा करने से उनके शरीर से चर्म रोग दूर हो जाएँगे..हालाकी कुछ संगठनों ने इसका विरोध किया लेकिन बात नहीं बनी.कहना है क़ि इस कुकर्म में सभी समाज के लोग शामिल होते है.मायावती इस कुप्रथा पर प्रतिबन्ध चाहती है लेकिन मंदिर प्रबंधन का दावा है कि वे दबाव नहीं डाल सकते.यह मंदिर यूं पी सरकार के मुजराई विभाग के अंतर्गत है.विभाग के मंत्री वी एस आचार्य के मुताबिक यह आस्था का मामला है, हम कुछ नहीं कर सकते.सुब्रमनियम मंदिर बंगलूरू से सिर्फ ३० की मी दूर है , जो शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हब है.
                       कुपराम्पारा से जुदा एक कथानक- सुब्रमनियम ने सर्प देव वासुकी को शरण दी जो कुक्के की गुफामें गरुड़ के आतंक से बचने जा छिपे थे.रोचक तथ्य यह है की सर्प दोष दूर करने यह पर सर्प संस्कार किया जाता है.अनेक ही प्रोफाइल लोग यह आ हुके है जिनमें अमिताभ बच्चन और शिल्पा शेट्टी भी शामिल हैं.शुक्रवार को जब रस्म अद्द्य्गी हो रही थी तब विरोध के स्वर बुलंद भी हुए थे. अब आस्था को हौवा बनाकर आखिर कब तक यह शर्मनाक तमाशा चलता रहेगा और समाज कब तब इसे बर्दाश्त करेगा - परंपराओ के नाम पर , यह सोचने का दारोमदार भी समाज के धार्मिक मठाधीशों और शिक्षित  युवा फ़ोर्स पर है, ऐसा मुझे लगता है. इस बारे में आप क्या सोचते है, बताइयेगा. आज बस इतना ही.
                                                         अपना ख्याल रखिए...
                                                                                   किशोर दिवसे.

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

मैं नाना बन गया...

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    .मेरे प्यारे दोस्तों ,
काफी वक्त बाद आपसे रू-ब-रू हो रहा हूँ.दरअसल मैं नाना बन गया हूँ.बेटी सपना ने बेटे को जन्म दिया हैपिछ्ली  ३ तारीख़ को. व्यस्त था सो आपसे बात नहीं कर पाया. नन्ही जिंदगी के साथ वक्त बिताना अपने और अपने बच्चे के भी बचपन की तमाम यादों के दरीचे को पलटना सा लगता है. नाना बनने का रोमांच अपने साथ न जाने कितनी जिम्मेदारियों का एहसास करा जाता है. याद आ जाती है अपने नाना -नानी के दौर की बाते जो हमने जी थीं . आज जब खुद नाना बन गया हूँ तब लगता है जिंदगी न जाने कितनी करवटें ले चुकी है. खैर , यह तो नियति है ... जन्म चक्र इसी तरह चला करता है.कुल मिलाकर एक ट्रांस महसूस कर रहा हूँ इन दिनों. फिर भी जल्द ही बातचीत शुरू करूंगा.
                                                                      आपका
                                                                                किशोर दिवसे