सोमवार, 30 मई 2011

समंदर है जिन्दगी और प्यार अतलांत...

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समंदर है जिन्दगी और प्यार अतलांत...
ट्रेन में मुसाफिरी के दौरान कुछ कदम साथ चलने वाले हमसफर ऐसे भी मिलते है जो यादों में अमिट इबारत बनकर चस्पा हो जाते है हमेशा के लिए...!
           अमूमन रिजर्वेशन कम्पार्टमेंट  में यूं होता है कि ट्रेन के स्टेशन छोड़ने के कुछ मिनटों बाद साँसे व्यवस्थित होते ही बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता है .कूपे में सवारियां अपनी-अपनी पसंदीदा गतिविधियों में संलग्न हो चुकी है.सचमुच... शुक्रिया मेरे पास रखी उस मैगजीन का जो हम दोनों के बीच बातचीत का एक बहाना बन गई.
          जरा मेगजीन दिखायेंगे!उसने मुझसे पूछा और पत्रिका के उन हाथों में जाते ही हवा के एक झोंके ने जिस पन्ने को हमारे सामने ला दिया उस पर लिखा था-प्यार  और जिन्दगी .शायद इसी बीच वह पल बीत चुका  था जब बातचीत शुरू करने दो इंसानों को एक फ्रीक्वेंसी पर आने का इंतजार  होता है.
               मैं कंगन कामराज... साइकोलाजी में एम् फिल कर रही हूँ... पति साफ्टवेयर इंजिनियर हैं ... मायके जा रही हूँ. और मैं .. ( अपना परिचय उन्हें जो बताया वह आप जानते ही हैं) अपने इंट्रो के बाद जब कूपे में बैठे दीगर लोगों पर निगाह डालता हूँ तब लोगों के हेल्थ कांशस होने की बात सतह से काफी ऊंची उठी हुई दिखाई देती है.यूं भी हम पत्रकारों को लम्हों की सुरंग में धंसकर मुद्दे और नए ट्रेंड तलाशने का मेनिया हो जाता है.वैसे भी अगर खिड़की से सटी आमने -सामने की सीटों पर बैठे हों तब उन दोनों मुसाफिरों के बीच मौसम का टॉपिक सुनिश्चित होता है .विषय आहिस्ता से रेंगकर एक बार फिर प्यार और जिंदगी पर आकर केन्द्रित हो जाता है  तब  बतर्ज लेडीज फर्स्ट मैं ईमानदार श्रोता की भूमिका में आ जाता हूँ.
                  " मेरे पति साफ्टवेयर इंजीनियर है.मुझे प्यार है उनके निश्छल और मजबूत स्वभाव से.उनके चौड़े सीने पर सर रखना मुझमें निश्चिंतता की ऊष्मा भर देता है .शादी से पहले दो बरस की दोस्ती और शादी के बाद पांच बरस की जिन्दगी बिताने के बाद ऐसा लगता है की मैं रिश्ते से थकने लगी हूँ."
                    मेरी आँखों में एक सवालिया अक्स उभरता है लेकिन कंगन की बात अभी अधूरी है ." रिश्ते के मामले में में  भावुक हूँ.रोमांटिक पलों की तलाश मुझे वैसी ही होती है जैसा किसी नन्ही बच्ची को चाकलेट ही.लेकिन मेरे पति ठीक इसके विपरीत है.वे जिंदगी में रोमांटिसिज्म लाना ही नहीं चाहते .इसलिए मुझे गुस्सा आने लगता है.
                   " पर आप ऐसा क्यूं सोचती हैं?"-मेरे भीतर का अखबारनवीस जागता है.
 इसलिए एकदिन मैंने अविचल (अपने पति)से तलाक लेने की बात कह दी " आखिर क्यूं?-उसने हैरत से पूछा " मै ऊबाऊ जिंदगी से थक चुकी हूँ."- मेरा जवाब  था. मेरे पति सारी रात कुछ  सोचते रहे ,ऐसा  मुझे लगा.मेरी छटपटाहट और बढ़ गई ." ऑफ़ ओह!यह इंसान मुझे अपना दुःख भी नहीं बताता .इससे मैं क्या उम्मीद करूँ!
मैं सोचने लगी थी.आखिर मेरे पति अविचल ने मुझसे पूछा ," तुम्हारा मन बदलने के लिए मैं क्या कर सकता हूँ?" अविचल की आँखों में गहराई तक झांककर मैंने  कहा ," मैं तुमसे एक सीधा सवाल करूंगी अगर तुमने मुझे राजी कर लिया तब मैं तलाक के बारे मैं अपना फैसला बदल लूंगी.
                     कंगन ने सवाल किया ," किसी पहाड़ पर एक फूल है .हम दोनों जानते हैं कि उस फूल को तोड़ने से आपकी ( मेरे पति ) की मौत हो जाएगी .फिर भी क्या आप वह फूल लाकर देंगे?" अविचल का जवाब था ," इस सवाल का जवाब मै कल दूंगा." पति के इस उत्तर से कंगन का दिल बैठ गया.अगली सुबह जब कंगन उठी तब उसके पति कहीं जा चुके थे.चाय के प्याले के नीचे दबा हुआ एक रुक्का रखा हुआ था जिसपर ये पंक्तियाँ लिखी  हुई थी ," माई डियर!मै वह फूल नहीं ला सकता.!रुको... जरा मुझको  इसकी वजह बताने तो दो..."
                  कंगन के पति ने रुक्के में जो पहली लाइन लिखी थी उससे मैंने अपने कुछ साँसों को अपने भीतर ही खो दिया-
                      " कंगन ...जब तुम कम्प्यूटर पर होती हो उसके प्रोग्राम गड़बड़ाने पर स्क्रीन के सामने चिल्लाने लगती हो..." मुझे अपनी अंगुलियाँ बचानी हैं ताकि प्रोग्राम ठीक कर सकूं .
                   "  कंगन तुम्हें चाबियाँ भूलने की आदत है...". मुझे अपने पाव बचाने हैं ताकि दौड़कर तुम्हारे लिए घर आ सकूं.
                      "कंगन ,तुम्हें नए शहर अच्छे  लगते हैं पर रास्ता  भूल जाती हो "...मुझे अपनी आँखें बचानी होंगी ताकि तुम्हें रास्ता दिखा सकूं.
                     " कंगन घर के काम-काज से तुम्हारे हाथों में दर्द होता है " मुझे अपनी हथेलियाँ बचानी होंगी ताकि तुम्हें सहला सकूं.
                     " कंगन , दोहरी जिम्मेदारी से तुम्हे तनाव होता है " चुटकुले सुनकर तुम्हारी थकान दूर करने मुझे अपना मुहं सलामत रखना होगा.
     कंगन .. तुम हमेशा कम्प्यूटर की स्क्रीन के सामने रहती हो .बुढ़ापे में जब तुम्हारी आँखों की रौशनी धुंधली हो जाएगी ,तब तुम्हारे नाखून काटने ... बालों में हिना लगाने ... शाम को हाथों में हाथ लेकर तफरीह करने मुझे अपनी आँखें भी तो सम्हालनी होंगी .मैं ही तुम्हे बताऊँगा ... वे खूबसूरत पेड़...परिंदे  ... खिलखिलाते बच्चे  और फूलों के रंग जिनकी चमक तुम्हारे जवान चेहरे पर रहा करती थी . बस... इसलिए ... माई डियर...जब तक मुझे यह भरोसा नहीं हो जाता कि कोई मुझसे  भी अधिक  तुम्हें प्यार कर सकता है ... मै उस पहाड़ी के फूल को तुम्हारे लिए तोड़कर मरना नहीं चाहता...."
                            कंगन की आँखें भीग गयी थीं.-" मेरे आंसूं उस चिट्ठी पर गिरते ही अक्षर धुंधले हो गए थे." उसने कहा " आप जानते है उस खत की आखिरी लाइन में क्या लिखा था? मैं अब पत्रकार नहीं  कालम राइटर की भूमिका में था.कंगन बोलती गई.उसकी आखिरी लाइन में अविचल ने लिखा था ," कंगन ... शायद अब तुम मेरी चिट्ठी पूरी तरह पढ़ चुकी हो.अगर तुम मेरे जवाब से संतुष्ट हो तब जरा बाहर आकर  दरवाजा खोलो . देखो!मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद के समोसे और मिठाई लेकर आया हूँ."
                         मैं भागकर दरवाजा खोलने गई.देखा अविचल के चेहरे पर बेताबी झलक रही थी उसके हाथों में नाश्ते का पैकेट था .मुझे अब पूरा भरोसा है कि अविचल जैसा प्यार मुझे और कहीं नहीं मिल सकता .कंगन की मुस्कुराती आँखे इस विश्वास का साक्षी थीं कि " अब कोई जरूरत नहीं है पहाड़ी के उस फूल को तोडकर लाने की."
                   ट्रेन कब प्लेटफार्म पर आकर लगती है पता तब चलता है  जब ढेर सारा कोलाहल कानों से टकराता है.इन्हीं के भीतर एक आवाज  मुझे झकझोरती है ," कम ऑन जर्नलिस्ट!यह लीजिये आपकी मैगजीन .. नागपुर स्टेशन आ चुका है मीठी मुस्कान  के साथ जब हम विदा होते है तब पन्ने पर वही इबारत मेरे सामने एक बार फिर होती है - प्यार और जिन्दगी!
                 
                      

                              
            

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