बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

....और मैं ही बन गया दीप पर्व का दीप

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....और मैं ही बन गया दीप पर्व का दीप 
  


नारायण... नारायण...
नारायण.... नारायण....
चौंककर नारद जी ने देखा और उनसे रहा न गया.उनहोंने पल भर काबू रहने के बाद पूछ ही लिया " यह क्या त्राटक सीख रहे हो जो जलते दीये कि लौ को एकाग्र होकर घूरे जा रहे हो! किसी के आने का आभास भी नहीं?"
"नहीं देवर्षि ....दीये को जलता हुआ देखकर यों ही मन में विचार आया कि क्या हम भी इस दीये कि तरह नहीं हैं!ऊपर चुंधियाती रौशनी से जगमगाता और तले घुप्प अँधेरा.कथनी और करनी में कितना फर्क हो गया है आज -मन का कल्मष धूर्तता की चाशनी में लिपटा  मायाजाल बुनने में कितना सक्षम है!महानगर की अट्टालिकाओं के नीचे झुग्गियों का अभिशप्त जीवन ,अमीरी के विष दंतों में पिसते गरीब,बाजारवाद की सूली पर लटकते नैतिक मूल्यों के परखच्चे ," वर्तमान "के चरम भौतिकतावादी दर्शन पर क्रूरतम घात - प्रतिघात करती अतीत और मध्ययुग की सड़ी - गली व्यवस्था .... दीये की   रोशनी को देखकर में फिर सोचने लगता हूँ- उजाले के अट्टहास और अँधेरे के अवसाद के बीच की खाई कभी पटेगी या नहीं?
                               आइये मन में दीप जलाएं ,कर्तृत्व के प्रति आस्था का
रौशनी भी है, अँधेरा भी... सवाल है कि आप किसे देख रहे हैं? जगमगाहट या स्याह! अमीरी-गरीबी ,वर्ण व्यवस्था के उबाऊ मकडजाल पर जबरिया पन्ने रंगना मूर्खता है.कर्तृत्व ही प्रथम व् अंतिम सत्य है.- लाओ अपने मन का दीया,उडेलो  संकल्प का तेल और प्रज्ज्वलित करो लक्ष्य की बाती - उजियारी राह आपकी प्रतीक्षा कर रही है.पर जरा ठहरो -
                                    दर से निकले तो हो,सोचा भी किधर जाओगे?
                                      हर तरफ तेज हवाएं हैं बिखर जाओगे
मगर  घबराइए शायर निदा फाजली की इस धमकी से! उनहोंने ताकीद की है राह पर निकलने से पहले सोचने की.लक्ष्य का दीया अंतस में जलता रहेगा तब आपके साथ होगा स्वविवेक और स्व कर्तृत्व ; पाखंड वाद  तथा अतिवादिता की पिशाच्लीला से आप अछूते ही रहेंगे.
                                      नारायण... नारायण... नारायण... नारायण...
वीणा  की झंकार से विचार प्रवाह खंडित हुआ." देखो  देखो... शेर और बकरी- देवर्षी ने मुझे टोका. दीये के अंजोर में एक दृश्य स्फटिक की मानिंद उभरता हेई ,सिर्फ मेरे ही नहीं अमूमन हर किसी के सामने- " शेर झपट्टा मरकर बकरी को उदरस्थ कर गया .यह शेर पर निर्भर करता है वह किस तरह अपना पेट भरे.जीने का हक़ बकरी को भी है, उसे इतनी चालाकी बरतनी होगी की शेर के आक्रमण से बच सके.
जंगल का कानून,मेंडेल का नियम -"स्ट्रगल फार एग्जिस्टेंस ,सर्वाइवल आफ द  फिटेस्ट " और अमीबा से लेकर होमो सेपियंस तक सारा विकासवाद विज्ञान की पुस्तकों के जरिये पल भर में हमारे मस्तिष्क में तरंगित होता है.अचानक दीये की लौ कांपकर फिर स्थिर हो जाती है-इस बार दृश्य बदलता है.आलोक में इस बार मै खुद को पाता  हूँ.-मेरे दोनों हाथों में मुखौटा  है, एक हाथ में शेर का और दूसरे हाथ में बकरी का.जैसे-जैसे घडी कि सूइयां आगे बढती हैं कभी शेर तो कभी बकरी का मुखौटा  मेरे चेहरे पर चिपकने लगता है.जरा देखिये... आपका चेहरा पहचानकर भी झूठ मत बोलना!
मैं  खुद दिया बन गया हूँ.माथे पर उभरे स्वेद बिन्दुओं की क़तार  देखकर नारद जी मुस्कुराने लग जाते हैं-" वह देखो ल कलमकार!... दीये के आलोक पटल पर सिर्फ तुम ही नहीं सारा समाज ही एक मिनिएचर के रूप में दिखाई दे रहा है." चारों ओर मुखौटों क़ी दुकानों में चल रही छीना-झपटी से कोहराम मचा हुआ है.
        नारायण... नारायण... नारायण... नारायण...
वीणा  के तंतुओं के झंकृत होते ही देवर्षि अचानक अंतर्धान हो जाते हैं.चौंकता हूँ मैं फिर कुछ सोचकर उस दीये क़ी अग्निशिखा पर केन्द्रित हो जाता हूँ- मोतीचूर का लड्डू है यह समाज ... एक एक दाना यानि " व्यक्ति " हुआ समाज का घटक .मानवता के वैश्विक दृष्टिकोण पर सोचना ही चाहिए .फ़िलहाल अगर भारत के सन्दर्भ में ही सोचें जातीय ही नहीं भारत में बसा मानव समाज इस दीये क़ी लौ में झांककर देखें क्या ऐसे मूल्यों व् राष्ट्रिय चरित्र का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है ?काश इस दीये क़ी लौ हमारे ठन्डे खून में ऊबाल  लाये और जगती आँखों से भी भारत का हर बन्दा पूरी शिद्दत के साथ दिवा स्वप्न साकार करने क़ी दिशा में कुछ इस तरह से सिंह गर्जना कर
सके-         देखा है मैंने जागती आँखों से एक ख्वाब ,वतन हो अपना सारे जहाँ का आफ़ताब
दीये क़ी रौशनी में भारत को विश्व का आफ़ताब क़ी मानिंद देखने के मेरे "विचार-त्राटक "पर अचानक जोरों का ब्रेक लग गया जब देवर्षि बदहवासी क़ी हालत में मेरे समक्ष प्रकट हुए 
         नारायण... नारायण... नारायण... नारायण...
" मैं जान गया हूँ ... धरती का मानव समुदाय इतना जटिल और खुदगर्ज क्यों हो गया है... सब कुछ इन सियासतबाजों क़ी मक्कारी है जो अवाम का आत्म सम्मान जागने ही नहीं देती.इस दलदल में भी कुछ चेहरे बेहतर सोच क़ी शक्ल वाले " अच्छे चने"हैं लेकिन वे गंदगी से लथपथ सियासी भाड़ को फोड़ने में सक्षम नहीं.सारे सिस्टम ही इतने सड गए है कि आम आदमी के मन में राष्ट्रिय चरित्र का उजियारा क्या खाक लायेंगे जो बालूई बुनियाद कि वजह से खंड-खंड खंडित हो चुके हैं."अवाम को वे बिना रीढ़ का लिजलिजा मांसपिंड बनाये रखना चाहते हैं.
                      अचंभित मैं,देवर्षि के चेहरे में आर्कमिडीज़  के उन हाव-भाव को पढ़ रहा था जो सापेक्षता के सिद्धांत क़ी तह तक पहुंचकर दिखाई दिए थे. यूरेका... यूरेका... ... नहीं मै अपने आप में लौटा.... मुनि श्रेष्ठ कह रहे थे -"समाज क़ी अधोगति का एकमात्र हल सामाजिक चेतना ही है" यह अधोगति मुझसे देखी नहीं जाती.... कहकर देवर्षि अंतर्धान हो गए.
                            पर मुझे अच्छी तरह  ध्यान है अपने अंतस में प्रज्ज्वलित होते दीये का. आइये... दीप पर्व क़ी इस बेला में मेरे हाथों में रखे इस दीये को आप भी स्पर्श करें ताकि आपके अंतस का दीया भी दीप-दीप मिलकर दीप मालिका  बन जाए और सार्थक कर दे यह दीप पर्व....
             अपना ख्याल रखिये    
                                                           किशोर दिवसे 
                                                                            मोबाईल 9827471743
                                           

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

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ख़त्म कर  दो कचरा!
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जितना असह्य है कचरा 
भीतर घर के और पड़ा 
दीवार,अहातों के बाहर इर्द-गिर्द,
गलियों ,सड़कों ,नुक्कड़ ,चौराहों 
गाँव ,शहर सड़ांध फैलाता 
उससे अधिक पल-पल प्राण लेता है 
दिमाग के भीतर बजबजाते और 
फड़फड़ाते चमगीदडों जैसा कुंठित 
संकीर्ण सोच  का कचरा 
सो, ख़त्म कर दो तुरंत 
कचरा अपने दिमाग के  भीतर 
और बाहर का- इसी पल 
वरना भोग रही हैं संत्रास  पीढ़ियां 
इतनी सी  बात नहीं समझे आप!
नहीं है काम सरकार या नेता का 
सिर्फ तय कर ले हर इंसान 
नहीं रहेगा कचरा किसी और 
तभी खिलेगी मुस्कान चहूँ और!



बिलासपुर के टाइटस परिवार से जुड़े हैं अप्पाचेन , बापू के डांडी मार्च काफिले में शामिल 81 की मूर्तियों में एक उनकी भी। ....

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बिलासपुर के   टाइटस परिवार  से जुड़े हैं अप्पाचेन
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बापू के डांडी मार्च काफिले में शामिल
81 की मूर्तियों में एक उनकी भी। ....




बिलासपुर छत्तीसगढ़ का एक परिवार है जो ऐसी  शख्सियत से जुड़ा है जिनकी मूर्ति सैफ़ी विला , डांडी ,गुजरात  में स्थापित की जाएगी।  जी हाँ !ऐतिहासिक डांडी  शहर जहाँ से महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के अंतर्गत  " डांडी मार्च" निकाला  था।  शांतिनगर सिद्धि शिखर विस्तार  ,बिलासपुर में रहने वाला यह   टाइटस परिवार है। जिनकी  मूर्ति लग रही है वे टाइटस जॉर्ज  के  दादाजी व्  जार्ज टाइटस  के पिता  वेरथुंडियिल टाइटस हैं. 1980 में  थेवेरथुंडियिल टाइटस मृत्यु हुई। बापू के सहयोगी उन्हें टाइटस जी कहते थे।
                        टाइटस परिवार के  लोग थेवेरथुंडियिल टाइटस जी को अप्पाचेन ( मलयालम अर्थ -पिताजी ) कहते थे। अप्पाचेन  महात्मा गांधी के विश्वासपात्र डेयरी एक्सपर्ट रहे।  खास बात यह कि उन्होंने बापू से अपने रिश्ते का निजी स्वार्थ के लिए कभी लाभ नहीं उठाया। कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  अवार्ड भी नहीं लिया। न कोई चौक बना  न कोई सड़क।  जब तक बापू के साथ रहे आश्रम के लिए डेयरी का काम सम्हाला। अप्पाचेन की मृत्यु 1980 में हुई थी। डांडी यात्रा के  दौरान बापू  की यादों को अप्पाचेन ने अपनी डायरी में सहेजकर रखा है। .... उसी डायरी में दर्ज यादों की इबारतें। .....
                      12 मार्च 1930 बापू ने डांडी मार्च निकाला था। उसी यात्रा में मैं भी शामिल था।  सख्त निर्देश थे उनके -पूरा अनुशासन ,शांति रखना है ,अगर कोई कार्रवाई हुई तो विरोध नहीं होगा। जो नहीं कर सकता वह छोड़  कर जा सकता है. कुछ ने आश्रम छोड़ दिया था। डांडी मार्च पर 80 लोग गए। महिलाओं ने आश्रम सम्हाला।
                    कोलकाता की लिली बिस्किट कंपनी ने  बापू साथ में बिस्किट ले जाने का ऑफर दिया था जिसे उन्होंने विनम्रता से ठुकरा दिया। यात्रा की शुरुआत "वैष्णव जन तो तेने कहिये "भजन से हुई  थी। अप्पाचेन ने लिखा है 20 किलोमीटर चलने के बाद सभी विश्राम के लिए रुके।  अप्पाचेन  सूज गए थे। बापू  ने नमक के पानी में डुबोकर रखने को कहा। सुबह तक  पैर ठीक हो गए।
                               उनकी डायरी में लिखा है -_ क्या मुझे जीवन भर कुवारा रहना पड़ेगा?- अप्पाचेन ने बापू से पूछा उनका जवाब था,"नहीं ,साबरमती आश्रम में रहने तक।  आश्रम में कुछ लड़के लड़कियां छिपकर रोमांस किया करते थे  . बापू की पीठ के पीछे। प्रेम पत्र मिलने पर बापू को दुःख भी हुआ। उन्होंने कहा,"यह सब मेरे ही पाप का नतीजा है जो इस आश्रम में हो रहा है।
महात्मा गांधी एक बार केरल गए थे अप्पाचेन के घर।   उन्होंने दादाजी  से कहा की आपका बेटा (अप्पाचेन)आश्रम में पूरी तरह.सुरक्षित है।    
                         1930 में  जेल यात्रा से छूटने के बाद 1934  में   अप्पाचेन  केरल गए। 17 साल की अन्नम्मा ब्याह हुआ। रोमांटिक हनीमून की कल्पना उस वक्त फुर्र हो गयी जब अप्पाचेन और अन्नम्मा को आश्रम में -अलग -अलग पड़ा। अन्नम्मा से बापू ने कहा ,"बहू !तुम शौचालय साफ़ करोगी ,अन्नम्मा की घिग्घी बंध  गयी। बापू का  अनुशासन सख्त था। 1934 में बापू वर्धा में  डेयरी शुरू करना चाहते थे। ब्रिटिश सामंत की बेटी मेडिलिन स्लेड (बापू ने उसका   नाम रखा मीराबेन ) वहीं  पर थी।उनसे अप्पाचेन  की नहीं जमी  .बापू  ने रोका  लेकिन वे  सपत्नीक केरल चले गए। अप्पाचेन अक्सर कहते ,"अगर  ईसाइयों के स्वर्ग में गांधीजी के लिए स्थान नहीं तो मैं वहां भी नहीं जाना  चाहूँगा। वे गुलजारी लाल नंदा साथ  बैरक में भी रहे।
                  अब जाकर थेवेरथुंडियिल टाइटस यानि अप्पाचेन के  बापू से जुड़े सम्बन्ध को मान्यता मिली है। मूर्तिकार चौकी श्रीनिवास  ने युवा टाइटस जी की  मूर्ती बनायीं है। यह डांडी  सत्याग्रह स्मृति प्रोजेक्ट का  हिस्सा है  यहां गांधीजी सहित डांडी  मार्च करने वाले 81 लोगों की मूर्तियां लगेंगी।   प्रोजेक्ट में 31 भारतीय और 9 विदेशी मूर्तिकार हैं।  मूर्तियां सैफ विला ,(डांडी निकट) की  15 एकड़ की जमीन पर लगेंगी जहाँ बापू के संगवारी रुके थे।
 बिलासपुर ,छत्तीसगढ़ में रहने वाला टाइटस परिवार इस उपक्रम से प्रफुल्लित है।  टाइटस परिवार के एक सदस्य यानी टाइटस जार्ज के चाचा थॉमस टाइटस अभी भोपाल में रहते है। वे फ्री लांस पत्रकार भी हैं।   निश्चित रूप से टाइटस परिवार की  ख़ुशी अपने  शहर बिलासपुर की  ख़ुशी  का सबब तो होगा  ही  ।
(  अंग्रेजी में एक लेख रीडर्स डाइजेस्ट में भी छपा है )