शुक्रवार, 5 मई 2023

“ गलतियां -दर- गलतियां करने के बाद हर इंसान कर ही लेता है सचाई की खोज “

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6 मई  1856   वैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड का जन्मदिन

 “ गलतियां -दर- गलतियां करने के बाद हर इंसान

 कर ही लेता है सचाई की खोज “

0 मनोविज्ञान की पुस्तकों का महारथी 

0 आइंस्टीन के साथ मिलकर लिखी "व्हाई वार?"

0  डेढ़ सौ से अधिक स्वलिखित पुस्तकों का खज़ाना

·          "अव्यक्त भावनाएं  चिरंजीवी होती हैं ……वे ज़िंदा ही दफन हो जाती हैं। आश्चर्यजनक तरीके से जब ये अव्यक्त भावनाएं व्यक्त होती हैं तब उनके प्रदर्शन के तरीके और उन भावनाओं का चेहरा भी अत्यंत  विकराल होता है।“

·          "प्रेम के सामने जितने असहाय हम होते हैं उतने अधिक किसी और तरह के दुःख के सामने नहीं होते।

·         “गलतियां -दर - गलतियां करने के  बाद हर इंसान सचाई की खोज कर ही लेता है। “

                           सिग्मंड फ्रायड का सीधा सम्बन्ध मनोविज्ञान से है। हम सभी इंसानों का हर उम्र में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से साबका मनोविज्ञान के किसी न किसी सूत्र से पड़ता ही  है। अब ऊपर उल्लिखित तीन संकेत- सूत्रों को ही देखिए, अपने जीवन में हम सबने इन्हें हक़ीक़त में घटते हुए देखा भी होगा। यह विश्व के चर्चित  मनोविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड का ही विश्लेषण है। आस्ट्रियाई स्नायुविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड मनोविश्लेषण की प्रक्रिया के भी संस्थापक थे। यह रोगविषयक प्रविधि बढ़ती विकृतियों के निदान की विधि भी है। इसके अंतर्गत लोगों को सहायता की जाती है जब वे मानसिक तनाव से गुज़र रहे होते हैं। वे 6 मई 1856 को चेक गणराज्य के मोराविया में यहूदी ऊन कारोबारी के घर जन्मे थे।

                             मनोविज्ञान पर अपने शोध कार्यों के दरम्यान ही सिग्मंड फ्रायड ने कहा है कि अक्सर लोग बड़बोलेपन  के शेखचिल्ली अंदाज़ में कहते हैं,  "हमें आज़ादी चाहिए, सच यह है कि उन्हें आज़ादी चाहिए ही नहीं क्योंकि आज़ादी बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ लेकर आती है और कोई भी ज़िम्मेदारी अपने सर पर ओढ़ना ही नहीं चाहता क्योँकि हर इंसान ज़िम्मेदारियों से डरता है।" इसी तरह मानव सभ्यता के क्रमिक विकास पर भी फ्रायड का मनोविज्ञान भी रोचक दलीलें प्रस्तुत करता है। इसी के अंतर्गत फ्रायड ने कहा है, "जिस इंसान ने सबसे पहले पत्थर के बदले कोई बदतमीज़ी की, वह इंसान निश्चित रूप से समाज में सभ्यता की भावना का एक आदिकालीन संस्थापक ही होगा।

                             "आप बाहर से कुछ और .. अंदर से कुछ और...." 

किसी फिल्म के गीत की यह पंक्ति आपने ज़रूर सुनी होगी-"आप बाहर से कुछ और .. अंदर से कुछ और नज़र आते हैं। " मनोविज्ञान की भाषा में द्विध्रुवीयता (बाइपोलारिटी) यानी कथनी और करनी में अंतर की बात जीवन में अनुभव भी की होगी। इस मनोवैज्ञानिक मसले पर अनेक सीरियलों और फिल्मों के किरदार सीता और गीता, राम और श्याम  आदि  देखे होंगे। आर एल स्टीवेन्सन का लिखा उपन्यास   "डॉक्टर जैकिल  एन्ड मिस्टर हाइड" नाम का उपन्यास भी पढ़ा होगा। सिग्मंड फ्रायड ने अपने एक सिद्धांत के तहत प्रतिपादित किया है," कोई भी सामान्य व्यक्ति आम तौर पर बाहर अधिक तहज़ीबदार या श्रेष्ठ होता है। अगर अंदर की बात करे तो इंसान के भीतर अनेक बुराइयों के दैत्य छिपे होते हैं। " हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग.....तथा पेट में दांत होने सम्बन्धी मुहावरे भी निश्चित रूप से फ़ायद के मनोविज्ञान से जुड़े सूत्र की बुनावट होनी चाहिए।  फ्रायड का यह विश्वास था कि बचपन में हमारे कुछ हादसों का वयस्क जीवन पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है। ये हादसे भी हमारी वयस्क ज़िंदगी का आधार बन सकती है। अतीत में घटित घटनाओं का असर उस वक्त समाप्त कर दिया जा सकता है लेकिन वयस्क होने पर इनके दुष्प्रभाव  किसी भी रूप में दिखाई दे सकता है जिसके कारण तत्काल पहचान में नहीं आते।

                      सिग्मंड फ्रायड ने 1873 में विएना की स्कूल से माध्यमिक शिक्षा उत्तीर्ण कर विएना विश्वविद्यालय  मेडिकल स्कूल में दाखिला लिया। उन्होंने अपना ध्यान शरीर क्रिया विज्ञान और तंत्रिका विज्ञान पर केंद्रित किया। उन्हें 1881में चिकित्सा उपाधि  हासिल हुई। विएना के अस्पताल में  चार वर्ष तक  क्लिनिक सहायक का प्रशिक्षण  लेने के बाद 1885–86 में जीं मार्टिन चारकोट के तहत तंत्रिका विज्ञान का अध्ययन करते रहे। इंटरनेशनल साइको एनालिटिकल एसोसिएशन में भी वे अध्ययनरत रहे। उन्होंने दमन, प्रतिरक्षातंत्र ,तंत्रिका विज्ञान, मनोचिकित्सा मनोविश्लेषण का अध्ययन इंटरनेशनल साइकोथेरपी एसोसिएशन संस्थान में किया।

 

                          “इदम्, अहम् तथा  पराहम् - फ्रायड के 3 चर्चित सिद्धांत”

ये तीन चर्चित सिद्धांत हैं - पहला "ईड " यानी पहचान। फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धांत के मुताबिक़ "ईड "   सहज प्रवृत्ति है। यह प्रवृत्ति मस्तिष्क में स्थायी आदिम और सहज वृत्ति है। इसमें मानव की यौन भावनाएं, आक्रामक उद्वेग और छिपी  हुई यादें भी शामिल हैं। ईड़ या इदम् मनोविज्ञान के मुताबिक़ एक जन्मजात प्रकृति है। इसमें इंसान की वासनाएँ और दमित इच्छाएँ भी शामिल रहती  है। ईड़ तत्काल सुख व संतुष्टि पाना चाहता है। यह पूर्णतः अचेतन में कार्यरत रहता है। दूसरा सिद्धांत है - अति अहंकार यानी सुपर ईगो  (पराहम्) । यह नैतिकता से जुड़ा है। यह नैतिक विवेक की तरह परिचालित होता है। पराहम् सामाजिक मान्यताओं, संस्कारों आदर्शों से संबंधित होता है तथा मानवीय,सामाजिक और राष्ट्रीय हित में व्यक्ति को त्याग बलिदान हेतु तत्पर करता है। पराहम् पूर्णतः चेतन से निर्धारित होता है। तीसरा है ईगो (अहम् ) यानी अहंकार जो कि एक यथार्थ है को कि मस्तिष्क का यथार्थवादी हिस्सा बनकर किसी भी इंसान की पहचान और अतिअहंकार की निहित आकांक्षाओं के बीच मध्यस्थ होता है। फ्रायड ने अचेत मन या अवचेतन मन संबंधी  सिद्धांत प्रतिपादित किया जो सस्वाधिक चर्चित रहा । यह चिरस्थाई सिद्धांत है जो साबित करता है कि  इंसानी दिमाग,विचारों ,स्मृतियों ,और जज़्बातों का बारहमासी जलाशय होता है। यह जलाशय चेतन मन के बाहर अवस्थित रहता है।

                     "समंदर पर तैरता हिमखंड है मस्तिष्क"

आपने समंदर में तैरते हिमखंड देखे होंगे.....टीवी स्क्रीन पर ही सही! फ्रायड में मतानुसार हमारा मस्तिष्क भी इन्ही हिमखंडों की तरह होता है। जिस तरह हिमखंड का सातवां हिस्सा ही जल सतह से ऊपर होता है और बाकी जलसतह के नीचे, ठीक इसी तरह मस्तिष्क की भी स्थिति होती है। इसी तरह सचेत मस्तिष्क की तुलना किसी फव्वारे से की जा सकती है जो  रोशनी में खिलखिलाकर उसी  अवचेतन के विस्तारित पोखर में गुम हो जाता है जहाँ से उसका उद्भव होता है। फ्रायड ने इसी तरह संघर्ष की महत्ता प्रतिपादित करते हुए अपने मनोविश्लेषण के अपने सूत्र में स्पष्ट किया है ,"किसी न किसी दिन सिंहावलोकन के बाद बरसों  संघर्ष आपको यानी किसी भी इंसान  को  सफलता के शिखर पर पहुंचा सकता है। 

                        "अपनी तुलना सिर्फ़ अपने आप से करें"

अपनी पुस्तकों में  फ्रायड ने कहा है ," अगर आपको स्वतः की तुलना किसी अन्य से करना है तब आप सिर्फ अपनी तुलना इस तरह से करें कि पहले आप खुद कैसे थे । "अगर  किसी भी वजह से मनोग्रंथियां  बन चुकी तब आप उन्हें समाप्त करने  की कोशिश न करें "  सिग्मंड फ्रायड कहते हैं, " मनोग्रंथियों से मतैक्य स्थापित करें। एक तरह से आपकी मनोग्रंथियां भी दुनिया में आपके सहज और जायज व्यवहार का एक प्रतिबिम्ब हो सकती हैं। इस विषय पर कोई न्यूनगंड न पालें। " किसी भी बात पर विश्वास का मुद्दा जब उठाया जाता है तब फ्रायड के इस मनोविश्लेषण सूत्र को ध्यान में रखें," जिस तरह किसी भी व्यक्ति को किसी बात पर भरोसा करने के लिए बाध्य नहीं किया सकता है उसी तरह किसी भी इंसान को भरोसा नहीं करने पर भी विवश नहीं किया सकता।

                               “सर्वाधिक रोचक और चर्चित पुस्तकें “

वैसे तो सिग्मंड फ्रायड ने अनेक ज्ञानवर्धक पुस्तकें लिखीं लेकिन उनमें से दो - “द इंटरप्रिटेशन ऑफ़ ड्रीम्स” और “जोक्स एन्ड देयर रिलेशंस टू अनकांशस” सर्वाधिक सराही गईं । द इन्टरप्रिटेशन्स ऑफ़ ड्रीम्स …..फ्रायड ने अवचेतन का सम्बन्ध स्वप्नों की विशद व्याख्या से संदर्भित संबंधों का विस्तार कर अलहदा पहलुओं पर लिखी है। "व्हाई वार " पुस्तक फ्रायड ने अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ साझेदारी में लिखी थी जो काफी चर्चित रही। सिग्मंड फ्रायड की  जीवनी लिखी है अर्नेस्ट जोन्स ने। पत्नी मार्था  को लिखे पत्रों के आधार पर लिखी यह जीवनी " द लाइफ एन्ड वर्क ऑफ़ सिग्मंड फ्रायड "  सबसे विश्वसनीय मानी  जाती है।

             मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण की दुनिया को गहराई तक समझनेवालों को फ्रायड लिखित  "ग्रुप साइकोलॉजी एंड द एनालिसिस ऑफ़ द ईगो " के अलावा " द ईगो एंड द  ईड"  अवश्य पढ़नी चाहिए। लेकिन इन दोनों   अगर आप "द  साइकोलॉजी ऑफ़ एवरीडे लाइफ़" और और इंट्रोड्यूसरी लेक्चर्स  ऑन साइको एनालिसिस "पढ़ेंगे तब सबसे पढ़ने वाली पुस्तक पढ़ने में अधिक आनंद आएगा।1884 से 1939 के दरम्यान सिग्मंड फ्रायड ने 160 से अधिक पुस्तकें लिखीं तो उनके मनोविज्ञान के प्रति समर्पण का जुनून प्रदर्शित करता है। फ्रायड की विचारधारा पर सोफ़ोक्लीज़ ,शेक्सपीयर,गोथे,दोस्तोवस्की ,डार्विन और नीत्शे का काफी प्रभाव बताया जाता है। 

 

                                      “जीवनी के विवादित पन्ने” 

चोटिल मनोविश्लेषक होने के बावजूद सिग्मंड फ्रायड का पारिवारिक जीवन अनेकानेक जटिलताओं से अटा - पटा  है। फ्रायड की जीवनी के अनेक पन्ने  बेहद रोचक, कुछ विवादास्पद और चर्चित भी रहे हैं। इस घटना की  पृष्ठभूमि में मनोविज्ञान पर सिग्मंड के गंभीरतम शोध यथा -ओडिपस कॉम्प्लेक्स, इलेक्ट्रा कॉम्प्लेक्स  तथा ईड और ईगो पर प्रभाव गहन मनोवैज्ञानिक अध्ययन के विषय रहे  हैं। इसीलिए सिग्मंड फ्रायड युवावस्था में ही अपनी माँ से विवाह के इच्छुक रहे और अपने पिता को प्रतिद्वंद्वी समझते थे। इस मनोस्थिति का चित्रण कुछ फिल्मों में भी किया गया है। सिग्मंड के पिता जैकब के दो बेटे  थे। एमान्युएल और फिलिपो। पिता जैकब की तीन पत्नियां थी -सबसे पहली अमालिया (जैकब से बीस साल छोटी) सिग्मंड के चेहरे पर उसकी माँ ने एक "शुभ शगुन चिन्ह " देखा था। जैकब की दूसरी पत्नी थी रिबेका।  तीसरी पत्नी के समय नाज़ीवाद तेज़ी पर था और  को नाज़ीवादियों की वजह से अपना रिहाइशी  स्थान छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा। सिग्मंड फ्रायड का विवाह 1886 में मार्था बार्नेस से हुआ।उनके छह बच्चे हुए और बेटी एना फ्रायड भी अपने पिता की तरह एक चर्चित मनोविश्लेषक बनी।

                     “प्रेम और श्रम दोनों जीवन के अनुपूरक “

" अहंकार कभी मानव के ह्रदय का मूल निवासी नहीं होता , वह बाहर से ही प्रत्यारोपित होता है। इसकी वजह वह इंसान के इर्द- गिर्द की परिस्थियाँ और स्वयं का अपनाया गया व्यवहार भी रहता है। "  सिग्मंड फ्रायड कहते हैं ," प्रेम और श्रम दोनों जीवन के  अनुपूरक हैं ,इनके बिना जीवन निस्सार। और अगर जीवन में सफल होना है तब आपकी मानसिकता में अभेद्यता....ज़िद और जीवटता ही आपको कर्मठ बनाएगी। "

                     " ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे".... शब्द,प्रेम

                     दिल और दिमाग पर क्या कहा फ्रायड ने !"

दोस्त ....दोस्ती ....अंतरंगता और फासला इस पर भी सिग्मंड फ्रायड ने बहुत कुछ कहा है। सूत्रों  में बात की जाए तो फ्रायड की नज़र में दोस्ती या मित्रता दूरियां कितनी रखी जाए इसे गहराई से समझने की कला है जबकि प्यार  एक ऐसी हक़ीक़त भरा हुनर है जिसमें दूरियां मिटाकर करीब से करीब .... और करीब हुआ जाता है।  फ्रायड पर लिखे किसी लेख में उल्लेख था," कोई भी विचार वस्तुतः तत्पश्चात की जाने वाली कार्यवाही का रिहर्सल होता है। " दिल और दिमाग की बात जब चली तब उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा था, "हर किसी इंसान को यह बात गंभीरता से समझनी चाहिए कि  छोटे मामलों में आप  अपने दिमाग की बात सुनें लेकिन गभीर मसलों पर सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने दिल की कही को ही हरी झंडी दें।" शब्दों के करिश्माई असर के बारे में फ्रायड का सूत्र बेहद अनोखा है। उनके मतानुसार, "किसी भी साधारण व्यक्ति से अगर यह कहा जाय  कि शरीर और मन के  अनेक रोगों का निदान शब्दों से मुमकिन है तब उसे यह बात हज़म नहीं होगी। साधारण इंसान को  ऐसा ही लगेगा कि उसे चमत्कार पर विश्वास करने को कहा  रहा है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि सार्वजनिक सत्य वस्तुतः अंतर्मन के सत्य की अनुकूलित तामीर करना है। मनोविश्लेषण का एक अत्यंत रोचक सूत्र यह भी ,"हम जो हां इसलिए हैं कि हमें होना चाहिए था वही हम थे भी। सचाई यह है कि जीवन में मूल वैचारिक गुत्थियां और समस्याओं को सुलझाने के लिए नैतिक आंकलनों की नहीं बल्कि ज्ञान की बहुत अधिक आवश्यकता है। "

                     आप जानते हैं फ्रायड ने स्वप्नों के बारे में क्या कहा है? वे कहते हैं, "स्वप्न वाहरी प्रकृति से आत्मा के  विलग होने के स्थिति है। एक तरह से तत्व की जंजीरों से मुक्ति भी।सभी स्वप्नों में सर्वाधिक  उभय या सामान्य बात एक ही है । स्वप्न हमेशा उन सभी आकांक्षाओं की पूर्ति करते हैं जिन्हें हम यथार्थ के धरातल पर पूरा नहीं  कर सकते और अतृप्त रह जाती हैं । सच कहा जाए तो स्वप्न इच्छाओं का सहज और साफदिल  एहसास किया जाना  है। "स्वप्न के बारे में फ्रायड का दावा है कि  सादृश्य  तौर पर  बुरे सपने वे स्वप्न हैं जिनमें  सम्बंधित व्यक्ति की  कामवासना चिंताओं में रूपांतरित हो जाती हैं। हो जाती हैं। इन स्वप्नों के विषय आम तौर पर  किसी भी तरह के यथार्थवादी विरूपण से सम्बद्ध नहीं होते। अतः दमित इच्छाओं का प्रतिबिम्ब भी  नहीं रहते। कोई भी भद्र यानी सज्जन व्यक्ति स्वप्न की अंतर्वस्तु को सामान्य  नज़रिए से देखता है लेकिन कोई कुटिल इंसान का दृष्टिकोण उस तरह होता है जो वह  ज़िन्दगी में वस्तुतः किया करता है। दरअसल स्वप्न की व्याख्या ,मस्तिष्क की अवचेतन गतिविधियों को गंभीरता से समझने सम्बन्धी  ज्ञानार्जन का महामार्ग है।

                 आधुनिक मनोविज्ञान के जनक विल्हेम वुंड

                  पर अवचेतन का फ्रायड सिद्धांत कालजयी

           निर्विवाद रूप से अधुनातन वैज्ञानिक आविष्कारों और शोध  के उपरांत विल्हेम  वुंड को आधुनिक मनोविज्ञान का जनक माना गया है। फिर भी मनोविज्ञान का इतिहास और आधुनिक मनोविश्लेषण के सरताज अब भी सिग्मंड फ्रायड हैं। फ्रायड की कुछ थ्योरियां साक्ष्य के अभाव में अवैज्ञानिक कहकर नकारी जाती हैं लेकिन अवचेतन पर उनके सिद्धांत और शोध अब भी कालजयी हैं । फ्रायड के शोध का पुरज़ोर लक्ष्य समाज की उस  परम्परागत अवधारणा को बदलना था जिसके तहत यह माना गया  कि मनोरोग की वज़हें आमतौर पर महज़  जैविक ही हैं तथा मस्तिष्क से जुडी बीमारी का प्रतिफल भी। फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धांतों के प्रतिपादन के बाद ही पुरानी मान्यता से मुक्ति मिली। मनोविश्लेषण के क्षेत्र में फ्रायड का सबसे अविस्मरणीय योगदान मानव व्यवहार और मनोचिकित्सा से लेकर बाज़ार परिचालन से सम्बद्ध समस्त व्यवसायों, प्रशिक्षण और शिक्षा से गहराई तक आज भी जुड़ा हुआ है।

                   फ्रायड के सिद्धांतों पर आधारित हॉलीवुड की रोचक फ़िल्में

                  फ्रायड के बगैर मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण का अध्ययन असम्भव है।  मनोविज्ञान में रूचि रखने वाले अध्येता और सामान्य पाठक या फिल्मों के  भी हॉलीवुड फ़िल्में देख सकते हैं जिनमें फ्रायड द्वारा मनोविज्ञान के प्रतिपादित सिद्धांतों  पर पटकथा लेखन किया गया है। इन फिल्मों को देखना दरअसल मनोविज्ञान के सैद्धांतिक सूत्रों का प्रायोगिक माध्यम से जीवंत साक्षात्कार करना है।  इन फिल्मों में प्रमुख हैं - फ्रायड,अडोल्फ हिटलर,अनकांशस,ए  फैंटास्टिक फियर ऑफ़ एवरीथिंग, द  सीक्रेट डायरी ऑफ़ सिग्मंड फ्रायड ,द बिग टिट्स ड्रैगन, द थेरापी ऑफ़ अ वैम्पायर,आई स्लेप्ट विथ फ्रायड, हिस्टॉरिकल गर्ल, एन्ना फ्रायड अंडर  एनालिसिस (यह पुस्तक सिग्मंड और मार्था फ्रायड के सबसे छोटे बच्चे एन्ना पर उसके माता - पिता की लिखी किताब है।

                    मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड की मृत्यु 23 सितंबर, 1939 को तिरासी वर्ष की उम्र में हुई। मृत्यु से पहले जबड़े का कैंसर था जिसकी वजह से उन्हें जबरदस्त दर्द हो रहा था  दर्द पर काबू पाने अंततः चिकित्सक मैक्स स्कूर को फ्रायड के परिवारजनों की सहमति से मॉर्फिन के इंजेक्शन लगाने पड़े। लिसा एपीनानेसि अनेक पुरस्कारों की विजेता लेखक, उपन्यासकार और संस्कृति विषयक लेखन विशेषज्ञ हैं। उनकी राय में -  " बिल्कुल मौसम की तरह हैं सिग्मंड फ्रायड .....वह हर जगह हैं.....अगर आप किसी भी संस्कृति में देखें, किसी न किसी वक्त उनके विचार समाज में तैरते हुए मिलेंगे। कई बार विचार  उनके होकर भी उनके नाम से नहीं होते। जैसे ही आप कुछ विचारों को पढ़ते हैं आप अपने आप से कहते हैं.....देखो ! देखो! इन विचारों की बुनियाद है फ्रायड! हालांकि कुछ लोग खुलकर फ्रायड का नाम नहीं लेते! " 

किशोर दिवसे ,पुणे

चलित दूरभाष ; 9827471743 ,ई मेल; kishorediwase0@gmail.com

मंगलवार, 9 जून 2020

यादें ; शायर और फ़िल्मी गीतकार असद भोपाली

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यादें ; शायर और फ़िल्मी गीतकार असद भोपाली

ऐ मौज-ए-हवादिस तुझे मालूम नहीं क्या
हम अहल-ए-मोहब्बत हैं फ़ना हो नहीं सकते
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बेहतरीन शायर और फिल्मी गीतकार असद भोपाली की आज पुण्यतिथि है। देखा  न ,अहल ए  मोहब्बत पर उनहोंने क्या सचबयानी की है !  अनेक रोमांटिक फ़िल्मी गीत आज भी चहेतों  की जुबान पर मचलते हैं ...  लोग गुनगुनाते हैं। असद भोपाली को शोहरत की बुलंदी इन्हें प्रसिद्धि बी आर चोपड़ा की फिल्म अफसाना के गीतों से मिली। असद ने अपने समय के सबसे प्रमुख संगीत निर्देशकों जैसे कि श्याम सुन्दर, हुस्नलाल-भगतराम, सी. रामचंद्र, खय्याम, धनी राम, मानस मुखर्जी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी और हेमंत मुखर्जी के साथ काम किया है।
         फिल्मफेयर अवार्ड से उन्हें अनेक दफे नवाज़ा गया है। असद भोपाली उर्फ़ असादुल्लाह खान का जन्म 10 जुलाई 1921 को भोपाल, मध्य प्रदेश, में हुआ था। मृत्यु 9 जून 1990  को 68 बरस की उम्र में हुई। फ़िल्मी गीतों से उनकी दिल्लगी होने के बाद वे मुंबई में ही रहे। कमाल की शायरी के फनकार रहे असद भोपाली।
  शायर असद भोपाली की असली पहचान एक गीतकार के तौर पर बनी। उन्होंने फ़िल्मों को कई सुपरहिट गीत दिए। जिनमें फ़िल्म मैंने प्यार किया के 'कबूतर जा-जा-जा' को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला।  इसके इतर उन्होंने कई ग़ज़लें भी लिखीं।
                शायर असद भोपाली की राय में   मुहब्बत करने वाले आशिक और माशूकों का सदका तो फ़क़त  एक - दूजे के दर पर ही हो सकता है   बक़लम असद भोपाली -
               इक आप का दर है मिरी दुनिया-ए-अक़ीदत
                ये सज्दे कहीं और अदा हो नहीं सकते
 उनके पिता का नाम मुंशी अहमद खान था और असद उनकी पहली संतान थे। उनका जन्म नाम असादुल्लाह खान था। उन्होंने फारसी, अरबी, उर्दू और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी। असद अपनी शायरी के चलते धीरे धीरे असद भोपाली के नाम से मशहूर हो गये। 28 साल की उम्र में यह गीतकार बनने के लिए बंबई आ गये, लेकिन अपनी पहचान बनाने के लिए उन्हें पूरे जीवन संघर्ष करना पड़ा।उन्होंने पहले पहल 1949 की फिल्म "दुनिया" के लिए दो गीत लिखे, जिन्हें  मोहम्मद रफी (रोना है तो चुपके चुपके रो) और सुरैया (अरमान लूटे दिल टूट गया) की आवाज में रिकॉर्ड किया गया था। इन्हे प्रसिद्धि इनके बी आर चोपडा की फिल्म अफसाना के गीतों से मिली।
साथी और मंज़िल का पता नामालूम हो तब भी वे यह भी इशारा करते हैं के -
              न साथी है न मंज़िल का पता है
             मोहब्बत रास्ता ही रास्ता है
असद ने अपने समय के सबसे प्रमुख संगीत निर्देशकों जैसे कि श्याम सुन्दर, हुस्नलाल-भगतराम, सी. रामचंद्र, खय्याम, धनी राम, मानस मुखर्जी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी और हेमंत मुखर्जी के साथ काम किया है। असद की दो पत्नियां और नौ बच्चे थे, जिनमें से गालिब असद फिल्म उद्योग का हिस्सा हैं।
जो सब कुछ जान कर भी अनजान होता है उसके लिए उनके अशआरों पर गौर फरमाइए  -
                    वो सब कुछ जान कर अंजान क्यूँ हैं
                     सुना है दिल को दिल पहचानता है
1990 में असद को उनके द्वारा फिल्म मैंने प्यार किया के लिए लिखे गीत कबूतर जा जा जा के लिए प्रतिष्ठित फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया, हालांकि, तब तक वह पक्षाघात होने से अपाहिज हो गये थे।
असद भोपाली के लिखे कुछ प्यारे फ़िल्मी  गीतों का जायजा लीजिए। गीत के बोल और फिल्मों के नाम बाजू में दर्ज़ किए गए हैं।

1 . दिल दीवाना बिन सजना के माने ना - मैंने प्यार किया
2   कबूतर जा जा जा - मैने प्यार किया
 3 .     हम तुम से जुदा हो के  - एक सपेरा एक लुटेरा
दीगर ओल्ड इज़  गोल्ड गीतों की बात करें तो नीचे लिखे ये गाने पुरानी पीढ़ी के बेहद  पसंदीदा हैं।
1 .  दिल का सूना साज़ - एक नारी दो रूप
2 . ऐ मेरे दिल-ए-नादां तू ग़म से न घबराना - टॉवर हाउस
3 . दिल की बातें दिल ही जाने - रूप तेरा मस्ताना
4 .   हसीन दिलरुबा करीब आ ज़रा - रूप तेरा मस्ताना
5 .  अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो - हम सब उस्ताद हैं
कई पीढ़ियों के दिल जब नीचे  लिखे गीतों के बोल गुनगुनाते हैं तब वे यक़ीनन झूमने लगते हैं।
1 . इना मीना डीका दाई डम नीका - आशा
2 . वो जब याद आये बहुत याद आये - पारसमणि
3 . हम कश्म-ए कशे गम से गुज़र क्यों नहीं जाते – फ्री लव
4 . प्यार बांटते चलो - हम सब उस्ताद हैं
5 . सुनो जाना सुनो जाना - हम सब उस्ताद हैं
6 . हंसता हुआ नूरानी चेहरा- पारसमणि
7. मैंने  कहा  था आना संडे को – उस्तादों के उस्ताद
8 .  आप की इनायतें आप के करम - वंदना
उनके फ़िल्मी  गीत , ग़ज़ल और शायरियों की बारिश दिल का ज़र्रा- ज़र्रा भिगो दिया करती हैं। ग़म  और मुहब्बत के रिश्ते पर असद कहते हैं -
                      न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़गार मुझे
                     वो ख़ुद तड़प गए देखा जो बे-क़रार मुझे
ज़रा गौर कीजिए किस तरह शाम - ओ - सहर के अंदाज़ - ए  - बयां अजीब-ओ - गरीब लगते हैं जब असद भोपाली कहते हैं -
                     अजब अंदाज़ के शाम-ओ-सहर हैं
                    कोई तस्वीर हो जैसे अधूरी

यूँ किस दिलकशीं से बनाया है उन्होंने पैरहन की खुशबुओं और दिल-ए - जानां से  जुदाई का शिकवा  जब असद के  महकते अशआर अर्ज़ करते हैं -
                 जब अपने पैरहन से ख़ुशबू तुम्हारी आई
                घबरा के भूल बैठे हम शिकवा-ए-जुदाई
आज असद भोपाली साहब हमारे बीच नहीं हैं। कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन  उनका यह शेर आज  रह- रहकर याद आ रहा है मुझे -
               तुम दूर हो तो प्यार का मौसम न आएगा
               अब के बरस बहार का मौसम न आएगा

 स्वरचित   @ किशोर दिवसे ,पुणे।  मोबाइल - 98274 71743

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

भूखे अफ़्रीकी बच्चे

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भूखे अफ़्रीकी बच्चे
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Africa"s Hungry Children
By -Alf Hutchinson
अपने कैमरे के लेंस को जिस रोज़
ज़ूम किया था केविन कार्टर ने
सन्19894 का वह दर्दीला दिन
भूख से मरता सूडान का बच्चा
मौत के द्वार पर देता दस्तक
वहां पर मौजूद थे सिर्फ दो लोग
भूख से मरते बच्चे को देखने
लेकिन बीच था कुछ फ़ासला

*****
एक गिद्ध और एक छायानवीस
दोनों की नीयत थी अलहदा
पर लक्ष्य एक ही था दोनों का
भूख से मरता वह बच्चा!
*****
टाइम्स में छपा था वह चित्र
दुनिया थी स्तब्ध,निःशब्द
भुखमरी की दर्दनाक घड़ी ने
उतार फेंका था अपना लबादा
टिक ...टिक... टिक...टिक शुरू
और बजने लगी मौत की घंटियां
*****
मगर नंगा सच था मुंहफ़ाड़े
क्योंकि गिद्ध और छायानवीस
दोनों ही काटने को थे आतुर
उस बेबस की भूख से मौत से
उन्हें हासिल होने वाली फसल
लाभ जुटाने को थे उतावले
रसद-पहली जरूरत सूडान की
कार्टर को पुलित्ज़र की उम्मीद!
****
यक़ीनन फ़ैसलाकून नहीं हैं हम
नहीं कर सकते हम दुस्साहस भी
कोई हुक्मनामा जारी करने का
हम कभी वहां पर थे ही नहीं
गुस्से से  बौखलाता मुल्क है
अफ्रीका-----उड़ती है जहाँ पर सदा
बेतहाशा ग़रीबी, हताशा की ख़ाक
भूख की मौत की दहशत से गर्म!
****
दूर रहो! मत छुओ , तिल-तिल मरते
बीमार भूखे बच्चे को,दूर हटो...
केविन कार्टर के कानों में गूंजी थी
बौखलाहट भरी गुस्सैल आवाज़ें
और दम तोड़ते उस बच्चे से दूर
पर हट गया था केविन उसी पल
जैसे ही उसके सामने गुजरने लगे
भूख से जुड़े अनगिनत दिगर सच
रहस्य, त्रासद के लिहाफ में लिपटे
करने लगे अंतरात्मा को लहूलुहान
*******
फिर भी, भूखजनित महाभयावह
अफ़्रीकी सत्य की उन यादों ने
जिसमें शामिल थे दम तोड़ते बच्चे
उनकी जिंदा लाशें,उदास आँखें
सूखी चमड़ी से ढके कंकाल
सचमुच, भूख से मौत का नर्तन
रोंगटे तक झुलस गए केविन के!
*****
दैत्यों की तरह पीछा कर रही थीं
भूख से मौतों की यादें भयावह
दर्द से निढाल अफ्रीका की
तब्दील हो रहे थे जहाँ लोग
लाशों में,और लाशों के बीच ही
सचमुच पागल कर दिया केविन को
*****
महसूस किया था केविन ने
भूख से दम तोड़ता अफ्रीका
हम कभी समझ ही नहीं पाये
उसके दिल को निरंतर बींधते
मौत के कितने अनवरत आघात
बर्दाश्त करता रहा था केविन!
******
सिर्फ तीन महीने का वक्त ही 
गुजरता रहा पल-पल कर 
और भूख से जुडी त्रासद यादों ने 
रीता कर दिया उसका जीवन पात्र 
*****
प्रभु! अफ्रीका में जारी निरंतर 
भूख का यह नग्न नर्तन 
कब थमेगा यह अभिशाप?
क्या कभी अफ्रीका बन सकेगा 
भूख , फसाद और अपराध मुक्त 
खुशहाल। .. एक मुस्कुराता देश!
******
क्या केविन के छायाचित्र से 
खुलेँगी हमारी मुंदी  हुई आँखें 
और बहरे हुए कान भी ?
जहाँ अब भी निरंतर गूंजता है 
भूखे ,बदहाल ,मौत से जूझते 
मासूमों का करूण  विलाप? 

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

अरे ओ! इंसान की औलाद!

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अरे ओ! इंसान की औलाद!

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kishorediwase0 kishorediwase0@gmail.com

Fri, Jul 13, 10:13 AM
to me
अरे ओ सूअर की औलाद
अबे ....गधे के बच्चे
गिरगिट की तरह तू रंग
बदलता है बदतमीज़!
सांप और नेवले भी भला
कभी हो सकते हैं दोस्त?
पानी में रहकर मगरमच्छ
से मत करो तुम बैर
घोड़े और घांस की दोस्ती
भला देखी है तुमने कभी?
एक ही मछली सारे तालाब को
कर देती है कितना गंदा
दीमक की तरह देश को
खोखला कर रहे हैं कुछ लोग
शतुरमुर्ग की मानिंद आंधियों में
रेत में कब तक ध॔साओगे सर?
कछुआ चाल चलोगे ज़िंदगी भर?
बिल्ली की तरह आंखें मूंदकर
कब तक पियोगे दूध?
अपशगुन! बिल्ली काट गई रास्ता
अरे ओ बेहया इंसान
सभ्य जानवर समाज ने भी
नहीं बनाईं अब तक कभी
अपमानित करने इंसानों को
कहावतें या विधान जैसा कुछ
और इंसानों! तुम सब के सब
और सड़ियल तुम्हारी सोच भी
काॅल आॅफ द वाइल्ड- में
जैक लंडन के अक्षर दावानल ने
कर दी है पूरी तरह निपट नंगी
अरे !हम तो सदा ही रहे हैं दोस्त
दुनियावी मानव समाज के
बदनीयत इंसान क्यूं बन गया
आखिर दुश्मन इंसान का?
प्राणिजगत ने तो सीख ली सभ्यता
पर तुम इंसानों की देखकर बेशर्मी
शरमा गई है अब शर्म भी
करते हैं वादा,कर लो अपमानित
जब तक जिसे जितना भी चाहो
नहीं कहेगा एनीमल किंगडम का
एक भी सदस्य कभी आदमज़ात को
अरे ओ!.... इंसान की औलाद !

शनिवार, 5 मई 2018

भींच लो....... गोद लिए किसी बच्चे को

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भींच लो.......  गोद लिए किसी बच्चे को                  


दोस्तों .... , अरसे बाद ...बरक्स स्वरचित कविता , आपके सामने बज़रिये अपने ब्लॉक आपसे मुखातिब हूँ।  दरअसल यह मसला है तो बेहद पुराना लेकिन ज़िन्दगी की अनेक हकीकतों को उजागर करने वाला।  ऐसे यथार्थ तो संत्रास और त्रासदी तक महिला और पुरुष दोनों को ही धकेलते हैं। यही नहीं परखच्चे उड़ा देते हैं दिमाग के। फिल्मों ही नहीं , हक़ीक़त का नीम सच अक्स बनकर ख़ौफ़ज़दा भी करते हैं  ज़िन्दगी के दरम्यान और ज़िन्दगी के बाद भी !। ज़िन्दगी की हरेक डाइकोटॉमी की मानिंद प्रगतिशील सोच का एक कुनबा इस मसले को अपनाकर खुशहाल ज़िन्दगी जी रहा है। विडंबना यह है कि पढ़े- लिखे लोगों का एक झुण्ड कुंठित सोच से लथपथ अपनी ज़िन्दगी को सड़ांध के दलदल से बाहर लाना ही नहीं चाहता , बना लेता है अपने गढे हुए बेहूदा किस्म के बहाने  .! ऑर्थोडॉक्स  या परम्परावादियों की बात करें तो उलटे धरे घड़ों के  महाविशाल परिसर में  समझदारी सीख रहे कुछ उलटे घड़े सियासी आँधियों से सायास सहमे नज़र आते हैं, खुद सुधरना नहीं चाहते यह बात निश्चित रूप से उनके बायस का अंग  है। । दूसरी तरफ सीधे धरे और प्रगतिशील लोग भी मंथर रफ़्तार के चलते  अपनी अंतर्मुखता में  आत्ममग्न हैं....जिसे दौड़ना चाहिए।  समाज में सियासत की मलाई को ताकते धर्मगुरुओं से ज्यादा उम्मीद बानज़ीर  बेकार है , और मुआ समाज ....खुद के सामने सदियों से रखे चमचमाते आईने से मुंह छिपाकर फ़क़त मीडिया को  ही हर दुविधा का  हल निकलने वाला मसीहा बनाने के वाहियातपन  से बाज़ नहीं आ रहा है।  रहा सवाल मीडिया का ... परम्परागत मीडिया के विरुद्ध वैचारिक  समुद्र मंथन से जना  सोशल मीडिया। ... बेलगाम घोड़ा भी अब आंशिक नकेलजनित   बदहवासी में भटक कर आंधी की रफ़्तार से हवा में बातें  कर रहा है। बेशक कुछ तो अच्छा भी हो रहा है। ... गतिशीलता से होना भी चाहिए  और इसी कुछ अच्छा होने के बतर्ज़ मैं खुद समाज से एक जीवंत मसले को कविता की शक्ल में आपके सामने ला रहा हूँ।
अच्छा  या बुरा आप यानी मेरे अपनों के ही  हवाले।पढ़कर सोचिये और बताइयेगा जरूर। .....खुशहाल और लिखते , पढ़ते भी रहिये ....   आपका , किशोर दिवसे  मोबाइल 098274 71743 , Mail Id- kishorediwase0@gmail.com 




भींच लो गोद लिए किसी बच्चे को
-------
जब युवा मानव देह के भीतर
सक्रिय होते हैं दो हार्मोन
टेस्टोस्टिरोन हर पुरुष में
और स्त्रियों में ऑस्ट्रोजेन
तब उभरने लगती है जिस्म में
द्वितीय यौन लक्षण श्रृंखला
और गूंजने लगती है कानों में
इबारत- बेटी सयानी हो गई
जवान हो गया बेटा,और....
अंडाणु, शुक्राणु का विश्व भी!
******
संकेतक बन जाते हैं मेडिकल शॉप
और फुसफुसाहट भरे अनेक स्वर
कहीं पर बोल्ड और ब्यूटीफुल भी-
सैनिटरी नैपकिन दीजिये प्लीज!
ड्यूरेक्स, कोहिनूर, माला डी...
और न जाने कितने ब्रांड्स भी
*****
निरंतर घूमते हैं जैविक कालचक्र
मानव देह के भीतर और बाहर भी
लाउड हो जाता है यंगिस्तान
सेक्सी, शोख़, अल्हड ,किलर
यौवन की आन, बान और शान
फिर गूंजने लगते हैं शहनाई के स्वर
बैंड ,बाजा बारात के साथ ही
रिसेप्शन की आपाधापियां भी
******
जिंदगी में दरमियान इसी
नज़र आते हैं सीन अनेक
शादी किसी मंदिर में हो या
वेडिंग हॉल में बड़ी धूमधाम
या गन्धर्व विवाह , भागकर
घर से दूर किसी शहर में
मैरिज रजिस्ट्रार के सामने
अंतिम दो अक्षर  होते हैं -शादी
******

दूल्हे मियां! वाह क्या बात है!
आज तो... बिल्ली मारने की रात है
दोस्त करते हैं चुहलबाज़ी
चल.... जल्दी अंदर जा न...
भीतर धकियाती हैं सहेलियां
बाज़ नहीं आती छेड़ने से
स्वीटहार्ट...गो इनसाइड फ़ास्ट
बेसब्र हो रहे हैं न प्यारे जीज्जजू
फिर चाहे कमरा हो घर का
या कहीं का कोई होटल सितारा
किवाड़ हो जाते हैं फ़ौरन बंद
होटल हो ग़र, तो लगती है तख्ती
हनीमून कपल-प्लीज़ डोंट डिस्टर्ब
और घर का कमरा हो तब...
घराती ,बाराती हो जाते हैं                   
मस्ती और गप्पों में बिज़ी
******
याद आती हैं बदमाशियां पुरानी
चादर के नीचे गुपचुप बिछते थे
पापड ...इंतज़ार.. चर्रम चर्रम का
बनते थे कई छेड़ने वाले सवाल
******
बीतती है रात, होती है सुबह
फैला सिन्दूर , अस्तव्यस्त केश
दरवाजे पर सहेलियों की दस्तक
और , पूछती हैं शैतान आँखें
क्यूँ! नींद नही हुई सारी रात
नेपथ्य में गूंजता है एक अंतरा
रात भर मियां सोने न दे....
इंजेक्शन लगाए घड़ी घड़ी
*****

कैलेंडर में बदलती हैं तारीखें
दिन ,महीने साल गुजरते जाएँ
बीतने लगते हैं एक-एक कर
अरे! कब होओगे दो से तीन?
पीछा करने लगते हैं प्रश्न
बहू! कब मैं देखूँगी मुंह नन्हे का?
तभी मर सकूंगी चैन से मैं
कहती है बुढाती है बीमार सास
( यानी लड़के की मां )
******
आदतन घूमता है कालचक्र
चलो ना! इशू ले लेते हैं..
कुछ तो करना ही पड़ेगा न!
घिरने लगते हैं स्याह बादल
सरकते बरस,बढ़ता तनाव
कही बूढ़ों की उठती त्योरियां
और कहीं पेशानी पर बल
पति- पत्नी के बीच गहराती
बरक्स सपने , सवालों की खाई
मूक , वाचाल तो कभी धमन भट्टी
दूरियां....समझाइश, आंसू का समंदर
रूठने और मनाने का सिलसिला
चलता है पाखण्ड और पैथियों का
अनवरत संग्राम और यलगार
दिल और दिमाग की भी जंग
जारी रहती है तब अविराम
******
ठहरो! सोचो! विज्ञान का है युग
छोड दो , टोना टोटका और टैंट्रम
गुंजाने के लिए घर में किलकारियां
अपनाओ चिकित्सा आधुनिक
प्रकृति प्रदत्त तरीकों से अगर
नहीं बन सकते हो माता -पिता
क्यों नहीं गूंजते मन में आपके
धाय माँ,सरोगेसी, आईवीएफ,
शब्द और तकनीक आधुनिकता की?
अपनाओ विज्ञान सम्मत विचार
तभी गूंजेगा नव शिशु कलरव
जय बोलो विज्ञान की , जय बोलो
*******
अरे! गोद क्यों नहीं लेते बच्चे को?
या फिर अनाथ , बेसहारा और
उसे जो तरसता है माँ के आंचल
और पिता के बरगद साये को
*******
वो बच्चा तो नहीं है मेरा खून
उपजा नहीं मेरे वीर्य कणों से
बच्चे में नहीं है मेरा डीएनए
चुप रहो...शट अप... ख़ामोश
अब फ़ौरन आपको बंद करनी होगी
ऐसी फ़िजूल और बेहूदा बकवास
******
दोस्तों! आँसुओं में नहीं है कोई फ़र्क़
मुस्कान में नहीं है कोई अंतर
धड़कता है उस लावारिस का दिल
कोखजनी, स्वसंतति की मानिंद
*******
कभी लेबल नहीं चस्पा होता किसी
माथे पर बेसहारा बच्चे के
उसे तो बस चाहिए आपके
होठों का चुम्बन और दुलार
*****
दोस्तों और मेरी प्यारी सखियों
उम्र, जाति, धर्म की सरहदों से परे
समाज में जगा दो अब यह अलख
अभी इसी वक्त खोल दो अपने
मन के सारे रोशनदान और झरोखे
भींच लो किसी गोद लिए बच्चे को
*****

फिर देखना बहने लगेंगी आपकी
छातियों से अदृश्य दुग्ध धाराएं
हर्षासुओं की पावन निर्झरिणी
आपके चिर अतृप्त सीने से
और स्पंदित होंगे तीन ह्रदय
जीवन के इस जलतरंग पर
गोद में बच्चा , बच्चे को गोद
साध लेगी , अभीष्ट की अंतिम धुन
**********

रविवार, 17 जुलाई 2016

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इंसान अपना मूल स्वभाव पूरी तरह नहीं बदल सकता?
Human being cant completely transform its original behavior


इंसान और संस्कृति के ढांचे के बीच गहरा रिश्ता पहले था, शायद अब भी  है। यही रिश्ता समाज व्यवस्था से  भी उतना ही जटिल  है। इंसान समाज व्यवस्था से समझौता कर उसे स्वीकार कर सकता है। इन समझौतों की प्रक्रिया  दौरान वह खुद को कमजोर  और ,नपुंसक बनाकर आम तौर पर प्रतिक्रिया देता है। बिरले होते हैं जो ऐसे लिजलिजी प्रतिक्रिया  नहीं  देते।  कालांतर में यह  विस्फोटक होती है। इंसान काम वासना का दमन करने और ब्रह्मचर्य की सख्ती सिखाने  वाली संस्कृति से भी समझौता कर सकता है। प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड के मुताबिक़ यह समझौता प्रक्रिया मनोविकार के लक्षण हैं। जिस संस्कृति का ढांचा मानव  के मूल स्वभाव के विरुद्ध होता है उसके खिलाफ बौद्धिक या भावनात्मक आक्रोश मानव की सहज अभिव्यक्ति भी है। आश्चर्य जनक ढंग से इन प्रतिक्रियाओं का पटाक्षेप उस सांस्कृतिक ढाँचे  परखच्चे उड़ने में  .देखा गया है। इसकी बुनियादी वजह यही है कि इंसान अपना मूल स्वभाव पूरी तरह नहीं बदल सकता।
          Homo sapien and culture are integrally related entities .So is the complex relation of human being with social systems .Traditionally its observed that during the process of compromises human beings react in a feeble ,somewhat impotent reaction due to orthodox approaches . Human beings may   due to pressures of traditions ,compromise with the culture that stresses upon suppression of  libido and practicing celibacy. Reknowned psychologist Sigmund Freud opines that such process of  involuntary compromise  results in to symptoms of chronic psychological disorders.
                    The infra structure of society which is tightly interwoven around against  the fundamental nature of human being  commonly observed phenomena is occurance of emotional or intellectual furore  and aggression .The resultant climax is gradual disintegration and rebellion against that societal infrastructure turning it in to mega debries of orthodox hypotheses.The basic cauz of this havoc is the fact that "Human being cant completely transform its original behavior .

बुधवार, 6 जुलाई 2016

Hi folks ...... you must know who were born today

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 Some amazing personalities of the world were born today on july 6th . The first one is Tenzin Gyatso popularly known as Dalai Lama . !4 th Dalai Lama is religious guru and head of Tibbet .He was born on 6th July at Takaster He had received  Nobel prize for peace  Second one is politician ,George Walker Bush (born July 6, 1946) is an American politician who served as the 43rd President of the United States from 2001 to 2009 and 46th Governor of Texas from 1995 to 2000. The eldest son of Barbara and George H. W. Bush, he was born in New Haven, Connecticut.
           Next is Nancy Reagan ,Actress ,wife of American ex-president Ronald Reagan , who wrote some books too.Famous actor  and script writer Sylvestor Stellone was also born today .Painter Frida Kahlo ,Navigator John Paul Jones ,who wrote  Life and correspondence of John Paul Jones were also born today. The most dashing heart throb of Bollywood in India Ranbeer - you must say happy birth day to him today ....right !




तियामत, समंदर की देवी

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तियामत, समंदर की देवी

बेबीलोन के मिथकों में तियामत विशालकाय मादा ड्रेगन है.समंदर के उद्वेग का प्रतीक.समस्त देवताओं और देवियों में आदिकालीन.उसका पति है आपसु,धरती के नीचे ताजा जलराशि का गड्ढा.उन दोनों  के सहवास से देवताओं की पहली जोड़ी पैदा हुई.उनका नाम था लछमू और लछामू.
ये थे अंसार और किसार के माता पिता, यानी अनु और इयार दादा दादी.2000 बीसीई पूर्व लिखे गए अनुमा एलिश नाम के ग्रन्थ में उल्लेख है कि उनकी संतानों ने तियामत और आपसु को अत्यधिक परेशां किया.नतीजतन, लछमू और लछामू ने बच्चों को खत्म करने की साजिश रची.इया को पता चलते ही उसने सोते वक्त आपसु को मार डाला.
गुस्सा भड़का और तियामत ने पति की मौत का बदला लेने की ठानी.उसने दैत्याकार जीवों की सेना तैयार की. तियामत का नया पति किंगू था , वही उसका बेटा भी था.आखिरकार तियामत मर्दुक नाम के ताजा झील वाले बेबीलोन के युवा देवता से हार गई. मर्दुक ने तियामत का शरीर दो टुकड़ों में काट दिया.
जिस्म के ऊपरी हिस्से से आकाश और निचले हिस्से से धरती बनी. तियामत के शरीर के पानी से बादल बने और आँसुओं से टिगरिस और यूफ्रेट्स के जलस्रोत.बाद में किंगू की भी मौत हो गई और उसके रक्त से मर्दुक ने पहले इंसान को बनाया.
तियामत को शैतान ड्रेगनों की रानी ,उसका प्रतीक है पांच सर वाला ड्रेगन.तियामत को कई बार गहरे बालों वाली चुड़ैल की तरह भी दर्शाया गया है.तियामत को आपमे भाई बहामुत का प्रतिद्वंद्वी भी बताया गया है.
तियामत की पूजा करने वाले, शैतान ड्रेगनों से दुनिया को आच्छादित करने का संकल्प लेते हैं.एक कोबोल्ड  मिथक के मुताबिक तियामत ने कुछ अंडे दिए,बुरी तरह जख्मी होने की हालत में  एक अंडे से कुर्तुलमक पैदा हुआ.
मिथकों के मुताबिक़ नौ नरकों और आसमान में तियामत के जाने पर बहामुत ने बंदिश लगा दी थी.अनेक वीडियो गेम्स में भी तियामत का किरदार अपनाया गया है.Dungeons and Dragon टीवी सीरीज में तियामत, वेंगर की कट्टर दुश्मन है जो नायकों को कड़ी चुनौती देती है.