जहाँ कानून बेआवाज होगा ,वहीँ से जुर्म का आगाज होगा
अल्सुब्बह दद्दू तफरीह कर लौटे और श्रीमती जी ने चाय का प्याला उनकी टेबल पर धर दिया.शहर से छपने वाले दो-तीन अखबारों के पन्ने पल्टाते पूरा चाट गए.खाली प्याला देखकर सोचने लगे ," अखबारों में जुर्म की ख़बरें इतनी ज्यादा क्यों हैं! क्या हो गया है इंसान को!क्या गाँव क्या शहर और महानगर हर तरफ जुर्म का बोलबाला !सारे मुल्क में बढ़ते जुर्म को देखकर कभी-कभी लगता है कानून है या नहीं और अगर है तब सख्ती से उनपर अमल क्यों नहीं हो रहा"?
रहेगा मुल्क में अम्नो सुकून तब बाकी
हरेक जुर्म पे कानून जब सजा देगा
खैर कानून अपना काम करेगा .लेकिन एक बात सच है कि गुनाहगारों ने अपने चेहरों पर कैसे-कैसे मुखौटे लगा लिए है.कहीं जज्बातों का ...रिश्तों का...आध्यात्मिकता का ... मिठलबराई का ...कहीं परायेपन और अपनों का अपनापन भी जुर्म की भेंट चढ़ जाता है.लगता है जिंदगी की किताब का ऐसा कोई सफा नहीं बचा है जिसपर ईमानदारी का केनवास गुनाह की कालिख से बदरंग न हुआ हो. वक्त बदलने का बहाना ढूंढ लिया है समाज ने पर हाशिये पर जाते नैतिक मूल्य आम इंसान के खोखले जमीर की चुगली कर देते है.
आप ही बताइए हर तरफ आगे मुजरिम ही नजर आने लगे तब कौन किसकी गवाही देगा?
लेकिन दद्दू यदि किसी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है तब क्या उसे सजा मिलनी चाहिए",मैंने पूछा." नहीं अगर कोई सच्चे दिल से माफ़ी मांग ले और गुनाह फिर न दोहराए तब सजा की क्या जरूरत" बशर्ते जुर्म गंभीर न हो तब उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता है-
अब उसको सजा दे के गुनाहगार न बनिए
मुजरिम के लिए जुर्म का इकरार बहुत है
अलग बात है जुर्म का इकरार करना .लेकिन देखा जा रहा है कि क्या सरकारी और क्या गैर सरकारी सभी जगह करप्शन आसमान छूने लगा है.न कानून का डर है न किसी पर कोई जवाबदेही फिक्स की गई है. न सरकार जवाबदेह है अपनी करतूतों के लिए... न व्यक्तिगत रूप से अधिकारी या नागरिक.संसद में करोड़ों रूपये बहस के दौरान( अक्सर हुए बगैर भी ) बर्बाद हो जाते है, नतीजा सिफर. हर किसी पर आर्थिक जवाबदेही तय होनी चाहिए.
कई बार अनजाने में किये जुर्म का एहसास भी सताता है यह दो-टूक सच है कि अपराध और गलती में निशित रूप से फर्क है और सजा कि मियाद भी तय होनी चाहिए खास तौर पर सामाजिक रिश्तों के परिप्रेक्ष्य में इसीलिए तो कानून में भी DETERRANT THEORY OF PUNISHMENT और REFORMATIVE THEORY के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई है लेकिन कराप्प्शन की बदबू तो समाज के हर क्षेत्र से आने लगे तब सक्रिय हस्तक्षेप पर सोचना वक्त की जरूरत बन ही जाती है .यह तो सच है पर कई बार अपराध बोध बेचैन कर देता है ,नींद उड़ जाती है और रातों को उठ-उठकर टहलने की नौबत आ जाती है . लेकिन यह सिर्फ उनके साथ होता है जिनका जमीर दिल के किसी कोने से उन्हें धिक्कारता है. इसी धिक्कार के ईलेक्ट्रोंस को गतिवान बनाना जरूरी है. और अपराधबोध की घबराहट भी कई बार ऐसी होती है की गुलिस्तान से खदेड़ दिए जाने के बाद जब कभी बागबान से नजरें मिलती हैं तब -
जुरअत से की बागबान से पूछ सकें हम
किस जुर्म में निकले गए गुलिस्तान से हम
बेहद तिलस्मी है जुर्म और गुनाहगारों की दुनिया.मासूम बच्चों से लेकर तीन-एजर्स और बूढ़े तक इसका शिकार हैं.आजकल हालत ये है कि इन्साफ का तराजू भी डोलने लगा है." मैं पूछता हूँ दद्दू कि आज के ज़माने में जिस तरह ईमानदारी से जीना मुश्किल है और बेईमानी से आसान ,वैसे ही फ़रिश्ता बनकर मरने का डर क्यूं सताने लगता है?" यह गलत सोच है दद्दू,दिल बहलाने को भले ही आप कह लें अच्छा हुआ मुजरिमों की तरह जीना सीख लिया ... फ़रिश्ता बनते तो कब के खर्च हो चुके होते.लेकिन जुर्म के विरुद्ध आवाज उठाना भी सीखना चाहिए. यह सच है कि,"चुप रहना जुर्म है जुर्म करना तो जुर्म है ही मगर जुर्म सहना भी उससे बड़ा जुर्म है."यूं होता है की कभी लम्हे खता करते है और सदियाँ इसकी सजा पति है इकबाल ने कहा है-
तारीख की नजरों ने वो दौर भी देखा है
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई
सदियाँ तो दूर ....मुहब्बत भरे दिल तो गाहे--ब-गाहे पूछ लिया करते है ," किसी को चाहते रहना कोई खता तो नहीं?अपने अजीज के बगैर तो जिन्दगी भी गुनाह लगती है.जुर्म सी लगने के बावजूद जिंदगी से न जाने क्यूं प्यार करने लगते हैं हम! बहरहाल ,बढ़ते जुर्म पर हर एक इंसान को समाज और सियासत पर लगाम लगानी चाहिए.महापुरुषों ने कहा है," घृणा अपराध से करो, अपराधी से नहीं" जुर्म और गुनाहगारों पर सख्त नियंत्रण करने सभी को सक्रीय रहना होगा जहाँ तक नौजवान दोस्तों की बात है की वे जुर्म की दुनिया से हमेशा दूर रहकर सफलता कई बुलंदियां हासिल करने की कोशिश करें.क्या जरूरत है प्यार को दुनिया से छिपाने की-
कुछ जुर्म नहीं इश्क जो दुनिया से छियायें
हमने तुम्हें चाह है हजारों में कहेंगे
किशोर दिवसे
मोबाइल -9827471743
11:38 pm
कानून और जुर्म, सिक्के के दो पहलू.
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