शनिवार, 5 मई 2018

भींच लो....... गोद लिए किसी बच्चे को

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भींच लो.......  गोद लिए किसी बच्चे को                  


दोस्तों .... , अरसे बाद ...बरक्स स्वरचित कविता , आपके सामने बज़रिये अपने ब्लॉक आपसे मुखातिब हूँ।  दरअसल यह मसला है तो बेहद पुराना लेकिन ज़िन्दगी की अनेक हकीकतों को उजागर करने वाला।  ऐसे यथार्थ तो संत्रास और त्रासदी तक महिला और पुरुष दोनों को ही धकेलते हैं। यही नहीं परखच्चे उड़ा देते हैं दिमाग के। फिल्मों ही नहीं , हक़ीक़त का नीम सच अक्स बनकर ख़ौफ़ज़दा भी करते हैं  ज़िन्दगी के दरम्यान और ज़िन्दगी के बाद भी !। ज़िन्दगी की हरेक डाइकोटॉमी की मानिंद प्रगतिशील सोच का एक कुनबा इस मसले को अपनाकर खुशहाल ज़िन्दगी जी रहा है। विडंबना यह है कि पढ़े- लिखे लोगों का एक झुण्ड कुंठित सोच से लथपथ अपनी ज़िन्दगी को सड़ांध के दलदल से बाहर लाना ही नहीं चाहता , बना लेता है अपने गढे हुए बेहूदा किस्म के बहाने  .! ऑर्थोडॉक्स  या परम्परावादियों की बात करें तो उलटे धरे घड़ों के  महाविशाल परिसर में  समझदारी सीख रहे कुछ उलटे घड़े सियासी आँधियों से सायास सहमे नज़र आते हैं, खुद सुधरना नहीं चाहते यह बात निश्चित रूप से उनके बायस का अंग  है। । दूसरी तरफ सीधे धरे और प्रगतिशील लोग भी मंथर रफ़्तार के चलते  अपनी अंतर्मुखता में  आत्ममग्न हैं....जिसे दौड़ना चाहिए।  समाज में सियासत की मलाई को ताकते धर्मगुरुओं से ज्यादा उम्मीद बानज़ीर  बेकार है , और मुआ समाज ....खुद के सामने सदियों से रखे चमचमाते आईने से मुंह छिपाकर फ़क़त मीडिया को  ही हर दुविधा का  हल निकलने वाला मसीहा बनाने के वाहियातपन  से बाज़ नहीं आ रहा है।  रहा सवाल मीडिया का ... परम्परागत मीडिया के विरुद्ध वैचारिक  समुद्र मंथन से जना  सोशल मीडिया। ... बेलगाम घोड़ा भी अब आंशिक नकेलजनित   बदहवासी में भटक कर आंधी की रफ़्तार से हवा में बातें  कर रहा है। बेशक कुछ तो अच्छा भी हो रहा है। ... गतिशीलता से होना भी चाहिए  और इसी कुछ अच्छा होने के बतर्ज़ मैं खुद समाज से एक जीवंत मसले को कविता की शक्ल में आपके सामने ला रहा हूँ।
अच्छा  या बुरा आप यानी मेरे अपनों के ही  हवाले।पढ़कर सोचिये और बताइयेगा जरूर। .....खुशहाल और लिखते , पढ़ते भी रहिये ....   आपका , किशोर दिवसे  मोबाइल 098274 71743 , Mail Id- kishorediwase0@gmail.com 




भींच लो गोद लिए किसी बच्चे को
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जब युवा मानव देह के भीतर
सक्रिय होते हैं दो हार्मोन
टेस्टोस्टिरोन हर पुरुष में
और स्त्रियों में ऑस्ट्रोजेन
तब उभरने लगती है जिस्म में
द्वितीय यौन लक्षण श्रृंखला
और गूंजने लगती है कानों में
इबारत- बेटी सयानी हो गई
जवान हो गया बेटा,और....
अंडाणु, शुक्राणु का विश्व भी!
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संकेतक बन जाते हैं मेडिकल शॉप
और फुसफुसाहट भरे अनेक स्वर
कहीं पर बोल्ड और ब्यूटीफुल भी-
सैनिटरी नैपकिन दीजिये प्लीज!
ड्यूरेक्स, कोहिनूर, माला डी...
और न जाने कितने ब्रांड्स भी
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निरंतर घूमते हैं जैविक कालचक्र
मानव देह के भीतर और बाहर भी
लाउड हो जाता है यंगिस्तान
सेक्सी, शोख़, अल्हड ,किलर
यौवन की आन, बान और शान
फिर गूंजने लगते हैं शहनाई के स्वर
बैंड ,बाजा बारात के साथ ही
रिसेप्शन की आपाधापियां भी
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जिंदगी में दरमियान इसी
नज़र आते हैं सीन अनेक
शादी किसी मंदिर में हो या
वेडिंग हॉल में बड़ी धूमधाम
या गन्धर्व विवाह , भागकर
घर से दूर किसी शहर में
मैरिज रजिस्ट्रार के सामने
अंतिम दो अक्षर  होते हैं -शादी
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दूल्हे मियां! वाह क्या बात है!
आज तो... बिल्ली मारने की रात है
दोस्त करते हैं चुहलबाज़ी
चल.... जल्दी अंदर जा न...
भीतर धकियाती हैं सहेलियां
बाज़ नहीं आती छेड़ने से
स्वीटहार्ट...गो इनसाइड फ़ास्ट
बेसब्र हो रहे हैं न प्यारे जीज्जजू
फिर चाहे कमरा हो घर का
या कहीं का कोई होटल सितारा
किवाड़ हो जाते हैं फ़ौरन बंद
होटल हो ग़र, तो लगती है तख्ती
हनीमून कपल-प्लीज़ डोंट डिस्टर्ब
और घर का कमरा हो तब...
घराती ,बाराती हो जाते हैं                   
मस्ती और गप्पों में बिज़ी
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याद आती हैं बदमाशियां पुरानी
चादर के नीचे गुपचुप बिछते थे
पापड ...इंतज़ार.. चर्रम चर्रम का
बनते थे कई छेड़ने वाले सवाल
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बीतती है रात, होती है सुबह
फैला सिन्दूर , अस्तव्यस्त केश
दरवाजे पर सहेलियों की दस्तक
और , पूछती हैं शैतान आँखें
क्यूँ! नींद नही हुई सारी रात
नेपथ्य में गूंजता है एक अंतरा
रात भर मियां सोने न दे....
इंजेक्शन लगाए घड़ी घड़ी
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कैलेंडर में बदलती हैं तारीखें
दिन ,महीने साल गुजरते जाएँ
बीतने लगते हैं एक-एक कर
अरे! कब होओगे दो से तीन?
पीछा करने लगते हैं प्रश्न
बहू! कब मैं देखूँगी मुंह नन्हे का?
तभी मर सकूंगी चैन से मैं
कहती है बुढाती है बीमार सास
( यानी लड़के की मां )
******
आदतन घूमता है कालचक्र
चलो ना! इशू ले लेते हैं..
कुछ तो करना ही पड़ेगा न!
घिरने लगते हैं स्याह बादल
सरकते बरस,बढ़ता तनाव
कही बूढ़ों की उठती त्योरियां
और कहीं पेशानी पर बल
पति- पत्नी के बीच गहराती
बरक्स सपने , सवालों की खाई
मूक , वाचाल तो कभी धमन भट्टी
दूरियां....समझाइश, आंसू का समंदर
रूठने और मनाने का सिलसिला
चलता है पाखण्ड और पैथियों का
अनवरत संग्राम और यलगार
दिल और दिमाग की भी जंग
जारी रहती है तब अविराम
******
ठहरो! सोचो! विज्ञान का है युग
छोड दो , टोना टोटका और टैंट्रम
गुंजाने के लिए घर में किलकारियां
अपनाओ चिकित्सा आधुनिक
प्रकृति प्रदत्त तरीकों से अगर
नहीं बन सकते हो माता -पिता
क्यों नहीं गूंजते मन में आपके
धाय माँ,सरोगेसी, आईवीएफ,
शब्द और तकनीक आधुनिकता की?
अपनाओ विज्ञान सम्मत विचार
तभी गूंजेगा नव शिशु कलरव
जय बोलो विज्ञान की , जय बोलो
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अरे! गोद क्यों नहीं लेते बच्चे को?
या फिर अनाथ , बेसहारा और
उसे जो तरसता है माँ के आंचल
और पिता के बरगद साये को
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वो बच्चा तो नहीं है मेरा खून
उपजा नहीं मेरे वीर्य कणों से
बच्चे में नहीं है मेरा डीएनए
चुप रहो...शट अप... ख़ामोश
अब फ़ौरन आपको बंद करनी होगी
ऐसी फ़िजूल और बेहूदा बकवास
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दोस्तों! आँसुओं में नहीं है कोई फ़र्क़
मुस्कान में नहीं है कोई अंतर
धड़कता है उस लावारिस का दिल
कोखजनी, स्वसंतति की मानिंद
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कभी लेबल नहीं चस्पा होता किसी
माथे पर बेसहारा बच्चे के
उसे तो बस चाहिए आपके
होठों का चुम्बन और दुलार
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दोस्तों और मेरी प्यारी सखियों
उम्र, जाति, धर्म की सरहदों से परे
समाज में जगा दो अब यह अलख
अभी इसी वक्त खोल दो अपने
मन के सारे रोशनदान और झरोखे
भींच लो किसी गोद लिए बच्चे को
*****

फिर देखना बहने लगेंगी आपकी
छातियों से अदृश्य दुग्ध धाराएं
हर्षासुओं की पावन निर्झरिणी
आपके चिर अतृप्त सीने से
और स्पंदित होंगे तीन ह्रदय
जीवन के इस जलतरंग पर
गोद में बच्चा , बच्चे को गोद
साध लेगी , अभीष्ट की अंतिम धुन
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