न हारा है इश्क ,न दुनिया थकी है
दीया जल रहा है ,हवा चल रही है
चरागों के बदले मकां जल रहे हैं
नया है जमाना ,तो नई रौशनी है
खुमार बाराबंक्वी के इस अलमस्त मौजूं शेर ने क्या समां बंधा है! वेलेंटाइन दिवस पर अखबारों में दिलों को कभी गुदगुदाते तो क्स्भी गुस्सा दिलाते प्रेम-संदेशों की लाइनें पढ़कर भरोसा हो गया- नया है जमाना तो नई रौशनी है.नई रौशनी में आइये इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हैं.
शुरुआत होती है रोमन सल्तनत से-जूनो के फेब्रुआता ,प्रेमोत्तेजना की देवी के सम्मान में रति या श्रृंगार उत्सव " ल्यूपर्केमिया " मनाया जाता था.कालांतर में इसका रूपान्तर हुआ और " सेक्स का स्थान सात्विक प्रेम ने ले लिया.चर्च ने अगुवा के रूप में एक ब्रह्मचारी संत वेलेंटाइन का चयन किया .वेलेंटाइन के बारे में पहली कथा-सम्राट क्लाडियस -२ का हुक्मनामा ,शादियाँ और विवाह बंधन समाप्त करने का , वेलेंटाइन ने ठुकरा दिया.नतीजतन वेलेंटाइन को मृत्युदंड दिया गया.सजा-ऍ -मौत से पहले जेल में रहने के दौरान संत ने जेलर की बेटी की आँखें ठीक कर दी .फांसी से एक दिन पहले संत ने उस युवती को पत्र लिखा जो उनके प्रेम में ड़ूब गईं थी.यह सन्देश था,"फ्रॉम योर वेलेंटाइन".
वेलेंटाइन डे का पहला लिखित सन्देश ड्यूक ऑफ़ ओर्लिएंस ने सन 1415 में लिखा था.कैद के दौरान ये प्रेम सन्देश उसने अपनी पत्नी के लिए लिखे थे.18 वी सदी के बाद प्रिंटेड कार्ड बाजार में आए.आज वेलेंटाइन डे के न्यू मिलेनियम रूप में हम देख रहे है ... गुलाब की कलियाँ...ई-मेल...वीडियो टेप..रोमांटिक सन्देश भरे skrech कार्ड्स.रोमन मिथोलोजी में " क्यूपिड " प्रेम की देवी वीनस का पुत्र है .ग्रीक मिथालोजी में ईरोस ,प्रेम का देवता ,भारतीय शास्त्रों में समकक्ष प्रतीक कामदेव.
हायतौबा मचा दी है वेलेंटाइन डे के नाम से.बुरी तरह छटपटा रहे हैं वे लोग जो " प्रेम को सेक्स के लिहाफ से बाहर निकालकर देखना ही नही चाहते.प्रेम आराधना है, पूजा है,इबादत है,फलसफा है,जीवन दर्शन का पवित्र दृष्टिकोण है .इसे नर-मादा के बीच देह भाषा तक सीमित रखना गलत होगा.गंदी नजर तो खुद को संस्कृति का मसीहा समझने वाले स्वयंभू मठाधीशों की है." POLITICS OF INTERPRETATIONS " के चलते इसे जबरन हौवा बना दिया गया है.
दो विपरीत धाराएं समाज में बह रही है.ये शाश्वत सत्य है और रहेगा भी.वेलेंटाइन डे यानी प्रेम पर्व के पीछे मुझे दो मानसिकताएं साफ दिखाई देती हैं.पहली-ग्लोबलाइजेशन का असर.. परम्परावादी सोच की ऊबाऊ मानसिकता से नई जनरेशन का विद्रोह.दूसरा- मार्केट फोर्सेस द्वारा प्रेम की भावना का किया जा रहा आर्थिक दोहन... और आस्था और विश्वास की महंगे दामों में बरास्ता बाज़ार खरीदी और बिक्री.नौजवान दोस्तों के लिए कुछ बरस पहले वेलेंटाइन डे पर " मैंने प्यार किया "जैसी फिल्म का रिलीज होना भी इसके एक बाजारवादी पहलू को इंगित करता है.रोजगार और व्यवसाय वैसे बुरा नहीं हो सकता.
भर्तृहरि ने कहा है.,'प्रेम देवताओं का गुण है". गाँधी ने कहा है," प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू है.". कबीर का फलसफा है प्रेम प्रेम सब कोई काहे ,प्रेम न चीन्हे कोय
आठ पहर भी न रहे प्रेम न हावे सोय
" प्रेम स्वर्ग का रास्ता है " तोल्स्तोय ने कहा ,फिर उस स्वर्ग की सीधी को सायास कमजोर क्यों बनाया जाना चाहिए.तरस आता है उनकी काम अकली पर जो कहते हैं वेलेंटाइन डे मनाने से हमारी संस्कृति को खतरा है.फूहड़ता, अशिष्टता, अश्लीलता और भोंडेपन का विरोध जायज है पर प्रेम की भावना प्रकट करना जलालत कभी नहीं हो सकता.हमें नजरिया सुधारना चाहिए.वेलेंटाइन डे मनाने से हम वेस्टर्न कल्चर में ढल जाएँगे यह सोचना मेरी नजर में बेवकूफी है.आप ही बताइये,एक ओर वेलेंटाइन डे का विरोध ... कहने को हमारी संस्कृति इसके खिलाफ है, स्वयंभू मठाधीश ऐसा प्रलाप करते हैं .सब जानते है कि " काम सूत्र " सिर्फ भारतीय संस्कृति की देन है.खजुराहो और कोणार्क .. अजंता के मिथुन शिल्प से क्या हमारी संस्कृति तब या अब खतरे में पड़ी?हाँ.. प्रेम प्रदर्शन के दौरान मर्यादाओं के पालन पर सोचा जा सकता है .LOVE THY NEIGHBOURS " का फलसफा भी अगर उत्सव में तब्दील हो जाए तो बुरा क्या है?वैसे जिन्दगी के रंग में प्रेम का संग हो तथा आधुनिकता और प्राचीनता का मिश्रण हो जाए तो इसका गुलाबीपन कुछ और सुर्ख हो जाएगा.बाजारवाद के इस दौर में " प्रेम की निर्मलता को बचे रखने की जद्दो जहद के बीच वेलेंटाइन कार्ड लेने-देने वाले मेरे सभी नौजवान दोस्तों के लिए यह शेर पेश-ऍ नजर है-
कुदरत के करिश्मों में अगर रात न होती
ख्वाबों में भी मुलाकात न होती
ये दिल हर ख़ुशी गम की वजह है यारों
दिल ही न हो तो तो कोई बात न होती प्यार के नाम एक पैगाम...
किशोर दिवसे
2:41 am
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