6 मई 1856 वैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड का जन्मदिन
“ गलतियां -दर- गलतियां करने के बाद हर इंसान
कर ही लेता है सचाई की खोज “
0 मनोविज्ञान की पुस्तकों का महारथी
0 आइंस्टीन के साथ मिलकर लिखी "व्हाई वार?"
0 डेढ़ सौ
से अधिक स्वलिखित पुस्तकों का खज़ाना
·
"अव्यक्त भावनाएं चिरंजीवी होती हैं ……वे ज़िंदा ही दफन हो जाती हैं।
आश्चर्यजनक तरीके से जब ये अव्यक्त भावनाएं व्यक्त होती हैं तब उनके प्रदर्शन के तरीके
और उन भावनाओं का चेहरा भी अत्यंत विकराल होता
है।“
·
"प्रेम के सामने जितने असहाय हम होते हैं उतने
अधिक किसी और तरह के दुःख के सामने नहीं होते।
·
“गलतियां -दर - गलतियां करने के बाद हर इंसान सचाई की खोज कर ही लेता है। “
सिग्मंड फ्रायड का सीधा
सम्बन्ध मनोविज्ञान से है। हम सभी इंसानों का हर उम्र में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप
से साबका मनोविज्ञान के किसी न किसी सूत्र से पड़ता ही है। अब ऊपर उल्लिखित तीन संकेत- सूत्रों को ही देखिए,
अपने जीवन में हम सबने इन्हें हक़ीक़त में घटते हुए देखा भी होगा। यह विश्व के चर्चित मनोविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड का ही विश्लेषण है।
आस्ट्रियाई स्नायुविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड मनोविश्लेषण की प्रक्रिया के भी संस्थापक
थे। यह रोगविषयक प्रविधि बढ़ती विकृतियों के निदान की विधि भी है। इसके अंतर्गत लोगों
को सहायता की जाती है जब वे मानसिक तनाव से गुज़र रहे होते हैं। वे 6 मई 1856 को चेक
गणराज्य के मोराविया में यहूदी ऊन कारोबारी के घर जन्मे थे।
मनोविज्ञान पर अपने
शोध कार्यों के दरम्यान ही सिग्मंड फ्रायड ने कहा है कि अक्सर लोग बड़बोलेपन के शेखचिल्ली अंदाज़ में कहते हैं, "हमें आज़ादी चाहिए, सच यह है कि उन्हें आज़ादी
चाहिए ही नहीं क्योंकि आज़ादी बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ लेकर आती है और कोई भी ज़िम्मेदारी
अपने सर पर ओढ़ना ही नहीं चाहता क्योँकि हर इंसान ज़िम्मेदारियों से डरता है।" इसी
तरह मानव सभ्यता के क्रमिक विकास पर भी फ्रायड का मनोविज्ञान भी रोचक दलीलें प्रस्तुत
करता है। इसी के अंतर्गत फ्रायड ने कहा है, "जिस इंसान ने सबसे पहले पत्थर के
बदले कोई बदतमीज़ी की, वह इंसान निश्चित रूप से समाज में सभ्यता की भावना का एक आदिकालीन
संस्थापक ही होगा।
"आप बाहर से कुछ
और .. अंदर से कुछ और...."
किसी फिल्म के गीत की यह पंक्ति आपने ज़रूर सुनी होगी-"आप
बाहर से कुछ और .. अंदर से कुछ और नज़र आते हैं। " मनोविज्ञान की भाषा में द्विध्रुवीयता
(बाइपोलारिटी) यानी कथनी और करनी में अंतर की बात जीवन में अनुभव भी की होगी। इस मनोवैज्ञानिक
मसले पर अनेक सीरियलों और फिल्मों के किरदार सीता और गीता, राम और श्याम आदि देखे
होंगे। आर एल स्टीवेन्सन का लिखा उपन्यास
"डॉक्टर जैकिल एन्ड मिस्टर हाइड"
नाम का उपन्यास भी पढ़ा होगा। सिग्मंड फ्रायड ने अपने एक सिद्धांत के तहत प्रतिपादित
किया है," कोई भी सामान्य व्यक्ति आम तौर पर बाहर अधिक तहज़ीबदार या श्रेष्ठ होता
है। अगर अंदर की बात करे तो इंसान के भीतर अनेक बुराइयों के दैत्य छिपे होते हैं।
" हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग.....तथा पेट में दांत होने सम्बन्धी
मुहावरे भी निश्चित रूप से फ़ायद के मनोविज्ञान से जुड़े सूत्र की बुनावट होनी चाहिए। फ्रायड का यह विश्वास था कि बचपन में हमारे कुछ
हादसों का वयस्क जीवन पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है। ये हादसे भी हमारी वयस्क ज़िंदगी का
आधार बन सकती है। अतीत में घटित घटनाओं का असर उस वक्त समाप्त कर दिया जा सकता है लेकिन
वयस्क होने पर इनके दुष्प्रभाव किसी भी रूप
में दिखाई दे सकता है जिसके कारण तत्काल पहचान में नहीं आते।
सिग्मंड फ्रायड ने 1873 में
विएना की स्कूल से माध्यमिक शिक्षा उत्तीर्ण कर विएना विश्वविद्यालय मेडिकल स्कूल में दाखिला लिया। उन्होंने अपना ध्यान
शरीर क्रिया विज्ञान और तंत्रिका विज्ञान पर केंद्रित किया। उन्हें 1881में चिकित्सा
उपाधि हासिल हुई। विएना के अस्पताल में चार वर्ष तक
क्लिनिक सहायक का प्रशिक्षण लेने के
बाद 1885–86 में जीं मार्टिन चारकोट के तहत तंत्रिका विज्ञान का अध्ययन करते रहे। इंटरनेशनल
साइको एनालिटिकल एसोसिएशन में भी वे अध्ययनरत रहे। उन्होंने दमन, प्रतिरक्षातंत्र
,तंत्रिका विज्ञान, मनोचिकित्सा मनोविश्लेषण का अध्ययन इंटरनेशनल साइकोथेरपी एसोसिएशन
संस्थान में किया।
“इदम्, अहम्
तथा पराहम् -
फ्रायड के
3 चर्चित सिद्धांत”
ये तीन चर्चित सिद्धांत हैं - पहला "ईड
" यानी पहचान। फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धांत के मुताबिक़ "ईड
" सहज प्रवृत्ति है। यह प्रवृत्ति मस्तिष्क
में स्थायी आदिम और सहज वृत्ति है। इसमें मानव की यौन भावनाएं, आक्रामक उद्वेग और छिपी हुई यादें भी शामिल हैं। ईड़ या इदम् मनोविज्ञान
के मुताबिक़ एक जन्मजात प्रकृति है। इसमें इंसान की वासनाएँ और दमित इच्छाएँ भी शामिल
रहती है। ईड़ तत्काल सुख व संतुष्टि पाना चाहता
है। यह पूर्णतः अचेतन में कार्यरत रहता है। दूसरा सिद्धांत है - अति अहंकार यानी सुपर
ईगो (पराहम्)
। यह नैतिकता से जुड़ा है। यह नैतिक विवेक की तरह परिचालित होता है। पराहम् सामाजिक मान्यताओं, संस्कारों व आदर्शों से संबंधित होता है तथा मानवीय,सामाजिक और राष्ट्रीय हित में व्यक्ति को त्याग व बलिदान हेतु तत्पर करता है। पराहम् पूर्णतः चेतन से निर्धारित होता है।
तीसरा
है ईगो (अहम् ) यानी अहंकार जो कि एक यथार्थ है को कि मस्तिष्क का यथार्थवादी हिस्सा
बनकर किसी भी इंसान की पहचान और अतिअहंकार की निहित आकांक्षाओं के बीच मध्यस्थ होता
है। फ्रायड ने अचेत मन या अवचेतन मन संबंधी सिद्धांत प्रतिपादित किया जो सस्वाधिक चर्चित रहा
। यह चिरस्थाई सिद्धांत है जो साबित करता है कि
इंसानी दिमाग,विचारों ,स्मृतियों ,और जज़्बातों का बारहमासी जलाशय होता है। यह
जलाशय चेतन मन के बाहर अवस्थित रहता है।
"समंदर पर तैरता हिमखंड है मस्तिष्क"
आपने समंदर में तैरते हिमखंड देखे होंगे.....टीवी
स्क्रीन पर ही सही! फ्रायड में मतानुसार हमारा मस्तिष्क भी इन्ही हिमखंडों की तरह होता
है। जिस तरह हिमखंड का सातवां हिस्सा ही जल सतह से ऊपर होता है और बाकी जलसतह के नीचे,
ठीक इसी तरह मस्तिष्क की भी स्थिति होती है। इसी तरह सचेत मस्तिष्क की तुलना किसी फव्वारे
से की जा सकती है जो रोशनी में खिलखिलाकर उसी अवचेतन के विस्तारित पोखर में गुम हो जाता है जहाँ
से उसका उद्भव होता है। फ्रायड ने इसी तरह संघर्ष की महत्ता प्रतिपादित करते हुए अपने
मनोविश्लेषण के अपने सूत्र में स्पष्ट किया है ,"किसी न किसी दिन सिंहावलोकन के
बाद बरसों संघर्ष आपको यानी किसी भी इंसान को सफलता
के शिखर पर पहुंचा सकता है।
"अपनी तुलना सिर्फ़ अपने आप से
करें"
अपनी पुस्तकों में फ्रायड ने कहा है ," अगर आपको स्वतः की तुलना
किसी अन्य से करना है तब आप सिर्फ अपनी तुलना इस तरह से करें कि पहले आप खुद कैसे थे
। "अगर किसी भी वजह से मनोग्रंथियां बन चुकी तब आप उन्हें समाप्त करने की कोशिश न करें " सिग्मंड फ्रायड कहते हैं, " मनोग्रंथियों से
मतैक्य स्थापित करें। एक तरह से आपकी मनोग्रंथियां भी दुनिया में आपके सहज और जायज
व्यवहार का एक प्रतिबिम्ब हो सकती हैं। इस विषय पर कोई न्यूनगंड न पालें। " किसी
भी बात पर विश्वास का मुद्दा जब उठाया जाता है तब फ्रायड के इस मनोविश्लेषण सूत्र को
ध्यान में रखें," जिस तरह किसी भी व्यक्ति को किसी बात पर भरोसा करने के लिए बाध्य
नहीं किया सकता है उसी तरह किसी भी इंसान को भरोसा नहीं करने पर भी विवश नहीं किया
सकता।
“सर्वाधिक रोचक और चर्चित पुस्तकें “
वैसे तो सिग्मंड फ्रायड ने अनेक ज्ञानवर्धक पुस्तकें
लिखीं लेकिन उनमें से दो - “द इंटरप्रिटेशन ऑफ़ ड्रीम्स” और “जोक्स एन्ड देयर रिलेशंस
टू अनकांशस” सर्वाधिक सराही गईं । द इन्टरप्रिटेशन्स ऑफ़ ड्रीम्स …..फ्रायड ने अवचेतन
का सम्बन्ध स्वप्नों की विशद व्याख्या से संदर्भित संबंधों का विस्तार कर अलहदा पहलुओं
पर लिखी है। "व्हाई वार " पुस्तक फ्रायड ने अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ साझेदारी
में लिखी थी जो काफी चर्चित रही। सिग्मंड फ्रायड की जीवनी लिखी है अर्नेस्ट जोन्स ने। पत्नी मार्था को लिखे पत्रों के आधार पर लिखी यह जीवनी
" द लाइफ एन्ड वर्क ऑफ़ सिग्मंड फ्रायड " सबसे विश्वसनीय मानी जाती है।
मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण की दुनिया को गहराई तक समझनेवालों को फ्रायड लिखित "ग्रुप साइकोलॉजी एंड द एनालिसिस ऑफ़ द ईगो
" के अलावा " द ईगो एंड द ईड" अवश्य पढ़नी चाहिए। लेकिन इन दोनों अगर आप "द साइकोलॉजी ऑफ़ एवरीडे लाइफ़" और और इंट्रोड्यूसरी
लेक्चर्स ऑन साइको एनालिसिस "पढ़ेंगे तब
सबसे पढ़ने वाली पुस्तक पढ़ने में अधिक आनंद आएगा।1884 से 1939 के दरम्यान सिग्मंड फ्रायड
ने 160 से अधिक पुस्तकें लिखीं तो उनके मनोविज्ञान के प्रति समर्पण का जुनून प्रदर्शित
करता है। फ्रायड की विचारधारा पर सोफ़ोक्लीज़ ,शेक्सपीयर,गोथे,दोस्तोवस्की
,डार्विन और नीत्शे का काफी प्रभाव बताया जाता है।
“जीवनी
के विवादित पन्ने”
चोटिल मनोविश्लेषक होने के बावजूद सिग्मंड फ्रायड
का पारिवारिक जीवन अनेकानेक जटिलताओं से अटा - पटा है। फ्रायड की जीवनी के अनेक पन्ने बेहद रोचक, कुछ विवादास्पद और चर्चित भी रहे हैं।
इस घटना की पृष्ठभूमि में मनोविज्ञान पर सिग्मंड
के गंभीरतम शोध यथा -ओडिपस कॉम्प्लेक्स, इलेक्ट्रा कॉम्प्लेक्स तथा ईड और ईगो पर प्रभाव गहन मनोवैज्ञानिक अध्ययन
के विषय रहे हैं। इसीलिए सिग्मंड फ्रायड युवावस्था
में ही अपनी माँ से विवाह के इच्छुक रहे और अपने पिता को प्रतिद्वंद्वी समझते थे। इस
मनोस्थिति का चित्रण कुछ फिल्मों में भी किया गया है। सिग्मंड
के पिता जैकब के दो बेटे थे। एमान्युएल और
फिलिपो। पिता जैकब की तीन पत्नियां थी -सबसे पहली अमालिया (जैकब से बीस साल छोटी) सिग्मंड
के चेहरे पर उसकी माँ ने एक "शुभ शगुन चिन्ह " देखा था। जैकब की दूसरी पत्नी
थी रिबेका। तीसरी पत्नी के समय नाज़ीवाद तेज़ी
पर था और को नाज़ीवादियों की वजह से अपना रिहाइशी स्थान छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा। सिग्मंड फ्रायड
का विवाह 1886 में मार्था बार्नेस से हुआ।उनके छह बच्चे हुए और बेटी एना फ्रायड भी
अपने पिता की तरह एक चर्चित मनोविश्लेषक बनी।
“प्रेम और श्रम दोनों जीवन के
अनुपूरक “
" अहंकार कभी मानव के ह्रदय का मूल निवासी नहीं
होता , वह बाहर से ही प्रत्यारोपित होता है। इसकी वजह वह इंसान के इर्द- गिर्द की परिस्थियाँ
और स्वयं का अपनाया गया व्यवहार भी रहता है। " सिग्मंड फ्रायड कहते हैं ," प्रेम और श्रम
दोनों जीवन के अनुपूरक हैं ,इनके बिना जीवन
निस्सार। और अगर जीवन में सफल होना है तब आपकी मानसिकता में अभेद्यता....ज़िद और जीवटता
ही आपको कर्मठ बनाएगी। "
" ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे".... शब्द,प्रेम
दिल और दिमाग पर क्या कहा फ्रायड
ने !"
दोस्त ....दोस्ती ....अंतरंगता और फासला इस पर भी
सिग्मंड फ्रायड ने बहुत कुछ कहा है। सूत्रों
में बात की जाए तो फ्रायड की नज़र में दोस्ती या मित्रता दूरियां कितनी रखी जाए
इसे गहराई से समझने की कला है जबकि प्यार एक
ऐसी हक़ीक़त भरा हुनर है जिसमें दूरियां मिटाकर करीब से करीब .... और करीब हुआ जाता है। फ्रायड पर लिखे किसी लेख में उल्लेख था," कोई
भी विचार वस्तुतः तत्पश्चात की जाने वाली कार्यवाही का रिहर्सल होता है। " दिल
और दिमाग की बात जब चली तब उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा था, "हर किसी इंसान
को यह बात गंभीरता से समझनी चाहिए कि छोटे
मामलों में आप अपने दिमाग की बात सुनें लेकिन
गभीर मसलों पर सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने दिल की कही को ही हरी झंडी दें।" शब्दों के
करिश्माई असर के बारे में फ्रायड का सूत्र बेहद अनोखा है। उनके मतानुसार, "किसी
भी साधारण व्यक्ति से अगर यह कहा जाय कि शरीर
और मन के अनेक रोगों का निदान शब्दों से मुमकिन
है तब उसे यह बात हज़म नहीं होगी। साधारण इंसान को
ऐसा ही लगेगा कि उसे चमत्कार पर विश्वास करने को कहा रहा है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि सार्वजनिक
सत्य वस्तुतः अंतर्मन के सत्य की अनुकूलित तामीर करना है। मनोविश्लेषण का एक अत्यंत
रोचक सूत्र यह भी ,"हम जो हां इसलिए हैं कि हमें होना चाहिए था वही हम थे भी।
सचाई यह है कि जीवन में मूल वैचारिक गुत्थियां और समस्याओं को सुलझाने के लिए नैतिक
आंकलनों की नहीं बल्कि ज्ञान की बहुत अधिक आवश्यकता है। "
आप जानते हैं फ्रायड ने स्वप्नों
के बारे में क्या कहा है? वे कहते हैं, "स्वप्न वाहरी प्रकृति से आत्मा के विलग होने के स्थिति है। एक तरह से तत्व की जंजीरों
से मुक्ति भी।सभी स्वप्नों में सर्वाधिक उभय
या सामान्य बात एक ही है । स्वप्न हमेशा उन सभी आकांक्षाओं की पूर्ति करते हैं जिन्हें
हम यथार्थ के धरातल पर पूरा नहीं कर सकते और
अतृप्त रह जाती हैं । सच कहा जाए तो स्वप्न इच्छाओं का सहज और साफदिल एहसास किया जाना है। "स्वप्न के बारे में फ्रायड का दावा है
कि सादृश्य तौर पर
बुरे सपने वे स्वप्न हैं जिनमें सम्बंधित
व्यक्ति की कामवासना चिंताओं में रूपांतरित
हो जाती हैं। हो जाती हैं। इन स्वप्नों के विषय आम तौर पर किसी भी तरह के यथार्थवादी विरूपण से सम्बद्ध नहीं
होते। अतः दमित इच्छाओं का प्रतिबिम्ब भी नहीं
रहते। कोई भी भद्र यानी सज्जन व्यक्ति स्वप्न की अंतर्वस्तु को सामान्य नज़रिए से देखता है लेकिन कोई कुटिल इंसान का दृष्टिकोण
उस तरह होता है जो वह ज़िन्दगी में वस्तुतः
किया करता है। दरअसल स्वप्न की व्याख्या ,मस्तिष्क की अवचेतन गतिविधियों को गंभीरता
से समझने सम्बन्धी ज्ञानार्जन का महामार्ग
है।
आधुनिक मनोविज्ञान के जनक विल्हेम वुंड
पर अवचेतन का फ्रायड सिद्धांत कालजयी
निर्विवाद रूप से अधुनातन वैज्ञानिक आविष्कारों और शोध के उपरांत विल्हेम वुंड को आधुनिक मनोविज्ञान का जनक माना गया है।
फिर भी मनोविज्ञान का इतिहास और आधुनिक मनोविश्लेषण के सरताज अब भी सिग्मंड फ्रायड
हैं। फ्रायड की कुछ थ्योरियां साक्ष्य के अभाव में अवैज्ञानिक कहकर नकारी जाती हैं
लेकिन अवचेतन पर उनके सिद्धांत और शोध अब भी कालजयी हैं । फ्रायड के शोध का पुरज़ोर
लक्ष्य समाज की उस परम्परागत अवधारणा को बदलना
था जिसके तहत यह माना गया कि मनोरोग की वज़हें
आमतौर पर महज़ जैविक ही हैं तथा मस्तिष्क से
जुडी बीमारी का प्रतिफल भी। फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धांतों के प्रतिपादन के बाद
ही पुरानी मान्यता से मुक्ति मिली। मनोविश्लेषण के क्षेत्र में फ्रायड का सबसे अविस्मरणीय
योगदान मानव व्यवहार और मनोचिकित्सा से लेकर बाज़ार परिचालन से सम्बद्ध समस्त व्यवसायों,
प्रशिक्षण और शिक्षा से गहराई तक आज भी जुड़ा हुआ है।
फ्रायड के सिद्धांतों पर आधारित
हॉलीवुड की रोचक फ़िल्में
फ्रायड के बगैर मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण
का अध्ययन असम्भव है। मनोविज्ञान में रूचि
रखने वाले अध्येता और सामान्य पाठक या फिल्मों के
भी हॉलीवुड फ़िल्में देख सकते हैं जिनमें फ्रायड द्वारा मनोविज्ञान के प्रतिपादित
सिद्धांतों पर पटकथा लेखन किया गया है। इन
फिल्मों को देखना दरअसल मनोविज्ञान के सैद्धांतिक सूत्रों का प्रायोगिक माध्यम से जीवंत
साक्षात्कार करना है। इन फिल्मों में प्रमुख
हैं - फ्रायड,अडोल्फ हिटलर,अनकांशस,ए फैंटास्टिक
फियर ऑफ़ एवरीथिंग, द सीक्रेट डायरी ऑफ़ सिग्मंड
फ्रायड ,द बिग टिट्स ड्रैगन, द थेरापी ऑफ़ अ वैम्पायर,आई स्लेप्ट विथ फ्रायड, हिस्टॉरिकल
गर्ल, एन्ना फ्रायड अंडर एनालिसिस (यह पुस्तक
सिग्मंड और मार्था फ्रायड के सबसे छोटे बच्चे एन्ना पर उसके माता - पिता की लिखी किताब
है।
मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड
की मृत्यु 23 सितंबर, 1939 को तिरासी वर्ष की उम्र में हुई। मृत्यु से पहले जबड़े का
कैंसर था जिसकी वजह से उन्हें जबरदस्त दर्द हो रहा था दर्द पर काबू पाने अंततः चिकित्सक मैक्स स्कूर को
फ्रायड के परिवारजनों की सहमति से मॉर्फिन के इंजेक्शन लगाने पड़े। लिसा एपीनानेसि अनेक
पुरस्कारों की विजेता लेखक, उपन्यासकार और संस्कृति विषयक लेखन विशेषज्ञ हैं। उनकी
राय में - " बिल्कुल मौसम की तरह हैं
सिग्मंड फ्रायड .....वह हर जगह हैं.....अगर आप किसी भी संस्कृति में देखें, किसी न
किसी वक्त उनके विचार समाज में तैरते हुए मिलेंगे। कई बार विचार उनके होकर भी उनके नाम से नहीं होते। जैसे ही आप
कुछ विचारों को पढ़ते हैं आप अपने आप से कहते हैं.....देखो ! देखो! इन विचारों की बुनियाद
है फ्रायड! हालांकि कुछ लोग खुलकर फ्रायड का नाम नहीं लेते! "
किशोर
दिवसे ,पुणे
चलित
दूरभाष ; 9827471743 ,ई मेल; kishorediwase0@gmail.com