शनिवार, 14 मई 2011

मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा !

Posted by with 1 comment


जींस -टॉप... कार्गो टी-शर्ट ... फंकी -शंकी  लुक वाले नौजवान छोकरों और बोल्ड ब्यूटीफुल और बिंदास लड़कियों से घिरा था मैं.भाई कुछ भी बोलो मुझे तो आज की नयी जनरेशन बेहद पसंद है... बिलकुल मीठे-नमकीन बिस्कुट फिफ्टी-फिफ्टी या फिर खट्टी -मीठी इमली की तरह.आज के ज़माने में जब हाफ  सेंचुरी के करीब या उसके पार लोग नए  रंग में रंगने लगे हैं तब जवानी को दिशाहीन ,उच्श्रीन्खल या दीवानी कहने की फितरत एकदम बकवास है.यकीनी तौर पर समाज के आज या आज के समाज को महसूस करने के बाद बूढों का यह फिकरा ," हमने धूप में बाल सफ़ेद नहीं किये हैं " उन युवाओं की कड़ी चुनौती से जूझता हुआ लथपथ सा लगता है जो " होश भरे जोश "के साथ जिंदगी जीता है .इसमें गंभीरता के साथ पूरी मस्ती-शस्ती भी होती है .... दिल से!
                                 यूं ही सीरियस मुद्दों  पर लिखते रहोगे या कभी हमारे साथ मस्ती भी!अपने डोले दिखाते एक " माचो मैन"और एक जोड़ी शैतान, शरीर कनखियों की शरारत ने मुझे यह एहसास दिला दिया कि मुहब्बत और करियर के साझा जज्बे को पुचकारती पीढ़ी का मीठा रिश्ता इस पल मुझसे क्या मांग रहा है.
                                     सच कहूं  !दद्दू और प्रोफ़ेसर  प्यारेलाल जब साथ हो जाते हैं तब किसी भी महफ़िल की रौनक क्या खूब जमती है .हुआ भी यूं... एहसासों का आकाश था ... चर्चा  के बहाने ही सही अल्फाजों के परिंदे मुहब्बत की रेशमी डोर लेकर उड़ने लगे ... ऊंचे... और ऊंचे....
                              कि कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है 
                              मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है 
यहाँ प्यासी धरती की बेचैनी और बरसने को आतुर बादल की बेकरारी किसकी है यह हर कोई समझ  सकता है .लेकिन दद्दू के मन में एक और बात आती है ," मनोविज्ञान में मैंने पढ़ा है कि दूरियां प्यार को और बढा देती हैं " लेकिन इसकी मियाद भी तो तय होनी चाहिए न " मैंने टोका.उदास खोई सी आँखों वाला युवक गुनगुनाने लगा ... शायद उसके दिल की आवाज थी -
                            मैं तुझसे दूर कैसा हूँ,तू मुझसे दूर कैसी है 
                            ये तेरा दिल  समझता है या मेरा दिल समझता है  
दो जोड़ी आँखें जब एक-दूसरे से बिना कुछ  कहे सब कुछ कह रही थीं तभी प्रोफेसर प्यारेलाल ने कहा,"प्यार में दिल और दिमाग का सही संतुलन जरूरी है . मुहब्बत में FALL IN LOVE  के बजाये   RISE IN LOVE   होना चाहिए.खास तौर पर नयी पीढ़ी अगर इसे समझ गयी ( शायद अब समझ चुकी है )तब प्यार  अँधा नहीं बल्कि तेज आँखों वाला और जिम्मेदार हो जायेगा."
                          कि मुहब्बत एक एहसासों  कि पावन कहानी है
                          कभी कबीर दीवाना था कभी मीरा दीवानी है 
कबीर और मीरा से कम, हीर-राँझा ... शीरीं -फरहाद...रोमियो- जूलियट से अधिक वाकिफ न्यू जेन .. शोख हॉट एंड स्वीट कहने लगी ," सर जी!उनके प्यार को समाज  समझ नहीं पाया .मेरी आँखों के आंसुओं को कौन समझेगा कि ये मोती हैं या पानी!
                          यहाँ सब लोग कहते है कि मेरी आँखों में आंसूं हैं
                          जो तू समझे तो मोती है  जो न समझे  तो पानी है 
दद्दू अपनी जवानी का किस्सा बताते हैं ," हुआ यूं कि मुहब्बत की राह पर निकल पड़ी थी दो जोड़ी आँखें तकदीर का फ़साना कहिये कि साथ छूटा और लड़की  की शादी हो गई कहीं और. दो बरस बाद जब वह मुझसे मिली .  उस युवती ने  अपने बच्चे से कहा , " देखो बेटा ...ये  मामा जी है तुम्हारे ." उनके जाने के बाद खीझ उतारने ( युवती के पति को बददुआएं इस अंदाज में दी-
                           समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता 
                           ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता 
                          मेरी चाहत को तू अपना बना लेना मगर 
                           जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता 
" अब समझदार हो चुकी है युवा पीढ़ी."नौजवानों से रिएक्शन लेने जब दद्दू ने लड़के-लड़कियों से कहा ,"प्रेम हिंदुस्तान में ऐसा विषय है जिसमें केवल थ्योरी  की क्लासेस  चलती है  " इसपर दबी जुबान से खिल खिलाह्टें और इशारेबाजियाँ जब हुईं ,मामला सा था कि वे क्या कहना चाहते हैं .
             "सर जी!आज के नौजवान युवक-युवतियां सोच -समझकर अपने जीवन साथी का चुनाव करते हैं"-                                                         पहला युवक.
"हाँ सर!पैरेंट्स को भी चाहिए की हम पर भरोसा कर कम से कम हमारी बात तो सुनें "-पहली युवती.
" करियर मेकिंग और फियान्सी को अच्छी तरह समझने का कम हम लोग कोर्टशिप के दौरान ही कर लेते हैं सर जी!"-दूसरा युवक.
"सर जी! इसीलिए तो प्रेम विवाह भी अछे माता-पिता परखने के बाद अरेंज्ड में बदल देते हैंकसौटी पर कसना तो हर मामले में पड़ता है."-दूसरी युवती.
                         खोई-खोई सी आँखों वाले उस युवक को देखकर ही लगा था की वह शायराना तबीयत का नौजवान है .दद्दू.प्रोफ़ेसर और मैं ,हम तीनों की अनुभवी आँखें यह जानती थीं की खोया-खोया सा रहना भी प्यार में होने की निशानी है ( बशर्ते कोई दीगर मनोरोग से जुदा  मसला न हो ).इसी बीच उसने एक पल आसमान की और देखा फिर अपने साथियों की और मुखातिब होकर कहने लगा," सर जी!प्यार  तो मीठा एहसास है .. जूनून और पैशन भी " क्योंकि-
                         भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा 
                          हमारे  दिल में कोई ख्वाब पल बैठ तो हंगामा 
                        अभी तक डूब कर सुनते थे तब किस्सा मुहब्बत का 
                       मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा 
वाह-वाह और सीटियों के स्वर यदि नौजवानों के बीच से नहीं आते तो आश्चर्य जरूर होता .प्यार भरी मस्ती में नौजवान टोली हमसे बिदा लेती है .लेकिन हमारी  नजर में इश्क जिस्मानी नहीं रूहानी करिश्मा है इबादत...खुदाई...आतिश-ए-ग़ालिब .राधा ,मीरा और जूलियट का समर्पण है जो रब के लिए सूफीज्म भी बन जाता है .मुसाफिर के साथ रहने वाले क़दमों का निशान हैं प्यार .इस प्यार को सेक्स की आदिम अवधारणा से अलहदा करने पर ही उसकी पवित्र सुगंध का एहसास होता है.उसी प्यार का जो जात,उम्र,मजहब ,जन्म के बंधन से परे गहराइयों तक समां जाता है सिर्फ दिल की धडकन में .हालाँकि सीरियस लफ्जों की बजाये अपनी जींस -टॉप... कार्गो टी शर्ट... फंकी-शंकी लुक वाले " तुझमें रब दीखता है" गुनगुनाने वाले मेरे प्यारे नौजवान दोस्तों को यह बात जल्द समझ में आती है की प्यार तो बस हर हाल में निभाना ही है क्योंकि-
                           इश्क वाले आँखों की बात समझ लेते हैं
                            सपनों में मिल जाएँ तो मुलाकात समझ लेते हैं 
                           रोता तो आसमान ही है प्यार के लिए
                           पर नादाँ लोग उसे भी बरसात समझ लेते हैं 
                                                                                                                 प्यार सहित...
                                                                                                                         किशोर दिवसे 
                         

                        

                             

1 टिप्पणी:

  1. श्री राहुल सिंह, संस्कृति विभाग की टिप्पणी पर आपकी प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया।
    किशोर जी मीडिया को इतना सॉफ्ट टारगेट क्यों मानते हैं, बिना अखबार पढ़े ही आपने कह दिया कि किसी अखबार ने कोई खबर ऐसी नहीं लगाई। आप एक बार दैनिक भास्कर का रायपुर सिटी भास्कर पढि़ए। इसमें सारी बातें अष्टकोणिय भवन के बारे में पहले ही दी जा चुकी हैं। इस पत्र को अन्यथा न लीजिए, मेरी गुजारिश है कि अखबारों में सूचनाओं से आगे की पत्रकारिया हो रही है। इसे आमतौर पर विचार पत्रकारिता का शब्द दिया जा सकता है। इसलिए अखबारों से ज्यादा अपेक्षा तो नहीं लेकिन निराश नहीं हुआ जा सकता।
    सादर मुआफी के साथ
    वरुण के सखाजी, रायपुर. 9009986179

    जवाब देंहटाएं