यादें ; शायर और फ़िल्मी गीतकार असद भोपाली
ऐ मौज-ए-हवादिस तुझे मालूम नहीं क्या
हम अहल-ए-मोहब्बत हैं फ़ना हो नहीं सकते
*****************************************
बेहतरीन शायर और फिल्मी गीतकार असद भोपाली की आज पुण्यतिथि है। देखा न ,अहल ए मोहब्बत पर उनहोंने क्या सचबयानी की है ! अनेक रोमांटिक फ़िल्मी गीत आज भी चहेतों की जुबान पर मचलते हैं ... लोग गुनगुनाते हैं। असद भोपाली को शोहरत की बुलंदी इन्हें प्रसिद्धि बी आर चोपड़ा की फिल्म अफसाना के गीतों से मिली। असद ने अपने समय के सबसे प्रमुख संगीत निर्देशकों जैसे कि श्याम सुन्दर, हुस्नलाल-भगतराम, सी. रामचंद्र, खय्याम, धनी राम, मानस मुखर्जी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी और हेमंत मुखर्जी के साथ काम किया है।
फिल्मफेयर अवार्ड से उन्हें अनेक दफे नवाज़ा गया है। असद भोपाली उर्फ़ असादुल्लाह खान का जन्म 10 जुलाई 1921 को भोपाल, मध्य प्रदेश, में हुआ था। मृत्यु 9 जून 1990 को 68 बरस की उम्र में हुई। फ़िल्मी गीतों से उनकी दिल्लगी होने के बाद वे मुंबई में ही रहे। कमाल की शायरी के फनकार रहे असद भोपाली।
शायर असद भोपाली की असली पहचान एक गीतकार के तौर पर बनी। उन्होंने फ़िल्मों को कई सुपरहिट गीत दिए। जिनमें फ़िल्म मैंने प्यार किया के 'कबूतर जा-जा-जा' को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। इसके इतर उन्होंने कई ग़ज़लें भी लिखीं।
शायर असद भोपाली की राय में मुहब्बत करने वाले आशिक और माशूकों का सदका तो फ़क़त एक - दूजे के दर पर ही हो सकता है बक़लम असद भोपाली -
इक आप का दर है मिरी दुनिया-ए-अक़ीदत
ये सज्दे कहीं और अदा हो नहीं सकते
उनके पिता का नाम मुंशी अहमद खान था और असद उनकी पहली संतान थे। उनका जन्म नाम असादुल्लाह खान था। उन्होंने फारसी, अरबी, उर्दू और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी। असद अपनी शायरी के चलते धीरे धीरे असद भोपाली के नाम से मशहूर हो गये। 28 साल की उम्र में यह गीतकार बनने के लिए बंबई आ गये, लेकिन अपनी पहचान बनाने के लिए उन्हें पूरे जीवन संघर्ष करना पड़ा।उन्होंने पहले पहल 1949 की फिल्म "दुनिया" के लिए दो गीत लिखे, जिन्हें मोहम्मद रफी (रोना है तो चुपके चुपके रो) और सुरैया (अरमान लूटे दिल टूट गया) की आवाज में रिकॉर्ड किया गया था। इन्हे प्रसिद्धि इनके बी आर चोपडा की फिल्म अफसाना के गीतों से मिली।
साथी और मंज़िल का पता नामालूम हो तब भी वे यह भी इशारा करते हैं के -
न साथी है न मंज़िल का पता है
मोहब्बत रास्ता ही रास्ता है
असद ने अपने समय के सबसे प्रमुख संगीत निर्देशकों जैसे कि श्याम सुन्दर, हुस्नलाल-भगतराम, सी. रामचंद्र, खय्याम, धनी राम, मानस मुखर्जी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी और हेमंत मुखर्जी के साथ काम किया है। असद की दो पत्नियां और नौ बच्चे थे, जिनमें से गालिब असद फिल्म उद्योग का हिस्सा हैं।
जो सब कुछ जान कर भी अनजान होता है उसके लिए उनके अशआरों पर गौर फरमाइए -
वो सब कुछ जान कर अंजान क्यूँ हैं
सुना है दिल को दिल पहचानता है
1990 में असद को उनके द्वारा फिल्म मैंने प्यार किया के लिए लिखे गीत कबूतर जा जा जा के लिए प्रतिष्ठित फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया, हालांकि, तब तक वह पक्षाघात होने से अपाहिज हो गये थे।
असद भोपाली के लिखे कुछ प्यारे फ़िल्मी गीतों का जायजा लीजिए। गीत के बोल और फिल्मों के नाम बाजू में दर्ज़ किए गए हैं।
1 . दिल दीवाना बिन सजना के माने ना - मैंने प्यार किया
2 कबूतर जा जा जा - मैने प्यार किया
3 . हम तुम से जुदा हो के - एक सपेरा एक लुटेरा
दीगर ओल्ड इज़ गोल्ड गीतों की बात करें तो नीचे लिखे ये गाने पुरानी पीढ़ी के बेहद पसंदीदा हैं।
1 . दिल का सूना साज़ - एक नारी दो रूप
2 . ऐ मेरे दिल-ए-नादां तू ग़म से न घबराना - टॉवर हाउस
3 . दिल की बातें दिल ही जाने - रूप तेरा मस्ताना
4 . हसीन दिलरुबा करीब आ ज़रा - रूप तेरा मस्ताना
5 . अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो - हम सब उस्ताद हैं
कई पीढ़ियों के दिल जब नीचे लिखे गीतों के बोल गुनगुनाते हैं तब वे यक़ीनन झूमने लगते हैं।
1 . इना मीना डीका दाई डम नीका - आशा
2 . वो जब याद आये बहुत याद आये - पारसमणि
3 . हम कश्म-ए कशे गम से गुज़र क्यों नहीं जाते – फ्री लव
4 . प्यार बांटते चलो - हम सब उस्ताद हैं
5 . सुनो जाना सुनो जाना - हम सब उस्ताद हैं
6 . हंसता हुआ नूरानी चेहरा- पारसमणि
7. मैंने कहा था आना संडे को – उस्तादों के उस्ताद
8 . आप की इनायतें आप के करम - वंदना
उनके फ़िल्मी गीत , ग़ज़ल और शायरियों की बारिश दिल का ज़र्रा- ज़र्रा भिगो दिया करती हैं। ग़म और मुहब्बत के रिश्ते पर असद कहते हैं -
न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़गार मुझे
वो ख़ुद तड़प गए देखा जो बे-क़रार मुझे
ज़रा गौर कीजिए किस तरह शाम - ओ - सहर के अंदाज़ - ए - बयां अजीब-ओ - गरीब लगते हैं जब असद भोपाली कहते हैं -
अजब अंदाज़ के शाम-ओ-सहर हैं
कोई तस्वीर हो जैसे अधूरी
यूँ किस दिलकशीं से बनाया है उन्होंने पैरहन की खुशबुओं और दिल-ए - जानां से जुदाई का शिकवा जब असद के महकते अशआर अर्ज़ करते हैं -
जब अपने पैरहन से ख़ुशबू तुम्हारी आई
घबरा के भूल बैठे हम शिकवा-ए-जुदाई
आज असद भोपाली साहब हमारे बीच नहीं हैं। कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन उनका यह शेर आज रह- रहकर याद आ रहा है मुझे -
तुम दूर हो तो प्यार का मौसम न आएगा
अब के बरस बहार का मौसम न आएगा
स्वरचित @ किशोर दिवसे ,पुणे। मोबाइल - 98274 71743
2:13 am