शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

वेलेंटाइन -1

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मै किस्से को हकीकत  में बदल बैठा तो हंगामा.... !
जींस -टॉप..कार्गो टी शर्ट...फंकी-शंकी लुक वाले  नौजवान छोकरों और बोल्ड ,ब्यूटीफुल और बिंदास लड़कियों से घिरा था मैं.भाई, कुछ भी बोलो मुझे तो आज की नई जनरेशन बेहद पसंद है ... बिलकुल मीठे-नमकीन बिस्कुट फिफ्टी-फिफ्टी या फिर खट्टी-मीठी इमली की तरह.आज के ज़माने में जब हाफ सेंचुरी के करीब या उसके प़र लोग जब नए रंग में रंगने लगे हैं तब जवानी को दिशाहीन ,उच्श्रीन्खल या  दीवानी कहने की फितरत एकदम बकवास है .यकीनी तौर पर समाज के आज या आज के समाज को महसूस करने के बाद बूढों का यह फिकरा ," धूप में हमने बाल सफ़ेद नहीं किए हैं"उन युवाओं की कड़ी चुनौती से जूझता हुआ लथपथ सा लगता है जो " जोश भरे होश "के साथ जिन्दगी जीता है .इसमें गंभीरता के साथ पूरी मस्ती -शस्ती भी होती है ... दिल से !
                           यूं ही सीरियस मुद्दों पर लिखते रहोगे या कभी हमारे साथ मस्ती भी... ! अपने डोले दिखाते हुए " माचो मैन" और एक जोड़ी शैतान शरीर कनखियों की शरारत ने मुझे यह एहसास दिला दिया कि मुहब्बत और करियर के साझा जज्बे को पुचकारती पीढ़ी का मीठा रिश्ता इस पल मुझसे क्या मांग रहा है.
                                  सच कहूं!दद्दू और प्रोफ़ेसर प्यारेलाल जब साथ हो जाते हैं तब किसी भी महफ़िल की रौनक क्या खूब जमती है.हुआ भी यूं...एहसासों का आकाश था... चर्चा के बहाने ही सही अल्फाजों  के परिंदे मुहब्बत की रेशमी डोर  लेकर उड़ने लगे ऊंचे ... और ऊंचे...
                              की कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है 
                               मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है 
यहाँ प्यासी धरती की बेचैनी और बरसने को आतुर बादल की बेकरारी किसकी है यह हर कोई समझ सकता है .लेकिन दद्दू के मन में एक और बात आती है , "मनोविज्ञान में मैंने पढ़ा है की दूरियां प्यार को और बढा देती हैं" " फिर भी दूरियों की मियाद भी तो तय होनी चाहिए ना!" मैंने टोका.उदास खोई सी आँखों वाला युवक गुनगुनाने लगा
                                 मैं तुझसे दूर कैसा हूँ,तू मुझसे दूर कैसी है
                                  ये तेरा दिल  समझता है या मेरा दिल समझता है
दो जोड़ी आँखें जब एक-दूसरे से बिना कुछ काहे सब कुछ कह रही थी तभी प्रोफ़ेसर प्यारेलाल ने कहा ,"प्यार में दिल और दिमाग का सही संतुलन जरूरी है मुहब्बत में  FALL IN LOVE" के बजाए   " RISE IN LOVE" होना चाहिए.खास तौर पर नई पीढ़ी इसे समझ गई ( मुझे लगता है अब अच्छी तरह समझ चुकी है) तब प्यार अँधा नहीं बल्कि तेज आँखों वाला और जिम्मेदार हो जाएगा."
                                  कि मुहब्बत एक एहसासों  की पावन कहानी है 
                                  कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
कबीर और मीरा से कम, हीर-राँझा,शीरी. -फरहाद,रोमियो- जूलियट से अधिक वाकिफ एक शोख " हॉट एंड स्वीट " कहने लगी ," सर जी! उनके प्यार को समाज नहीं समझ पाया.मेरी आँखों के आंसुओं को कौन समझेगा कि ये मोती हैं या पानी!"
                                यहाँ सब लोग कहते है कि मेरी आँखों में आंसू हैं 
                                जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है      
दद्दू अपनी जवानी का किस्सा बताते हैं," हुआ यूं कि मुहब्बत क़ी राह पर निकल पड़ी थी दो जोड़ी आँखें. तकदीर का फसाना
कहिए कि साथ छूटा और लड़की की शादी हो गई कहीं और.दो बरस बाद अपने बच्चे का परिचय उस युवती ने " देखो मामा आए " कहकर कराया .वापस लौटने के बाद(टूटे दिल वाले नौजवान ने ( उस युवती के पति के लिए) अपनी भड़ास कुछ इस अंदाज में निकाली -
समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता 
ये आंसू प्यार  का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को तू अपना बना लेना मगर 
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता 
" अब समझदार हो चुकी है युवा पीढ़ी" नौज्वाहों से रिएक्शन लेने जब दद्दू ने उनसे कहा, प्रेम हिंदुस्तान में ऐसा विषय है जिसमें केवल थ्योरी क़ी क्लासेस चलती हैं" इसपर दबी जुबान से खिलखिलाहटें और इशारेबाजियाँ जब हुईं मामला साफ़ था कि वे क्या कहना चाहते हैं.
" सर जी!आज के नौजवान युवक-युवतियां सोच समझकर अपने जीवन साथी का चुनाव करते हैं"- पहला युवक
  "हाँ सर! पेरेंट्स को भी चाहिए कि हम पर भरोसा कर कम से कम हमारी बात तो सुने"-पहली युवती
  " करियर मेकिंग और फियान्सी को अच्छी तरह समझना  हम  कोर्टशिप के दौरान ही कर लेते हैं सर जी!"-दूसरा युवक
" सर जी! इसलिए तो प्रेम विवाह भी अच्छे माता- पिता परखने के बाद अरेंज्ड में बदल देते हैं. कसौटी पर कसना तो हर मामले में पड़ता है "- दूसरी युवती
खोई -खोई सी आँखों वाले उस युवक को देखकर ही लगा था कि वह शायराना तबीयत का नौजवान है.दद्दू, प्रोफ़ेसर और मै, हम तीनों कि अनुभवी आँखें यह जानती थी कि खोया- खोया सा रहना भी प्यार में होने कि निशानी है ( बशर्ते कोई दीगर  मसला न हो.इसी बीच उसने एक पल आसमान की ओर देखा ,फिर अपने साथियों की ओर मुखातिब होकर कहने लगा- "सखी ! प्यार तो मीठा एहसास है ... जूनून और पैशन भी क्योंकि
                    भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा 
                    हमारे  दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा 
                    अभी तक ड़ूब कर सुनते थे तब किस्सा मुहब्बत का
                    मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा 
वाह-वाह .... और सीटियों के स्वर यदि नौजवानों के बीच से नहीं आते तब आश्चर्य होता .प्यार भरी मस्ती में नौजवान टोली हमसे विदा लेती है .लेकिन हमारी नजर में इश्क जिस्मानी नहीं रूहानी रिश्ता है ... इबादत... खुदाई...आतिश-ऍ-ग़ालिब.. राधा ,मीरा और जूलियट का समर्पण है जो रब के लिए सूफीज्म भी बन जाता है.मुसाफिर के साथ रहने वाले क़दमों का निशान है प्यार . पर टीनेजर प्लस की उम्र में तो जिस्म में मचलते है कई तूफ़ान ...और उसपर पहरेदारी  का अंकुश! डैम  इट यार ... चल हम दोनों कही लॉन्ग रन पर चलते है... लवर्स पाइंट ... गार्डन...मल्टीप्लेक्स...किसी रेस्तरां में....  बाइकिंग  करते हुए...मेसेजिंग.... फेसबुक... ओरकट... और भी कई नए शगल ढूंढ लिए हैं   इस जूनून ने!!इस प्यार को सेक्स की आदिम अवधारणा से अलहदा करने पर ही उसकी पवित्र सुगंध का एहसास होता है उसी प्यार का जो जात,उम्र,मजहब,जन्म के बंधन से परे गहराइयों तक समां जाता है सिर्फ दिल क़ी धड़कन में.लेकिन क्या करें कंट्रोल नहीं होता ... कैसे करें!!!!!!!!!!!!!!
                      हालाँकि सीरियस लफ्जों क़ी बजाए अपनी जींस-टॉप ... कार्गो टी-शर्ट ... फंकी-शंकी लुक वाले " तुझमें रब  दिखता है  यारां...: गुनगुनाने वाले मेरे प्यारे नौजवान दोस्तों को यह बात जल्द समझ में आती है क़ी प्यार तो बस हर हाल में निभाना है क्योंकि-
                     इश्क वाले आँखों क़ी बात समझ लेते हैं
                     सपनों में मुलाकात समझ लेते हैं
                   रोता तो आसमान ही है प्यार के लिए
                      पर नादाँ लोग उसे भी बरसात समझ लेते हैं
                                                                                                 एहसास  कीजिए प्यार का....
                                                                                                            किशोर दिवसे
                                                                                         
                   

                         

                                  
                                   


                               

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. ' ये न थी हमारी किस्मत.'


    दाल रोटी और पेंशन
    में ही लगे रहे और
    इन्ही के हो गए.

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  2. कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
    मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है

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